यहां 6 महीने पहले ही रावण की काट दी जाती है नाक, फिर होता ​है ये...

दरअसल मध्यप्रदेश के रतलाम जिले का में गांव ऐसा है, जहां 10 सिरों वाले इस पौराणिक पात्र की मूर्ति की नाक काटकर छह महीने पहले ही उसका प्रतीकात्मक अंत कर दिया जाता है।

Update: 2023-07-19 02:51 GMT

भोपाल: शारदीय नवरात्रि चल रहा है, आज रामनवमी है। दशहरे के दिन पूरे देश में रावण का पुतला जलाकर पर्व को बड़े ही उल्लास के साथ मनाया जा रहा है। रावण दहन इस बार मंगलवार को है। तो आइये हम आपको बताते हैं दशहरे के बारे में...

दरअसल मध्यप्रदेश के रतलाम जिले का में गांव ऐसा है, जहां 10 सिरों वाले इस पौराणिक पात्र की मूर्ति की नाक काटकर छह महीने पहले ही उसका प्रतीकात्मक अंत कर दिया जाता है।

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इस गांव में शारदीय नवरात्रि के बजाय गर्मियों में पड़ने वाली चैत्र नवरात्रि में रावण के अंत की परंपरा है। यह अनूठी रिवायत सांप्रदायिक सद्भाव की मिसाल भी है, क्योंकि इसे निभाने में मुस्लिम समुदाय के लोग भी बढ़-चढ़कर मदद करते हैं। इंदौर से करीब 190 किलोमीटर दूर चिकलाना गांव में इस परंपरा के पालन से जुड़े परिवार के राजेश बैरागी ने बताया, 'चैत्र नवरात्रि की यह परंपरा मेरे पुरखों के जमाने से निभाई जा रही है। इसके तहत गांव के एक प्रतिष्ठित परिवार का व्यक्ति भाले से रावण की मूर्ति की नाक पर वार कर इसे सांकेतिक रूप से काट देता है।'

इसलिए काटी जाती है रावण की नाक

हिन्दी की प्रसिद्ध कहावत नाक कटना का मतलब है-बदनामी होना। लिहाजा रावण की नाक काटे जाने की परंपरा में यह अहम संदेश छिपा है कि बुराई के प्रतीक की सार्वजनिक रूप से निंदा के जरिए उसके अहंकार को नष्ट करते हैं।'

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राम और रावण की सेनाओं के बीच होता है वाकयुद्ध

बैरागी ने बताया कि परंपरा के तहत ढोल-नगाड़ों की थाप पर गांव के हनुमान मंदिर से चल समारोह निकाला जाता है। इसके साथ ही, राम और रावण की सेनाओं के बीच वाकयुद्ध का रोचक स्वांग होता है। इस दौरान हनुमान की वेश-भूषा वाला व्यक्ति रावण की मूर्ति की नाभि पर गदा से तीन बार वार करते हुए सांकेतिक लंका दहन भी करता है।

दशहरे पर नहीं होता रावण के पुतले का दहन

उन्होंने बताया कि शारदीय नवरात्रि के बाद पड़ने वाले दशहरे पर हमारे गांव में रावण के पुतले का दहन नहीं किया जाता है।'

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हिंदू-मुस्लिम मिलकर मनाते हैं यह पर्व

चिकलाना के उप सरपंच हसन खान पठान बताते हैं, 'इस परंपरा में सभी धर्मों के लोग शामिल होते हैं। इस दौरान मुस्लिम समुदाय भी आयोजकों की हर मुमकिन मदद करता है और पूरे गांव में त्योहार का माहौल होता है।'

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