मोदी का रवैया तानाशाह जैसा, लोकतंत्र के लिए घातक, राजग के पुराने साथी का आरोप

बादल ने कहा प्रधानमंत्री अपने किसी भी फैसले पर पीछे नहीं हटना चाहते। जबकि लोकतंत्र में आगे बढ़ना और पीछे हटना चलता रहता है। इस तरह के अड़ियल रुख से पुतिन की तरह की तानाशाही झलकती है। 

Update: 2021-03-12 07:17 GMT
मोदी का रवैया तानाशाह जैसा, लोकतंत्र के लिए घातक, राजग के पुराने साथी का आरोप

रामकृष्ण वाजपेयी

नई दिल्ली: शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने कहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यदि नये कृषि कानूनों को वापस लेते हैं तो वह एक अधिक मजबूत नेता के रूप में उभरेंगे। शिरोमणि अकाली दल खुद के किसानों की सबसे बड़ी पार्टी होने का दावा करती है। मौजूदा किसान आंदोलन को देखते हुए बादल की यह बात महत्वपूर्ण है। बादल का कहना है कि भारत जैसे देश में प्रधानमंत्री को अपने रास्ते पर चलने के लिए मजबूर करने के बजाय कानूनों को वापस लेना चाहिए। बादल ने यह बात एक मीडिया ग्रुप से बातचीत में कही है। वह पंजाब में कांग्रेस को दरकिनार करने की रणनीति पर बात कर रहे थे।

प्रधानमंत्री स्थिति को संभाल सकते हैं

बादल ने कहा प्रधानमंत्री अपने विचारों पर स्थिर हैं और अपने फैसलों पर बहुत दृढ़ हैं। वह अपने किसी भी फैसले पर पीछे नहीं हटना चाहते। जबकि लोकतंत्र में यह सही नहीं है। लोकतंत्र में आगे बढ़ना और पीछे हटना चलता रहता है। इस तरह के अड़ियल रुख से पुतिन की तरह की तानाशाही झलकती है। भारत जैसे देश में हम चाहते हैं कि अपने रास्ते पर चलने के लिए मजबूर करने के बजाय प्रधानमंत्री स्थिति को संभाल सकते हैं।

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(फोटो- ट्विटर)

बताया क्यों खिंच रहा ये आंदोलन

अकाली नेता ने कहा कि जब हम सरकार में थे तब हमने केंद्र सरकार से कहा था कि यह एक जनआंदोलन है और लोगों के जीवन पर प्रभाव के चलते वह वापस नहीं जाएंगे। किसान यह मानते हैं कि नये कृषि कानूनों से वह अपनी जमीन और जीवनस्तर खो देंगे। जब लोगों को धकेला जाएगा तो उनके पास संघर्ष के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता। यही वजह है कि आंदोलन इतना लंबा खिंच गया है। यह एक राज्य से दूसरे राज्य में फैल रहा है और लगातार फैलता जा रहा है। प्रत्येक किसान सहमत है कि कानून वापस होने चाहिए।

सरकार से किसने देशभक्ति का प्रमाणपत्र मांगा

किसान आंदोलन के पीछे विदेशी हाथ की संभावना से इंकार करते हुए बादल ने कहा कि ये गरीब किसान हैं। और बूढ़ी महिलाएं हैं जो सड़कों पर हैं। इनके पीछे कौन सा विदेशी हाथ होगा। इस सरकार से जो सहमत हैं वह राष्ट्रवादी हैं और जो असहमत हैं वह राष्ट्रविरोधी हैं। लेकिन सवाल है कि इस सरकार से किसने देशभक्ति का प्रमाणपत्र मांगा है। यदि आप किसानों को खालिस्तानी कहते हैं तो उनसे बात क्यों कर रहे हैं।

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(फोटो- ट्विटर)

अकाली नेता ने उठाए ये सवाल

अकाली नेता ने सवाल उठाए हैं कि क्या ये कानून विविधीकरण की गारंटी देते हैं? क्या वे रोजगार की गारंटी देते हैं? मुझे एक उदाहरण दें कि वे और अधिक रोजगार कैसे पैदा करेंगे। देश में सबसे अच्छी मंडी प्रणाली, सबसे अच्छी खरीद प्रणाली पंजाब में है, क्यों वे देश भर में पंजाब प्रणाली की नकल नहीं करते हैं?

आज भी, निजी क्षेत्र की कंपनियां पंजाब में आ सकती हैं और फसल खरीद सकती हैं, लेकिन कम से कम वे निगरानी में हैं। किसानों की रक्षा करने वाला एक सरकारी हाथ है। मोदी सरकार निजी क्षेत्र को सेना और पुलिस क्यों नहीं देती है?

कृषि क्षेत्र को सुधार की जरूरत है लेकिन धरातल पर आधारित, किताबी ज्ञान से किसी का भला नहीं होगा। ये कानून ब्यूरोक्रेट्स ने बनाए हैं। हमसे शिरोमणि अकाली दल से राय नहीं ली गई।

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