पंजाब निकाय चुनाव का संदेश, भाजपा साफ, कांग्रेस वापस, आप की दस्तक

पंजाब के नतीजों से भाजपा को बड़ा झटका लगा है। इससे पहले हरियाणा में हुए निकाय चुनाव में भी पार्टी को करारा झटका लगा था। 2015 में 348 वॉर्डों में जीत हासिल करने वाली भाजपा इस बार उसके आसपास भी नहीं है। गुरदासपुर से पार्टी के सनी देओल सांसद हैं।

Update: 2021-02-17 13:05 GMT
पंजाब निकाय चुनाव का संदेश, भाजपा साफ, कांग्रेस वापस, आप की दस्तक

रामकृष्ण वाजपेयी

लखनऊ: कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली बार्डर पर जारी किसान आंदोलन ने पंजाब निकाय चुनाव में भाजपा को करारा झटका देते हुए आंदोलनकारी किसानों का खुलकर समर्थन कर रही कांग्रेस को जबर्दस्त सफलता दिलायी है। भाजपा का इस चुनाव में सफाया हो गया है। जबकि भाजपा से अलग होकर चुनाव में उतरे अकाली दल को भी झटका लगा है जिससे यह लग रहा है कि पंजाब की जनता ने किसान विरोधी कानूनों को पास कराने में उनकी भूमिका के लिए उन्हें माफ नहीं किया है। अलबत्ता चौंकाने वाली बात यह है कि आंदोलन कर रहे किसानों का बढ़ चढ़कर समर्थन कर रही है आम आदमी पार्टी को यहां खास सफलता हाथ नहीं लगी है उसके लिए संतोष की बात यह है कि पहली बार दिल्ली के बाहर निकाय चुनाव में उसने अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी है।

पंजाब में भाजपा को झटका

पंजाब के नतीजों से भाजपा को बड़ा झटका लगा है। इससे पहले हरियाणा में हुए निकाय चुनाव में भी पार्टी को करारा झटका लगा था। 2015 में 348 वॉर्डों में जीत हासिल करने वाली भाजपा इस बार उसके आसपास भी नहीं है। गुरदासपुर से पार्टी के सनी देओल सांसद हैं, इसके बावजूद शहर के सभी 29 वॉर्ड कांग्रेस के खाते में गए हैं।

किसान की आवाज़ ही देश की आवाज़ है!

कांग्रेस ने भी जीत का आनंद लेते हुए भाजपा पर तंज कसते हुए ट्वीट किया है, 'पंजाब में भाजपा साफ। जल्द देश भी पंजाब की राह पर चल कर 'स्वच्छ भारत अभियान' के तहत भाजपा का सूपड़ा साफ कर देश को 'नफरत और झूठ' की राजनीति से मुक्त करेगा। क्योंकि अब किसान की आवाज़ ही देश की आवाज़ है!'

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चूंकि पंजाब में 14 फरवरी को मतदान हुआ था और मतदान के ट्रेंड से भाजपा को यह अहसास हो गया होगा कि वह बुरी तरह हार रही है शायद इसी लिए पार्टी आलाकमान ने गत दिवस पार्टी से जुड़े किसान नेताओं और पदाधिकारियों के साथ आगे अपनी जमीन बचाने के प्रयासों पर मंत्रणा की जिसमें फोकस जाट बहुल 40 सीटों पर रहा। देखना है भाजपा के क्षेत्रीय नेता पंजाब और हरियाणा में किस तरह आंदोलनकारी किसानों को गुमराह बताकर सरकार का पक्ष रखने का अभियान चला पाते हैं।

अकाली दल अपनी साख बचाने में कामयाब

पंजाब निकाय चुनाव में भाजपा का हाल देखने के बाद यह तो कह सकते हैं कि अकाली दल अपनी साख बचाने में कामयाब रहा है। किसानों के मुद्दे पर भाजपा से अलग होना उनके लिए फायदेमंद रहा और जनता ने उन्हें माफ कर दिया। लेकिन अकाली दल 53 साल बाद वह भटिंडा में हार गया है।

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17 सितंबर 2020 को कृषि विधेयकों से जुड़े प्रावधानों पर नाराजगी जताते हुए केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने मोदी मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया था। इससे पहले लोकसभा में विधेयकों पर चर्चा के दौरान पार्टी अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने उनके इस्तीफे की घोषणा की थी। हालांकि उन्होंने कहा कि पार्टी एनडीए सरकार को समर्थन जारी रखेगी।

हरसिमरत कौर ने एक ट्वीट में कहा था , 'मैंने किसान विरोधी अध्यादेशों और कानून के विरोध में केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया है। किसानों के साथ उनकी बेटी और बहन के रूप में खड़े होने का गर्व है।' लेकिन ऐसा लगता है कि किसानों के विरोध के बावजूद उनका एनडीए को समर्थन जारी रखना जनता को पसंद नहीं आया।

पिछले बार अकाली दल एक नंबर पर था

पिछले बार अकाली दल एक नंबर पर था। पार्टी ने सबसे ज्यादा 813 वॉर्डों में जीत दर्ज की थी। इस बार ज्यादातर नगर निगम और नगर परिषदों में उसे बड़ी हार झेलनी पड़ रही है। 2015 में अकेले शिरोमणि अकाली दल ने 34 नगर परिषदों और नगर पंचायतों में अपना अध्यक्ष बनवाया था। उस वक्त अकाली दल का बीजेपी के साथ गठबंधन भी था और तब दोनों दलों ने मिलकर 27 नगर परिषदों और नगर पंचायतों में संयुक्त रूप से अध्यक्ष बनाए थे। वहीं, अकेले बीजेपी की बात करें तो उसे आठ नगर परिषदों में जबकि कांग्रेस को पांच में अपना अध्यक्ष बनाने में सफलता मिली थी।

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कह सकते हैं तीन कृषि विधेयकों पर किसानों का गुस्सा भाजपा के सारे किये धरे पर भारी पड़ गया है। इसी वजह से पार्टी अब उत्तर प्रदेश में होने वाले पंचायत चुनाव में तीन कृषि विधेयकों के फायदे गिनाने का अभियान छेड़ने की तैयारी कर रही है। अगर किसान आंदोलन जारी रहा तो न सिर्फ ये चुनाव बल्कि 2022 तक होने वाले अलग अलग राज्यों के विधानसभा चुनावों में भाजपा को तगड़ा झटका लग सकता है।

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