RBI गवर्नर के साथ बैठक में इंडस्ट्री ने की दरों में कटौती की मांग
भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकान्त दास आज यानी गुरुवार को उद्योग जगत के प्रतिनिधियों के साथ बैठक करेंगे। बैठक में गवर्नर उद्योग जगत के मुद्दों और चिंताओं को समझने की कोशिश करेंगे। इससे पहले दास सरकारी और निजी बैंकों के प्रमुख के अलावा एनबीएफसी कंपनियों के साथ छोटे कारोबारियों के प्रतिनिधियों से मुलाकात कर चुके हैं।
मुंबई: बैंक और एनबीएफसी के बाद आज आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने इंडस्ट्री चैंबर्स के साथ बैठक की। इस बैठक में एफआईसीसीआई और एसोचैम के प्रतिनिधि समेत कई बड़े कारोबारियों ने हिस्सा लिया।
इंडस्ट्री ने एक सुर में गवर्नर से दरों में कटौती की मांग की। इस बैठक में रेपो रेट और सीआरआर में 0.5 फीसदी कटौती की मांग की गई। आरबीआई गवर्नर ने भी मांगों पर गौर करने का भरोसा दिया। उन्होंने कहा कि एमपीसी मीटिंग पर मांगों पर चर्चा होगी। आरबीआई गवर्नर ने ओपन मार्केट ऑपरेशन जारी करने का भी आश्वासन दिया।
इससे पहले दास सरकारी और निजी बैंकों के प्रमुख के अलावा एनबीएफसी कंपनियों के साथ छोटे कारोबारियों के प्रतिनिधियों से मुलाकात कर चुके हैं। दास ने पिछले महीने रिजर्व बैंक के 25वें गवर्नर के रूप में कार्यभार संभाला।
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रिजर्व बैंक के गवर्नर ने ट्वीट कर दी जानकारी
रिजर्व बैंक के गवर्नर ने ट्वीट कर यह जानकारी दी थी। उन्होंने कहा कि वह 17 जनवरी को उद्योग क्षेत्र के शीर्ष उद्योग मंडलों और संघों के साथ बैठक करने जा रहे हैं। दास की यह बैठक चालू वित्त वर्ष की छठी द्विमासिक मौद्रिक समीक्षा बैठक से पहले हो रही है। मौद्रिक नीति बैठक के परिणाम की घोषणा सात फरवरी को की जाएगी।
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उद्योग जगत की मांग
मुद्रास्फीति तथा कारखाना उत्पादन में गिरावट के बीच उद्योग जगत नीतिगत दरों में कटौती की मांग कर रहा है। दिसंबर में खुदरा मुद्रास्फीति घटकर 2.19 प्रतिशत के आठ माह के निचले स्तर पर आ गई है। इसके साथ ही थोक मुद्रास्फीति भी दिसंबर में घटकर आठ माह के निचले स्तर 3.80 प्रतिशत पर आ गई। रिजर्व बैंक मौद्रिक नीति में मुख्य रूप से खुदरा मुद्रास्फीति के आंकड़ों को संज्ञान में लेता है। सरकार ने रिजर्व बैंक को मुद्रास्फीति को चार प्रतिशत के दायरे में रखने को कहा है।
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आरबीआई के पूर्व गवर्नर ऊर्जित पटेल के अचानक हुए इस्तीफे के बाद नौकरशाह शक्तिकांत दास को नया गवर्नर बनाया गया था। पटेल के इस्तीफा से पहले सरकारी मंत्रियों समेत अन्य हितधारकों ने इस बात की शिकायत की थी कि वह उद्योग जगत की चिंताओं को नहीं समझ रहे हैं।