जयपुर। उत्तर प्रदेश की तर्ज पर राजस्थान विधानसभा चुनावों में भी भाजपा हार्ड हिन्दुत्व की राह पर चलती नजर आ रही है। भाजपा ने विधानसभा चुनावों के लिए घोषित अपनी पहली सूची में एक भी मुस्लिम को उम्मीदवार नहीं बनाया है। इसके उलट उसने अपने दो मुसलमान विधायकों में से एक हबीबुर्रहमान का टिकट काट दिया। अब सबकी निगाहें पार्टी के दूसरे मुसलमान विधायक यातायात मंत्री यूनुस खान पर टिकी हैं।
हबीबुर्रहमान नागौर सीट से भाजपा के विधायक हैं। वे 2008 के विधानसभा चुनावों में भी भाजपा के टिकट पर इस सीट से चुनाव जीते थे। इससे पहले वे तीन बार 90, 93 और 98 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के टिकट पर नागौर जिले की मूंडवा सीट से चुने गए थे। वे इस सीट से 2003 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के टिकट पर लड़े और तीसरे स्थान पर रहे।
यह भी पढ़ें : गाजा तमिलनाडु तट से टकराया, राहत शिविरों में भेजे गए 76 हजार लोग
भाजपा के दूसरे मुस्लिम विधायक यूनुस खान डीडवाना से आते हैं। वर्तमान भाजपा सरकार में उन्हें सबसे ताकतवर मंत्री माना जाता है। इससे पहले वे 2003 में इस सीट से चुनाव जीते थे। यूनुस खान का नाम पार्टी उम्मीदवारों की पहली सूची में न आने पर हर कोई चौंक रहा है। उम्मीदवारों के चयन में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की चली है। यूनुस खान सीएम राजे के सबसे करीबी हैं और उनका नाम पहली सूची में नहीं होना कुछ खास माना जा रहा है।
पहली सूची में नाम न आने पर यूनुस खान निराश
पहली सूची में नाम नहीं आने के बाद यूनुस खान भी कुछ निराश से नजर आने लगे हैं। जब उनसे टिकट के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि अगर पार्टी टिकट देगी तो चुनाव लड़ूंगा नहीं तो पार्टी का अनुशासित सिपाही होने के नाते काम करूंगा। वैसे यूनुस खान के खिलाफ राजपूतों, विशेषकर रावणा राजपूतों के विरोध के कारण भी पार्टी उनके बारे में जल्द निर्णय लेने से बच रही है। सवाल उठ रहा है कि क्या यूपी और गुजरात की तरह राजस्थान में भी पार्टी अपनी सम्पूर्ण हिन्दुत्व की लाइन पर चल रही है? क्योंकि यूनुस खान के अलावा भाजपा के पास अन्य किसी क्षेत्र से कोई मुसलमान उम्मीदवार नहीं बचा है।
मुस्लिमों का प्रतिनिधित्व घटा
पिछले विधानसभा चुनावों से राजस्थान में मुसलमानों का राजनीतिक प्रतिनिधित्व बहुत न्यून रह गया है। 200 सीटों वाली विधानसभा में मात्र भाजपा के ये दो ही विधायक हैं। राजस्थान की आबादी में मुसलमान करीब दस फीसदी हैं। प्रदेश की करीब 30 विधानसभा सीटों पर इनकी भूमिका निर्णायक मानी जाती है, लेकिन विधानसभा में प्रतिनिधित्व में आज मुसलमान उसी दो की न्यूनतम संख्या पर खड़ा है जहां से 1952 में उसका सियासी सफर शुरू हुआ था। एक मुख्यमंत्री बरकतुल्ला खां सहित अब तक करीब 90 मुसलमान विधायक चुने जा चुके हैं, जिनमें सबसे ज्यादा संख्या कांग्रेस के विधायकों की है। सबसे ज्यादा 13 मुसलमान विधायक 1998 में चुने गए थे। कामां, फतेहपुर, सवाईमाधोपुर, तिजारा, मकराना, पुष्कर, मूंडवा, मसूदा, नागौर, चौहटन, जौहरी बाजार मुसलमानों की प्रमुख सीटें रही हैं। लेकिन इन चुनावों में मुसलमान अपनी भावी दिशा को लेकर असमंजस में नजर आ रहा है।
कांग्रेस ने बढ़ाया असमंजस
एक तरफ जहां केंद्र में भाजपा सरकार बनने के बाद वह अपने को अलग-थलग महसूस कर रहा है वहीं कांग्रेस की सॉफ्ट हिन्दुत्व की राह ने उसके असमंजस को और गहरा दिया है।
पिछले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस से एक भी मुसलमान प्रत्याशी चुनाव नहीं जीत सका था। वैसे में भी इन चुनावों में कांग्रेस ने राजस्थान के चुनावी इतिहास का सबसे खराब प्रदर्शन किया था और उसे 200 में से मात्र 21 सीटें ही मिल सकी थीं। जबकि भाजपा ने दो मुसलमान चुनावों में उतारे और दोनों ही जीतने में कामयाब रहे।
अब फिर से मुसलमानों की उम्मीद कांग्रेस पर आ टिकी है। राजस्थान विधानसभा का इतिहास बताता है कि जब भी मुसलमान विधायक अच्छी तादाद में चुने गए हैं तब राज्य में कांग्रेस की सरकार बनी है।