रील नहीं, रियल लाइफ का सच है पकड़ौआ ब्याह

Update:2019-08-09 13:16 IST

शिशिर कुमार सिन्हा

बेगूसराय/पटना: राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की जन्मभूमि है बेगूसराय। बिहार का लेनिनग्राद भी कहा जाता है बेगूसराय को। टीवी पर एक सीरियल ‘बेगूसराय’ भी आ चुका है। अब फिल्में। एक आ गई और एक बन रही है। फिल्में कितनी सफल और चर्चित रहती हैं, यह तो वक्त बताएगा लेकिन जिस विषय पर ये फिल्में हैं, वह हमेशा से बेगूसराय को चर्चा में रखता है - ‘पकड़ौआ ब्याह।’ यानी, अगवा कर शादी। अगवा भी लडक़ी नहीं, लडक़े को अगवा कर शादी। देश में बेगूसराय इसके लिए कुख्यात रहा है। आज से नहीं दशकों से। कहा जाता है कि इलाके में इसकी शुरुआत दहेज मांगने वालों को सबक सिखाने के लिए वामपंथियों ने की थी लेकिन बाद में यह ट्रेंड बन गया। ऐसा ट्रेंड कि एक समय भूमिहार, ब्राह्मण समेत कई ऊंची जातियों में लोग अपने बेटे को मैट्रिक परीक्षा केंद्र पर अकेले नहीं छोड़ते थे, खासकर अंतिम दिन। जिनके बेटों की नौकरी लगी, वह उन्हें अपने गांव-घर नहीं आने देते थे। पता नहीं, किसकी नजर हो। पता नहीं, कब-कौन उठा ले जाए।

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बखरी अनुमंडल मुख्यालय के मक्खाचक गांव में देवनंदन मिश्र का घर है। वह अब जीवित नहीं हैं। जब तक जीवित रहे, यह दु:ख उनके साथ रहा कि वह अपने छोटे बेटे को कुछ बना नहीं सके। वजह यही था - पकड़ौआ ब्याह। छोटे बेटे रंजन मिश्र के बच्चे अब बड़े हो गए हैं। वह भी अपने माता-पिता की कहानी जानते हैं। संस्कृत विद्यालय के शिक्षक देवनंदन मिश्र अपने बेटे रंजन की पढ़ाई दुरुस्त करने में लगे थे लेकिन किसी और को यहां दूसरी संभावना दिख रही थी। एक दिन रंजन मिश्र के लापता होने की खबर आई। कुछ दिन बाद पिटे-पिटाए रंजन एक कमसिन लडक़ी को बहू के रूप में लेकर पहुंच गए। परिवार स्वीकार करने की स्थिति में नहीं था लेकिन डर की मजबूरी थी। इसके बाद रंजन मिश्र को वापस ट्रैक पर कोई नहीं ला सका। बखरी के ही राजीव फिर भी ट्रैक पर लौट आए, क्योंकि जबरिया उनकी पत्नी बनीं सुमन को घर वालों ने स्वीकार कर लिया और लडक़ी ने भी उस घाव को भरने में ससुरालियों की मदद की।

हर इलाके का यही हाल

यह काम बेगूसराय के साथ बिहार के लगभग हर उस इलाके में हो रहा है, जहां भूमिहार-ब्राह्मणों में किसी के पास बहुत जमीन है और किसी के पास कुछ भी नहीं। दहेजमुक्त शादी के नाम पर कुछ लोग अपनी बेटियों से मुक्ति पाने का यह रास्ता जरूर अपना रहे हैं। जबरिया लडक़े को उठाया और बंदूक के बल पर शादी कर दी, यह सोचे बगैर कि उस लडक़ी की आने वाली जिंदगी कैसी होगी। पिछले दिनों पहले पटना में फैमिली कोर्ट ने ऐसी ही एक शादी को नाजायज बताते हुए लडक़े को बड़ी राहत दी थी लेकिन बड़ा सवाल यह है कि इसमें परिवार वालों की मनमानी का शिकार हुई लडक़ी का क्या दोष?

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वैशाली के जंदाहा की सुमन बताती हैं कि उन्हें तो पता ही नहीं था कि परिवार वालों ने उनकी जबरिया शादी प्लान कर रखी है। वह फुआ के घर शादी समारोह में शामिल होने पहुंची थीं कि अचानक पता चला कि यहीं उनकी भी शादी होगी। लडक़े के बारे में पूछने पर एक कमरा खोलकर दिखाया गया कि यह जो बांधकर रखा गया है वही होने वाला दूल्हा है। भौंचक होकर भी वह विरोध नहीं कर सकी। बाद में ससुराल पहुंची तो काफी कुछ सहते-सहते छह-सात साल बाद लोगों ने तब स्वीकार किया, जब दो बच्चे हो गए।

फिर बढ़ीं घटनाएं

1995 के आसपास कई घरों में ऐसी बहुओं को अस्वीकार किए जाने के मामले सामने आने के बाद जबरिया शादी का प्रचलन थोड़ा घटा लेकिन अब फिर ऐसे मामले बार-बार चर्चा में आ रहे हैं। जो मामले चर्चा में नहीं, वह भी नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो और पुलिस मुख्यालय के रिकॉर्ड में जरूर दर्ज हैं। बिहार पुलिस मुख्यालय के आंकड़े बताते हैं कि साल 2014 में 2526, 2015 में 3000, 2016 में 3070 और 2017 में 3400 से ज्यादा अपहरण जबरिया शादी के लिए हुए। साल 2018 में जबरिया शादी के 4301 मामले दर्ज हुए, जबकि इस साल अब तक करीब 2100 मामले दर्ज हो चुके हैं। एनसीआरबी की रिपोर्ट भी इन आंकड़ों को सही करार देती है। एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार बिहार में अपहरण के केस में सबसे ज्यादा 18 से 30 साल तक के युवा शिकार बने हैं। विशेषज्ञों के अनुसार इनमें से 70 फीसदी मामले आज भी जबरिया शादी के हैं।

पुलिस भी हो रही मैनेज

जबरिया विवाह की कहानियां 1980 से 2000 के बीच खूब सुनाई देती थीं। ऐसा नहीं कि अब ये खत्म हो गया है। इसी साल सहरसा में 17 साल के एक लडक़े की 23 साल की लडक़ी से जबरन शादी का मामला सामने आया था। मैथिल ब्राह्मण बहुल सहरसा इस मामले में बेगूसराय के बाद दूसरे नंबर पर कहा जा सकता है। यहां बेगूसराय की तरह हर सीजन कुछ मामले चर्चा में आते हैं और कुछ दबकर रह जाते हैं। ब्राह्मणों में दबकर इसलिए भी रह जाते हैं क्योंकि या तो गौना के नाम पर लडक़े-लडक़ी को कुछ दिनों तक अपने यहां ही रख लिया जाता है या फिर दूल्हे को धमकियों के साथ विदा कर दिया जाता है। ऐसे मामलों में ज्यादातर दूल्हे पुलिस के पास डर से पहुंचते नहीं हैं और जो पहुंचते हैं, उन्हें देर से आने की बात कह पुलिस बैरंग लौटा देती है। 2017 में बेगूसराय से सटे मोकामा में एक इंजीनियर की जबरिया शादी का वीडियो वायरल हुआ था। विनोद ने शादी से लौटने के बाद एफआईआर दर्ज कराने की कोशिश की लेकिन पुलिस आनाकानी करती रही। कोर्ट की लंबी लड़ाई के बाद विनोद को सफलता मिली। मई 2019 में कोर्ट ने इसे अगवा कर जबरन शादी का मामला मानते हुए अमान्य करार दिया। यह अलग बात है कि विनोद आज भी जबरन शादी कराने वालों की धमकियां झेल रहे हैं।

उलटा फंसाने के भी केस

शेखपुरा निवासी रवीन्द्र कुमार झा के १५ वर्षीय बेटे को 2013 में कुछ लोगों ने अगवा कर लिया और 11 साल की बच्ची से शादी करा दी। रवींद्र ने इस शादी को मानने से इनकार कर दिया तो नवादा में लडक़ी वालों ने दहेज प्रताडऩा का केस कर दिया। रवींद्र दहेज के केस में उलझे रहे और शादी भी अमान्य नहीं हो सकी। ऐसे कई केस हैं।

आम तौर पर पकड़ौआ ब्याह में लडक़े वालों को लडक़ी वाले पहले ही कदम से डरा चुके रहते हैं, इसलिए ज्यादातर लोग चुपचाप इज्जत बचाने में भलाई समझते हैं। जहां लडक़ा अड़ गया या लडक़े के परिवारवाले पुलिस या कोर्ट में गए तो लडक़ी वाले पहले तो धमकाते हैं, फिर भी बात नहीं बनने पर फर्जी मामलों में फंसा देते हैं। किसी भी स्थिति में लडक़ी को ही परेशानी का सामना करना पड़ता है। फिर भी लडक़ी के परिवारवाले इसकी चिंता नहीं करते और डरा धमका कर ही लडक़े वालों को दबाने की बात कहते हैं। लड़कियां आम तौर पर अपने साथ हो रहे व्यवहार को मायके तक नहीं पहुंचने देतीं।

पहले एग्जाम सेंटर से उठा लेते थे, अब कहीं से भी

1980 से 1995 के बीच बिहार में जबरिया शादी के किस्से खूब सुने जाते थे। बेगूसराय तो इसका केंद्र ही था। फरवरी-मार्च में एग्जाम का सीजन होता था और इस इलाके में शादियां भी किसी न किसी पंचांग के नाम पर हो जाती थीं। ऐसे में एग्जाम सेंटर से परीक्षा के अंतिम दिन लडक़ों को उठा ले जाने के केस खूब सामने आते थे। परिवार वाले अपने बेटों की रक्षा बेटियों से ज्यादा करते थे। अब स्थितियां बदली हैं। लडक़ों को घर में रखना संभव नहीं है। इसके अलावा इसके लिए बाकायदा एक्सपर्ट अपराधियों का गिरोह भी सक्रिय है। लडक़ी वाले दहेज में भले पैसा न खर्च करें, लडक़ा उठाकर लाने के लिए गुंडों पर जरूर खर्च कर देते हैं। यही कारण है कि अब अंतर-जिला भी जबरन शादियां कराई जा रही हैं।

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