शीला दीक्षित: जिसने जाम से रेंगती दिल्ली को दिए उंची उड़ानों वाले पंख

Update:2019-07-20 18:10 IST

नई दिल्ली: कांग्रेस की वरिष्ठ नेता शीला दीक्षित का शनिवार दोपहर को निधन हो गया। तबीयत बिगड़ने पर उन्हें राजधानी के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया था। वे 81 साल की थी।

शीला दीक्षित 15 साल तक दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं, फिलहाल दिल्ली कांग्रेस की अध्यक्ष थीं। आइये आज हम आपको विकास कार्यों से जुड़ी कुछ खास बातें बता रहे है।

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दिल्ली की सूरत ही बदल दी

पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को दिल्ली का चेहरा बदलने का श्रेय दिया जाता है। उनके कार्यकाल में दिल्ली में विभिन्न विकास कार्य हुए। अगर आपने शीला दीक्षित के कार्यकाल से पहले की दिल्ली देखी हो तो आपको शीला के कार्यकाल में हुए विकास आसानी से समझ आ जायेंगे।

दिल्ली में मेट्रो का जो जाल फैला है, फ्लाई ओवरों की संख्या बढ़ाकर ट्रैफिक जाम की समस्या से निजात दिलाई गई है, सरकारी अस्पतालों और स्कूलों की हालत सुधारी गयी है, दिल्ली को हरा-भरा किया गया है, वह सब शीला दीक्षित की देन है। दिल्ली की सार्वजनिक परिवहन सेवा आज पूर्णतया सीएनजी आधारित है तो इसका पूरा श्रेय शीला दीक्षित को ही जाता है।

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शालीन राजनीतिज्ञ

आज जब हम देखते हैं कि दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार का केंद्र सरकार के साथ हमेशा मनमुटाव रहता है तो शीला दीक्षित से सीख लेनी चाहिए कि उन्होंने वर्तमान सरकार के समान अधिकारों के अंतर्गत ही मुख्यमंत्री के रूप में शानदार काम करके दिखाया और तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के साथ भी कभी उनका मनमुटाव इस स्तर तक नहीं पहुँचा कि धरना प्रदर्शन की नौबत आ जाये।

शीला दीक्षित के लिये तो कहा भी जाता था कि वह राजनेता के रूप में नहीं बल्कि एक सीईओ के रूप में दिल्ली को सँवारने का काम करती हैं। शीला दीक्षित एक भद्र राजनीतिज्ञ थीं और इतिहास उन्हें एक अच्छा प्रदर्शन करने वाले ऐसे राजनीतिज्ञ के रूप में याद रखेगा जो हमेशा विरोधियों के साथ भी शालीन व्यवहार रखती थीं।

राजनीति के अंतिम दिन ठीक नहीं रहे

शीला दीक्षित वर्तमान में दिल्ली प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष थीं लेकिन दिल्ली प्रदेश कांग्रेस प्रभारी पीसी चाको के साथ उनकी नहीं बनती थी।

पीसी चाको लगातार शीला दीक्षित के अधिकारों को कम करते जा रहे थे जिससे प्रदेश कांग्रेस में विवाद भी हो रहा था। हालिया लोकसभा चुनावों में वह प्रदेश भाजपा अध्यक्ष मनोज तिवारी के खिलाफ लड़ी थीं लेकिन हार गयी थीं।

प्रदेश कांग्रेस प्रभारी पीसी चाको लोकसभा चुनावों के दौरान आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन करना चाहते थे लेकिन शीला दीक्षित इस गठबंधन के खिलाफ थीं। शीला के रुख को देखते हुए राहुल गांधी को भी पीछे हटना पड़ा था।

शीला दीक्षित जब तक मुख्यमंत्री रहीं तब तक भी पार्टी का एक धड़ा उनके खिलाफ ही रहा लेकिन आलाकमान का वरदहस्त शीला को प्राप्त होने के कारण 15 साल कोई उनका कुछ बिगाड़ नहीं पाया।

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गांधी परिवार की विश्वस्त

शीला दीक्षित को हमेशा गांधी परिवार का करीबी माना जाता रहा। सोनिया गांधी और राहुल गांधी, दोनों ही शीला दीक्षित का काफी सम्मान करते थे।

1998 में हुए लोकसभा चुनावों में जब सोनिया गांधी ने शीला दीक्षित को पूर्वी दिल्ली संसदीय सीट से भाजपा उम्मीदवार लाल बिहारी तिवारी के खिलाफ उम्मीदवार बनाया तो सभी चौंक गये थे।

हालांकि शीला दीक्षित चुनाव नहीं जीत पाई थीं लेकिन फिर भी सोनिया गांधी ने 1998 के दिल्ली विधानसभा चुनावों से पहले शीला दीक्षित के हाथों में दिल्ली कांग्रेस की कमान सौंप दी।

यह वह दौर था जब दिल्ली में सज्जन कुमार सब पर भारी थे। शीला दीक्षित ने जबरदस्त रणनीति बनाई और सुषमा स्वराज के नेतृत्व वाली दिल्ली की सरकार को उखाड़ फेंका और 15 साल तक दिल्ली की सत्ता पर एकछत्र राज किया।

भ्रष्टाचार के लगे आरोप

लेकिन शासन के अंतिम वर्ष में कांग्रेस सरकार पर भ्रष्टाचार के कई आरोप लगे और उसी दौरान आम आदमी पार्टी का उदय हुआ। अन्ना हजारे के लोकपाल आंदोलन से ऐसी लहर पैदा हुई कि शीला दीक्षित सरकार को सत्ता से बुरी तरह बेदखल होना पड़ा।

शीला दीक्षित को बाद में कांग्रेस आलाकमान ने राज्य की राजनीति से हटा दिया और उन्हें केरल का राज्यपाल बनाकर भेज दिया लेकिन 2014 में केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद शीला दीक्षित ने यह पद छोड़ दिया।

शीला दीक्षित को उत्तर प्रदेश के पिछले विधानसभा चुनावों के दौरान कांग्रेस ने अपना मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार भी घोषित किया था लेकिन जब विधानसभा चुनावों के लिए कांग्रेस का समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन हो गया तो शीला दीक्षित की उम्मीदवारी वापस ले ली गयी।

दिल्ली के लिए तैयार किया विकास का मॉडल

बहरहाल, शीला दीक्षित ने दिल्ली का जो विकास किया वह भी विकास का एक मॉडल हो सकता है। वह कांग्रेस के उन कुछ नेताओं में शुमार थीं जिनका अपना जनाधार था। शीला दीक्षित का जाना कांग्रेस पार्टी के लिए तो बड़ा झटका है ही गांधी परिवार ने भी अपना एक विश्वस्त साथी खो दिया है।

अगले साल होने वाले दिल्ली के विधानसभा चुनावों से पहले शीला दीक्षित का यूँ चला जाना कांग्रेस पार्टी की संभावनाओं को भी कमजोर कर गया है।

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