Parliament Special Session: संसद पर आतंकी हमले की कहानी जिसे याद करके भावुक हुए PM मोदी, सीने पर गोलियां खाने वालों को किया नमन
Parliament Special Session:विशेष सत्र में आज स्पीकर के संबोधन के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले 75 वर्षों के दौरान संसद की विविध गतिविधियों की चर्चा करते हुए पंडित नेहरू से लेकर मनमोहन सिंह तक सभी प्रधानमंत्रियों को याद किया।
Parliament Special Session: संसद के पुराने भवन में आज पांच दिवसीय विशेष सत्र की शुरुआत हुई। गणेश चतुर्थी के मौके पर कल से संसद के नए भवन में सदन की बैठकों की शुरुआत होगी। विशेष सत्र में आज स्पीकर के संबोधन के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले 75 वर्षों के दौरान संसद की विविध गतिविधियों की चर्चा करते हुए पंडित नेहरू से लेकर मनमोहन सिंह तक सभी प्रधानमंत्रियों को याद किया। इस दौरान उन्होंने जी-20 बैठक के जरिए वैश्विक स्तर पर भारत को मिली कामयाबी का भी प्रमुखता से जिक्र किया। प्रधानमंत्री मोदी ने संसद भवन पर आतंकी हमले का जिक्र करते हुए संसद की रक्षा के लिए सीने पर गोलियां खाने वालों को भी याद किया। उन्होंने भावुकता भरे अंदाज में आतंकी हमले में जान गंवाने वालों को नमन किया।
ऐसे में यह जानना जरूरी है कि पीएम मोदी ने संसद पर जिस आतंकी हमले का जिक्र किया आखिर वह हमला कब और कैसे हुआ था। 13 दिसंबर 2001 को हुए इस आतंकी हमले में नौ लोग शहीद हुए थे जबकि सुरक्षा बलों की जवाबी कार्रवाई में लश्कर के पांच आतंकियों को ढेर कर दिया गया था। इस दिल दहलाने वाली घटना से केवल देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में हड़कंप मच गया था।
संसद के लिए गोली खाने वालों को नमन
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज कहा कि देश की संसद के लिए न जाने कितने लोगों ने काम किया और अपने-अपने तरीके से संसदीय व्यवस्था को मजबूत बनाने की कोशिश की। ऐसे सभी लोगों को आज नमन करने का समय है। प्रधानमंत्री ने 13 दिसंबर 2001 को संसद पर हुए आतंकी हमले का जिक्र करते हुए कहां कि यह हमला सिर्फ एक इमारत पर नहीं था बल्कि यह आतंकी हमला हमारी जीवात्मा पर किया गया था।
पीएम मोदी ने कहा कि यह देश उस घटना को कभी नहीं भूल सकता। सांसद और सांसदों को बचाने के लिए आतंकियों से लड़ते हुए हमारे कई लोगों ने अपनी जान गंवा दी। प्रधानमंत्री ने कहा कि संसद के लिए अपने सीने पर गोलियां खाने वाले ऐसे सभी लोगों को मैं नमन करता हूं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि आजादी के बाद इस भवन को संसद भवन के रूप में पहचान मिली। इस भवन के निर्माण का फैसला भले ही विदेशी शासको का था मगर इसके निर्माण में पसीना और परिश्रम हमारे देश के लोगों का लगा हुआ है। इसके निर्माण में पैसा भी हमारे ही देश का लगा हुआ है। पीएम मोदी की पुराने संसद भवन में यह 50 मिनट की आखिरी स्पीच थी।
संसद के लिए नौ लोगों ने दी थी शहादत
प्रधानमंत्री मोदी ने जिस आतंकी हमले का जिक्र किया, वह हमला देश में सबसे दुस्साहसिक आतंकी घटनाओं में गिना जाता है। इस हमले के दौरान दिल्ली पुलिस के जवानों ने आतंकवादियों के खिलाफ मोर्चा संभाला था मगर हमले के दौरान पांच जवानों को शहादत देनी पड़ी थी। इनमें नानक चंद, रामपाल, ओमप्रकाश, बिजेंद्र सिंह और घनश्याम शामिल हैं। इन जवानों के अलावा अलावा केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल की एक महिला कांस्टेबल कमलेश भी इस आतंकी हमले में शहीद हो गई थीं।
संसद की सुरक्षा में तैनात दो सुरक्षा कर्मी जगदीश प्रसाद यादव और मातबर सिंह नेगी भी अपनी बहादुरी का परिचय देते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए थे। इसके साथ ही संसद भवन में मौजूद एक पार्क में पेड़-पौधों की देख-रेख करने वाले माली देशराज को भी अपनी जान गंवानी पड़ी थी। इस तरह इस आतंकी हमले में नौ लोग शहीद हुए थे। इनके अलावा 16 जवान गोलीबारी में घायल हो गए थे।
संसद में मौजूद थे आडवाणी समेत दो सौ सांसद
संसद भवन पर हमला करने वाले पांच आतंकी सफेद रंग की एंबेसडर कर पर सवार होकर पहुंचे थे और उन्होंने 45 मिनट के भीतर लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर को गोलियों से छलनी करके पूरे हिंदुस्तान को दहला दिया था। संसद भवन पर जिस समय यह आतंकी हमला किया गया था, उस समय तत्कालीन गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी समेत करीब 200 सांसद सदन के भीतर मौजूद थे। संसद पर हमला करने वाले पांचों आतंकी एक-47 से लैस थे और उन्होंने अपने कंधों पर बैग टांग रखे थे। सुरक्षा बलों की त्वरित कार्रवाई की वजह से आतंकियों को मार गिराने में कामयाबी मिली।
आतंकी हमले में अफजल गुरु को फांसी
संसद भवन पर हुए इस हमले में सुरक्षाबलों ने सभी आतंकियों को मार गिराया था। दिल्ली पुलिस के अनुसार मारे गए आतंकियों में हैदर उर्फ तुफैल, मोहम्मर राना, रणविजय, हमला शामिल थे।
इस हमले में पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई का हाथ था। हमले की साजिश रचने वाले मुख्य आरोपी अफजल गुरु को बाद में दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था। उसने पाकिस्तान में आतंकी ट्रेनिंग भी ली थी।
2002 में दिल्लीर हाईकोर्ट और 2006 में सुप्रीम कोर्ट ने उसे फांसी की सजा सुनाई। तत्का्लीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अफजल गुरु की दया याचिका खारिज कर दी थी जिसके बाद 9 फरवरी 2013 की सुबह अफजल गुरू को दिल्ली के तिहाड़ जेल में फांसी दे दी गई थी।