कर्नाटक: हिम्मते मर्दा तो मददे खुदा यानी जो शख्स हिम्मत करके किसी काम को करता है तो ऊपर वाला भी उसकी मदद करता है। इस कहावत को अपनी जिंदगी में सच साबित किया 103 साल की सालुमरादा थिमक्का ने जिन्होंने कर्नाटक राज्य के रामनगर जिले में हुलुकल और कुडूर के बीच नेशनल हाईवे के दोनों तरफ करीब चार किलोमीटर की दूरी तक अब तक 384 बरगद के पेड़ लगाए हैं।
आगे की स्लाइड में जानें सालुमरादा थिमक्का की पूरी कहानी ...
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कभी एक सामान्य मजदूर की तरह काम करने वाली थिमक्का ने अपने अकेलेपन से बचने के लिए बरगद का पेड़ लगाना शुरू किया था। बाद में उनका शौक बढ़ता ही गया और एक के बाद एक उन्होंने इतने सारे पेड़ लगा दिए। इन पेड़ों को उन्होंने मानसून के समय लगाया था, ताकि इनकी सिंचाई के लिए ज्यादा परेशानी का सामना न करना पड़े। अब इन पेड़ों की देखभाल कर्नाटक सरकार कर रही है।
प्रकृति के प्रति थिमक्का के असीम प्रेम को देखते हुए उनका नाम ‘सालूमरदा’ दे दिया गया। कन्नड़ भाषा में ‘सालूमरदा’ का मतलब वृक्षों की पंक्ति होता है। सिर्फ नाम ही नहीं, उन्हें अबतक कई सम्मान और पुरस्कारों से भी नवाजा जा चुका है।
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थिमक्का को मिले कई अवार्ड
-साल 1995 में उन्हें नेशनल सिटीजन्स अवार्ड दिया गया था।
-जबकि साल 1997 में उन्हें इंदिरा प्रियदर्शिनी वृक्षमित्र अवार्ड और वीरचक्र प्रशस्ति अवार्ड से सम्मानित किया गया था।
-इस अनोखे अंदाज में प्रकृति की सेवा के लिए थिमक्का को साल 2006 में कल्पवल्ली अवार्ड और साल 2010 में गॉडफ्रे फिलिप्स ब्रेवरी अवार्ड से सम्मानित किया गया था।
-उन्हें आध्यात्मिक गुरू रविशंकर द्वारा संचालित आर्ट ऑफ लिविंग व हम्पी युनिवर्सिटी द्वारा भी सम्मानित किया जा चुका है।
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-सालुमरादा काफी गरीब हैं। उनका जीवन सरकार की 500 रुपए की पेंशन पर चल रहा है।
-थिमक्का ने औपचारिक शिक्षा हासिल नहीं की है। वह साधारण परिवार से हैं।
-उनके परिवार में केवल उनके पति चिक्कय्या थे लेकिन साल 1991 में उनकी मृत्य़ु हो गई।
-सालुमरादा ने बाद में एक लड़के को गोद लिया जिसे वह पर्यावरण से प्रेम करने के लिए प्रेरित करती हैं।
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-सालुमरादा थिमक्का एक हॉस्पिटल शुरू करना चाहती है।
-उनका सपना है कि मैं एक हॉस्पिटल बनवाऊं और उन्हें उम्मीद है कि यह एक दिन जरूर पूरा होगा।
-हॉस्पिटल के लिए वह अभी भी कोशिश कर रही हैं और उन्होंने उम्मीद नहीं छोड़ी है।
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