उद्धव रायगढ़ किला कनेक्शन! सीएम बनते ही हुआ एलान, मिल रहा 20 करोड़

Update:2019-11-30 13:03 IST
उद्धव रायगढ़ किला कनेक्शन! सीएम बनते ही हुआ एलान, मिल रहा 20 करोड़

रायगढ़: उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बन चुके हैं। उन्होंने अपनी पहली कैबिनेट बैठक में छात्रपति शिवाजी महाराज के किले को लेकर बड़ा फैसला किया है। रायगढ़ का किला छत्रपति शिवाजी महाराज के जीवन में बेहद महत्वपूर्ण रहा। यहीं पर उनका राज्याभिषेक हुआ था। सीएम उद्धव ठाकरे ने इस किले के संरक्षण के लिए 20 करोड़ रूपये आवंटित किये हैं।

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जानिए रायगढ़ किले बारे में दिलचस्प बातें

रायगढ़ चारों तरफ से पहाड़ों और जंगलों से घिरा हुआ है। मराठा शिवाजी ने 1674 ईस्वी में इसे अपनी राजधानी बनाया था और यहीं उन्होंने 1680 में अपने प्राण त्याग दिए थे। इसका नाम पहले रायरी था जिसे शिवाजी ने बदल कर रायगढ़ कर दिया।

महाराष्ट्र के महाड शहर में बसा ये किला सह्याद्रि पर्वत श्रृंखला में पड़ता है। 12वीं सदी में ये पालेगर वंश की संपत्ति हुआ करता था। पंद्रहवीं सदी में ये किला निजामशाही शासकों के हाथ में आया। उनके बाद सत्रहवीं सदी में शिवाजी महाराज के पास। उन्होंने इसके कई हिस्से दोबारा बनवाए और फिर इसे मराठा साम्राज्य की राजधानी बना लिया। यह किला ऊंचाई पर स्थित है। नीचे पाचड और रायगडवाड़ी नाम के दो गांव हैं। पाचड से ही किले तक जाने का रास्ता शुरू हो जाता है। इसमें कई सैनिका रहा करते थे। ताकि मौका पढऩे पर घुसपैठियों और आक्रमणकारियों से निपटा जा सके।

महा दरवाजा

किले में पहुंचने के लिए एक मुख्य रास्ता हुआ करता था जिसे महा दरवाजा कहते थे। जो अब पूरी तरह से खण्डहर में तब्दील हो चुका है। किले में पहुंचने के लिए १७०० सीढिय़ां चढऩी पड़ती थीं। इस किले में रानी का कमरा और छह अन्य कमरे थे। तीन वॉच टावर भी थे। जिनमें से एक ढह चुका है। राजा और लश्कर के लिए पालकी दरवाजा, रानियों और उनके साथ की महिलाओं के लिए मीना दरवाजा जो रविनास तक जाता था और तीसरा दरवाजा जो था वह सीधा दरबार तक जाता था। इस किले का नक्शा तैयार करने वाले हिरोजी इंदुलकर थे। इसी किले में शिवाजी महाराज का राज्यभिषेक किया गया था और हिन्दवी स्वराज की नींव रखी गई थी। यहीं पर शिवाजी को छत्रपति की पदवी भी प्रधान की गई थी।

हिरकनी बुर्ज

हिरकनी बुर्ज इसके पीछे की कहानी भी काफी दिलचस्प है। किले के पास के गांव से हिरकनी नाम एक महिला किले में दूध बेचने आया करती। एक दिन उसे किले के अंदर आने में देर हो गई और सूर्यास्त हो गया। सूर्यास्त के बाद किले का महा दरवाजा बंद कर दिया जाता था। अब वो नीचे नहीं जा सकती थी। लेकिन रात होते-होते हिरकनी से रहा नहीं गया। उसका बच्चा भूख से रो रहा होगा। यह सोचकर वह परेशान हो गई। तो वह ऊंची चोटी से अंधेरे में नीचे उतर गई बिना किसी सहारे के। जब यह बात छत्रपति शिवाजी महाराज को पता चली तो उन्होंने उसे दोबारा ऐसा करने को कहा और वह ऊंची चोटी से दोबारा बिना किसी सहारे के उतर गई। तब उसके सम्मान में शिवाजी ने ये बुर्ज बनवाया और इसका नाम हिरकनी बुर्ज रखा।

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1680 के अप्रैल में शिवाजी महाराज की मृत्यु हुई। उनकी मृत्यु के बाद उनके छोटे बेटे राजाराम को गद्दी पर बिठाया गया। लेकिन बड़े बेटे संभाजी ने आकर अपना उत्तराधिकार जमाया। और राजाराम को गद्दी से उतार खुद शासक बन बैठे लेकिन ज्यादा समय तक संभाजी वहां बने नहीं रह सके। उनको पकड़ कर मौत के घाट उतार दिया गया । इसके बाद फिर से राजाराम छत्रपति वहां के शासक बने। मुगलों से लोहा लिया। 1681 से ही औरंगज़ेब ने मराठा साम्राज्य पर हमले शुरू किए। 1684 में औरंगज़ेब के जनरल शहाबुद्दीन खान ने रायगड पर हमला किया, लेकिन किला बचा लिया गया।

जब1689 में हुआ रायगढ़ का युद्ध। औरंगजेब ने ज़ुल्फि़कार खान को रायगड पर कब्जा करने के लिए भेजा। मुगलों ने किले पर कब्जा तो कर लिया। लेकिन राजाराम छत्रपति वहां से बच निकले। 1700 में उनकी मृत्यु हुई।

साल 1818 में ईस्ट इंडिया कंपनी के लेफ्टिनेंट कर्नल प्रॉथर ने मराठा किलों पर हमले शुरू किए। वहां पर बाजीराव द्वितीय की पत्नी वारासीबाई उस वक्त मौजूद थीं। उन्होंने किला छोड़कर जाने के बजाए लडऩा बेहतर समझा। लेकिन अधिक समय तक किला टिक नहीं पाया। गोलीबारी के बीच रायगढ़ ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के अधीन आ गया। ब्रिटिशों द्वारा की गई। इस गोलीबारी से किले भयंकर आग लग गई और पूरा किल तहस-नहस हो गया।

इस किले के परिसर में छत्रपति शिवाजी के प्रिय कुत्ते की मूर्ति लगी है। कहा जाता है कि शिवाजी की मृत्यु के बाद कुत्ते ने रोते-रोते उनकी चिता में छलांग लगा दी थी और उसी की याद में ये मूर्ति बनवायी गई। लेकिन 2011 में सम्भाजी ब्रिगेड के कुछ लोगों ने ये मूर्ति हटा दी। कहा, कि ऐसे कुत्ते का कोई उल्लेख नहीं मिलता और शिवाजी के किले में कुत्ते की मूर्ति नहीं होनी चाहिए। लेकिन बाद में ये मूर्ति दोबारा लगाईं गई।

लेकिन 2018 में एक खुदाई में कुछ और ही पता चला। जहां से ब्रिटिश ट्रूप्स ने गोलीबारी की थी, उसके ठीक सामने मौजूद जगह पर दो फीट नीचे से पूरा ढांचा निकला है। जिसमें जलने के कोई निशान नहीं पाया गया। इसमें कुछ कमरे और एक बरामदा है।

किले के जल कर राख होने की कहानी शायद लोककथाओं का हिस्सा रही। 1818 में हुए युद्ध के बाद अधिकतर लोग किला छोड़कर चले गए थे। इस वजह हो सकता है लकड़ी के ढांचे बिना इस्तेमाल और रख-रखाव के खराब होते गए। इससे पहले भी किले के पुनर्निर्माण और संरक्षण के लिए फंड दिया गया था। अब महाराष्ट्र के सीएम बनने के बाद उद्घव ठाकरे ने इस किले के संरक्षण के लिए 20 करोड़ रूपये आवंटित किये हैं।

 

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