Quad Summit 2022: क्यों चीन कहता है 'Asian NATO', खत्म होगी हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में बीजिंग की बादशाहत!

Quad Summit 2022: क्वाड देशों का सम्मेलन (Quad Summit) अभी शुरू भी नहीं हुआ कि चीन की घबराहट बढ़ने लगी है। चीन ने इस सम्मेलन को लेकर पहले से ही बयानबाजी शुरू कर दी है।

Written By :  aman
Update:2022-05-23 20:22 IST

quad summit 2022 

Quad Summit 2022 : क्वाड देशों का सम्मेलन (Quad Summit) अभी शुरू भी नहीं हुआ कि चीन की घबराहट बढ़ने लगी है। चीन ने इस सम्मेलन को लेकर पहले से ही बयानबाजी शुरू कर दी है। चीन का दावा है कि QUAD सम्मेलन सफल नहीं होगा। चीन कह रहा है कि, स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति के नाम पर अमेरिका की इंडो-पेसिफिक रणनीति कभी कारगर नहीं होगी। चीन का ये भी मानना है कि, अमेरिका ने चीन को 'नियंत्रण' में रखने के लिए क्वाड का गठन किया है। ऐसे में सवाल उठना लाजमी है, कि चीन को क्वाड सम्मेलन से इतनी घबराहट क्यों हो रही है?

आपको बता दें कि QUAD चार देशों--भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान--का एक समूह हैं। दरअसल, समुद्री आपदा से आरंभ हुआ आपसी सहयोग का सिलसिला अब रक्षा, तकनीक, ऊर्जा, व्यापार से काफी आगे बढ़ चुका है। अब इस गुट का दायरा बढ़कर हिंद और प्रशांत महासागर क्षेत्र की रणनीतिक व सामरिक सुरक्षा तक आ गया है। बता दें कि, 'क्वाड' का फुल फॉर्म Quadrilateral Security Dialogue है। यह भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के बीच एक मजबूत मंच के तौर पर जाना जाता है। 

चीन अभी क्यों तिलमिला रहा? 

असल में चीन क्वाड को लेकर हमेशा ही सशंकित रहा है। चीन क्वाड को अमेरिकी की चाल के तौर पर देखता है। मगर, अभी जब कल 24 मई को क्वाड (Quad) के सदस्य राष्ट्रों का सम्मेलन होने वाला है, तो उससे ठीक पहले अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन (US President Joe Biden) ने ताइवान मसले पर बेहद सख्त बयान दिया। अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा, कि 'अगर चीन ताइवान पर हमला करता है, तो उनका देश सैन्य हस्तक्षेप करेगा। इतना ही नहीं, अमेरिका ने ये भी कहा कि, ताइवान के खिलाफ बल प्रयोग करने का चीन का कदम न केवल अनुचित होगा बल्कि यह यूक्रेन में की गई कार्रवाई के जैसा ही माना जाएगा। अमेरिका के इस बयान के बाद चीन तिलमिलाया हुआ है। 

चीन- क्वाड मतलब 'एशियाई नाटो'

बता दें कि, चीन को शुरुआत से ही क्वाड से आपत्ति है। चीन क्वाड को 'एशियाई नाटो' कहता रहा है। क्वाड दुनिया को बेहतर व शांत स्थान बनाए रखने तथा चीन की विस्तारवादी महत्वाकांक्षाओं को नियंत्रण में रखने के लिए और आपसी सहयोग के साथ चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए भी विचार करते रहे हैं। इसी कड़ी में कल होने वाली बैठक बेहद अहम है। 

साल 2007 में गठन 

क्वाड और चीन के बीच की गर्माहट समझने के लिए आपको इतिहास में झांकना होगा। दरअसल, साल 2007 में जापान के उस वक़्त के प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने क्वाड का गठन किया था।तब से साल 2010 तक हर साल क्वाड की बैठक होती रही। जिसके बाद अगले सात साल के लिए इन बैठकों पर विराम लग गया। तब चीन ने ऑस्ट्रेलिया पर सम्मेलन में हिस्सा न लेने का दबाव बनाया था। जिसके बाद ऑस्ट्रेलिया के तत्कालीन प्रधानमंत्री केविन रुड ने 2010 में इस संगठन की बैठकों में शामिल न होने का फैसला लिया था।

चीन का ऑस्ट्रेलिया पर दबाव

चीन के दबाव में ऑस्ट्रेलिया के पीछे हटने से एक बार तो लगा कि चीन क्वाड को खत्म करने के अपने मंसूबे में कामयाब हो रहा है। लेकिन, साल 2017 में जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे, भारतीय पीएम नरेंद्र मोदी, अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और ऑस्ट्रेलिया के तब के पीएम मैल्कम टर्नबुल ने फिर क्वाड शुरू करने का फैसला किया।

चीन के विस्तारवादी सोच पर नकेल !

क्वाड के नजरिए से देखें तो सबसे अहम रहा साल 2021। इस वर्ष वर्चुअल शिखर सम्मेलन आयोजित की गई। इस सम्मेलन में क्वाड नेताओं ने चीन को स्पष्ट संदेश दिया। इस साल क्वाड सदस्यों ने 'एक मुक्त, खुला और समावेशी हिंद-प्रशांत क्षेत्र' सुनिश्चित करने की बात कही। बस, इसी से चीन भड़क गया। चीन को ये बातें अपने विस्तारवादी सोच पर नकेल कसने की तैयारी लगने लगी।

'विश्व शक्ति' की राह में चीन के लिए रोड़ा बना  

उल्लेखनीय है कि, चीन हाल के कुछ वर्षो में एशिया में लगातार अपनी ताकत बढ़ाता रहा है। इसके पीछे का मकसद चीन को अमेरिका की तरह 'विश्व शक्ति' बनना रहा है। क्वाड का सदस्य होने और मजबूत होती अर्थव्यवस्था की वजह से भारत पर दबाव की रणनीति चीन के लिए अब कारगर नहीं रही। इसके अलावा, विश्व के अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ भारत की बढ़ती नजदीकियां भी चीन के लिए चिंता का सबब रही है। 

शीत युद्ध और सैन्य टकराव की आशंका 

आप गौर करें तो क्वाड के सदस्य राष्ट्रों से बीजिंग के अच्छे रिश्ते नहीं हैं। भारत के साथ आए दिन सीमा विवाद जैसे मसले सामने आते रहे हैं। वहीं, दक्षिण और पूर्वी चीन सागर में उसकी हरकतों से ऑस्ट्रेलिया और जापान को लगातार आपत्ति होती रही है। वहीं, अमेरिका तो जगजाहिर वैश्विक 'सुपरपावर' है। इन्हीं, वजहों से चीन को क्वाड से भय लगता दिख रहा है। इसी कारण क्वाड पर भड़का चीन कई बार इसे 'एशियाई नाटो' कहता रहा है। चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने इसे शीतयुद्ध के साथ जोड़ते हुए सैन्य टकराव की आशंका तक जाहिर की।

मोदी के नेतृत्व में भारत सशक्त, चीन सहमा  

भारत के नजरिये से देखें तो पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत का क्वाड देशों से आर्थिक रिश्ते मजबूत हुए हैं। इसी कड़ी में आठ साल से आधार में लटके भारत और ऑस्ट्रेलिया मुक्त व्यापार समझौते की राह भी खुली। दोनों देशों ने मुक्त व्यापार समझौता किया। इसके अतिरिक्त, भारत के जापान के साथ बेहतर संबंध हैं। इसके अलावा रूस और यूक्रेन युद्ध के बाद अमेरिका की कोशिश है कि भारत उसका सैन्य साझीदार बने। अमेरिका लगातार भारत पर डोरे डाल रहा है। इन वैश्विक गतिविधियों को भी चीन अपने लिए चुनौती मानता है।

इसी प्रकार की कई अंतरराष्ट्रीय गतिविधियों के कारण Quad Summit शुरू होने से पहले चीन को मिर्ची लगी हुई है। सम्मेलन की अभी शुरुआत भी नहीं लेकिन चीन का भड़कना इस ओर जरूर इशारा करता है, कि हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में बीजिंग की बादशाहत खतरे में जरूर है। इसी खीज को वह बोलकर निकाल रहा है। 

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