मोदी की नई कैबिनेट! किसी भी 'मर्द को दर्द' दे सकती हैं, ये 8 महिला मंत्री
नई दिल्ली : रविवार को मोदी कैबिनेट में फेरबदल किया गया इसके बाद अब मंत्रिमंडल में कुल 8 महिला मंत्री शामिल हो चुकी हैं। वैसे देखा जाए तो कुल 76 मंत्रियो की फौज में ये 8 सब पर भारी हैं, क्योंकि इनका प्रोफाइल जो इतना पावरफुल है।
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हरसिमत कौर बादल- खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय
सुषमा स्वराज- विदेश मंत्रालय
उमा भारती- पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय
मेनका गांधी- महिला एवं बाल विकास मंत्रालय
स्मृति जुबिन ईरानी- कपड़ा, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय
निर्मला सीतारमण- रक्षा मंत्रालय
साध्वी निरंजन ज्योति- खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय
अनुप्रिया पटेल- स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय
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साढ़े तीन साल के सफर में हमेशा चौंकाने वाले निर्णय मोदी की पहचान बने। ये बात अलग है कि महत्वपूर्ण फैसलों के नतीजे, इरादों से इतर रहे। मोदी ही थे, जिन्होंने राजनैतिक जीवन का कठोर फैसला लेकर निश्चित रूप से देशवासियों को एक बेहतर पैगाम तो दे ही दिया और एक झटके में 8 नवंबर 2016 को 86 फीसदी नकदी को चलन से बाहर कर दुनिया की 7वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के हर बालिग नागरिक को बैंकों की कतार में लगा दिया।
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नोटबंदी, यानी आर्थिक आपातकाल से कारोबारी तिलमिला गए, शादी-ब्याह में अड़चनें आ खड़ी हुईं, सो से ज्यादा मौतें हुईं, लेकिन मोदी तो मोदी ठहरे। काले धन के लगाम पर 99 फीसदी बंद हुई करेंसी बैंकों में लौट आने पर काले और सफेद धन को लेकर प्रतिक्रियाएं चाहे जो आएं, लेकिन बड़ी ही खूबसूरती से कही डिजिटल अर्थव्यवस्था की बातों में देशवासियों को उलझाकर फिर विश्वास जीत लिया।
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नोटबंदी से आतंकवाद और नक्सलवाद के खात्मे का दावा भले ही पूरा नहीं हुआ और ताजा रिपोर्ट में विकास दर पिछली तिमाही की तुलना में 6.1 प्रतिशत से नीचे गिरकर 5.7 पर आ गई, लेकिन वो मोदी ही हैं जो अब भी लगातार कड़े फैसले लेने से गुरेज नहीं कर रहे हैं।
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हां, पिछले कैबिनेट के प्रदर्शन पर बाकायदा कॉपोर्रेटर तरीके अपनाए, एक्सेल सीट तैयार कर सबका खाता-बही बनाया, पॉजिटिव-निगेटिव अंकों से ग्रेडिंग की। स्किल इंडिया की विफलता से नई नौकरियों के मौके नहीं आने, साफ-सफाई पर दावों और हकीकत में अंतर, कैबिनेट की बैठकों के दौरान मंत्रियों की गैरहाजिरी, गैरजिम्मेदारी, लापरवाही और भ्रष्टाचार के पुख्ता आधारों ने कई मंत्रियों की एक्सल सीट को निगेटिव रंग से रंग दिया तो कइयों के विभाग भी बदले जाने की इबारत लिख दी।
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मोदी का लक्ष्य अपने बूते 2019 की कामयाबी है। चार उपचुनाव के हालिया नतीजों ने भी उन्हें झकझोरा होगा। जहां अगला लक्ष्य 350 सीटें हैं, वहीं देशवासियों का मिजाज भी समझना जरूरी है। 21 महीने शेष हैं। समय कम और उपलब्धियों की लंबी जुगत का फेर। जाहिर है कि मोदी और अमित शाह की जोड़ी को इंस्टैंट नतीजों के लिए नौकरशाहों की भी दरकार हो। शायद इसीलिए कुछ अलग, कुछ नया सा प्रयोग है आखिरी विस्तार। देखना है, कसौटी पर कितना खरा उतरता है!
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