असहमति का सम्मान अपरिहार्य

राजस्थान प्रकरण पर सुप्रीम कोर्ट का अंतिम निर्णय नहीं आया है। लेकिन सुनवाई के दौरान उसकी टिप्पणी प्रजातांत्रिक व संवैधानिक व्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है।

Update:2020-07-25 11:22 IST

डॉ दिलीप अग्निहोत्री

राजस्थान प्रकरण पर सुप्रीम कोर्ट का अंतिम निर्णय नहीं आया है। लेकिन सुनवाई के दौरान उसकी टिप्पणी प्रजातांत्रिक व संवैधानिक व्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है। इसके अंतर्गत असहमति को महत्व दिया गया। कहा गया कि असहमति की आवाज की दबाना प्रजातन्त्र के अनुकूल नहीं है। अब तो अशोक गहलोत के बयानों से प्रमाणित है कि उनकी पार्टी में असन्तोष चल रहा था। ऐसे में असन्तोष या असहमति यदि अमर्यादित नहीं है,तो अनुचित नहीं कहा जा सकता। यह बात अशोक गहलोत को समझनी चाहिए।राजस्थान का वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य इसी असहमति पर ही आधारित है। कांग्रेस के भीतर असहमति की आवाज असतित्व में थी। पिछले अठारह महीने से यह आवाज आंतरिक सीमाओं में थी।

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इसके बाद शायद धैर्य नहीं बचा होगा। इसलिए यह आवाज सार्वजनिक हो गई। सचिन पायलट की अगुवाई में कांग्रेस के ही अनेक विधायकों ने विद्रोह कर दिया। ये सभी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से असंतुष्ट थे। अभी तक लग रहा था कि राजस्थान कांग्रेस का आंतरिक असन्तोष अधिक पुराना नहीं है। कतिपय मुद्दों पर मुख्यमंत्री व उपमुख्यमंत्री के बीच मतभेद के कयास लगते थे। लेकिन अब तो अशोक गहलोत ने खुद ही पूरी स्थिति साफ कर दी है। वैसे उन्होंने सचिन पायलट को घेरने के लिए ही बयान दिए थे। लेकिन उनके बयान पूरी तस्वीर को साफ करने वाले है। उनके पहले बयान से यह उजागर हुआ कि असहमति अठारह महीने पुरानी है। अशोक गहलोत यहीं तक नहीं रुके। वह सचिन के पूरे राजनीतिक कैरियर पर ही निशाना लगाने लगे।

इससे यह प्रमाणित हो गया कि सचिन पायलट से वह हमेशा असन्तुष्ट व असहमत ही रहे है। इनके बयान अभी सार्वजनिक हुए है,लेकिन मतभेद तो आठ वर्ष से चल रहा है। यह बात स्वयं गहलोत के बयानों से उजागर हुई है। इसमें उनके एक सहयोगी विधायक ने भी तड़का लगाया है। कांग्रेस में शामिल हुए एक बसपा विधायक गिरिराज मलिंगा ने पिछले वर्ष की कथित घटना का उल्लेख किया। कहा कि सचिन पायलट ने उन्हें भाजपा में जाने के लिए पैतीस करोड़ रुपये की पेशकश की थी। लेकिन इनका जमीर जाग उठा,उन्होंने पैतीस करोड़ रुपये ठुकरा दिए। इस वर्ष उनका जमीर जाग गया है। यह भी दावा किया कि उन्होंने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को भी इसकी जानकारी दी थी। यह आरोप सही है तो यह भी मानना पड़ेगा कि कांग्रेस में पहले से असन्तोष था,और गहलोत ने इसके समाधान का प्रयास नहीं किया। लेकिन बयान की सच्चाई पर संदेह है। एक विधायक को भाजपा में भेजने से सरकार पर कोई फर्क नहीं पड़ना था।

ऐसे में कोई इसके लिए पैतीस करोड़ रुपये दांव पर कैसे लगा सकता था। इसके अलावा अशोक गहलोत आज पूंछ रहे है कि सचिन के पास वकीलों की महंगी फीस देने का धन कहाँ से आ रहा है। मलंगा और गहलौत के बयानों को जोड़कर देखे तो दिलचस्प निष्कर्ष निकलता है। इसका मतलब है कि सचिन पायलट जब उनके सरकार में उपमुख्यमंत्री थे,तब उनके लिए एक विधायक को निरर्थक पैतीस करोड़ रुपये देने की क्षमता रखते थे,सरकार से हटते ही उनके लिए वकीलों की फीस देना कठिन हो गया। गहलोत विचार करें कि ऐसे आरोप से उनकी सरकार की कैसी छवि बन रही है। इतना ही नहीं अशोक गहलोत सात वर्ष पहले तक लौट गए। तब वह सचिन पायलट को कैसा समझते थे,इसको उन्होंने स्वयं सार्वजिक किया।

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कहा कि हम जानते थे कि वो निकम्मा है, फिर भी पिछले सात साल में एक बार भी प्रदेशाध्यक्ष को हटाने की मांग नहीं की। गहलौत कहते है कि प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सतिश पूनिया के पीछे सचिन पायलट भी छिपकर दिल्ली जाते थे। अकेले खुद गाड़ी ड्राइव कर जाते थे। लगता नहीं कि इतनी जानकारी के बाद अशोक गहलोत अब तक मौन रह सकते थे।

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