शिव बाड़ी, जहां द्रोणाचार्य की पुत्री संग बालक बन खेलते थे शिव

उत्‍तर भारत का पर्वतीय क्षेत्र हिमाचल प्रदेश जिसके बारे में कहा जाता है कि यहां की धरती के कण-कण में सर्वशक्तिमान ईश्‍वर का वास है।

Update:2020-02-14 09:46 IST
शिव बाड़ी, जहां द्रोणाचार्य की पुत्री संग बालक बन खेलते थे शिव

दुर्गेश पार्थसारथी

ऊना (हिमाचल प्रदेश): उत्‍तर भारत का पर्वतीय क्षेत्र हिमाचल प्रदेश जिसके बारे में कहा जाता है कि यहां की धरती के कण-कण में सर्वशक्तिमान ईश्‍वर का वास है। पग-पग पर ऋषि-मुनियों का आश्रम है, समाधि है। जहां रहते हुए उन्‍होंने सांसारिक बंधनों को तोड़ भक्ति के पथ पर अग्रसर होते हुए अपनी साधना-आराधना से समस्‍त चराचर के स्‍वामी को धरती पर आने को विवश कर दिया।

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महाभारत से है संबंध, द्रोणाचार्य ने की थी तपस्‍या

भगवान भोले शंकर का शिवबाड़ी नाम यह स्‍थान भी उन्‍हीं में से एक है, जिसका संबंध महाभारत से जोड़ा जाता है। यह स्‍थान गुरु द्रोणाचार्य सहित अनेक सिद्ध महात्‍माओं की तपस्‍थली भी रहा है। चिंतापूर्णी मंदिर से लगभग 17 किमी की स्थित यह मनोरम स्‍थल लगभग एक वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र फल में घने जंगों के मध्‍य फैला हुआ है। यहां सूर्य की सूर्य की रोशी भी पत्‍तों की ओट से झांकती हुई नजर आती है।

चारों तरफ फैली प्राकृतिक छंटा, पक्षियों के कलरव, दूर से ही दृष्टिगोचर होती पर्वतीय शृंखलाएं, उनके फपर उड़ते हुए बादलों का झुंड, ऊपर से चलती मंद-मंद सुगंधित शीतल हवा का झोंका मानव मन को इस कदर आकर्षित करता है कि यहां बार-बार आने को मन करता है। इन घने वनों में पीपल व बरगद के दरख्‍तों से झूलती इनकी लंबी-लंबी जटाएं देख किसी भी चंदन के वृक्ष से लटकते हुए भुजंगा आभास कराती हैं।

पिता के साथ द्रोण पुत्रि ने की थी तपस्‍या

सामान्‍य जनमानस में प्रचलित एक दंतकथा के अनुसार आज से हजारों वर्ष पूर्व इसी स्‍थ्‍कन पर गुरु द्रोणाचार्य अपना आश्रम बना कर अर्धनारीश्‍वर महादेव की भक्ति में सदैव लीन हो उनकी आराधना किया करते थे। इनकी भक्ति भावना से प्रेरित हो कर उनकी नन्‍हीं पुत्री यज्‍याति पित की ही भाति शिव प्रेम में मग्‍न हो 'ओम नम: शिवाय' महामंत्र का जाप करने लगी। लोभ रहित एवं सांसारिक भावनाओं से दूर बालिका की नि:स्‍वार्थ तपस्‍या के वशीभूत हो देवाधिदेव महादेव ने उस बालिका को न केवल दर्शन दिए बल्कि उसकी भक्तिभावना से इसकदर बंधे कि उसे न केवल दर्शन दिए बल्कि इसी स्‍थान पर प्रत्‍येक वर्ष अपने आगमन का वर दे डाला।

बताया जाता है कि उस दिन से प्रति वर्ष वैशाख संक्राति के अगले शनिवार को भगवान शिव यहां आते हैं। लोकोक्तियों अनुसार इस स्‍थान पर फैले घने जंगलों की लकडि़यों का उपयोग मात्र शव जलाने व भंडारा करने के लिए किया जाता है। ऐसी मान्‍यता है कि यदि इन लकडि़यों का उपयोग अन्‍य किसी काम में किया जाता है तो अपशकुन होने का डर बना रहता है। यहां स्थित शिवलिंग एक विशेष प्रकार से जमीन के अंदर धंसा हुआ है। साथ ही शिव प्रिय शनि देव का दीप हमेशा प्रज्‍जवलित रहता है।

वर्षभर लगा रहता है भक्‍तों का तांता

वैसे तो भगवान शिव के इस स्‍थान का कण-कण महिमा मंडित है, जिसकी एक मात्र झलक पाकर अपने दुखों से क्षणभर में मुक्ति पाने की लालसा लिए इस मंगलकारी मनोरम स्‍थान पर वर्ष भर शिवभक्‍तों का तांता लगा रहता है। हर-हर महादेव के जयकारों से गूंजता यह स्‍थान महाशिवरात्रि के दिन तो पूर्ण रूपेण शिव मय होता है। जब भक्‍त लंबी-लंबी कतारों में घंटों खड़े हो हाथों में श्रद्धा के सुमन व मन त्रिकालदर्शी महाकाल के दर्शनों की ज्‍योति जलाए, मुरादों का दामन फैला मंदिर की तरफ एक-एक इंच सरकते हैं तो आध्‍यात्मिकता सजीव हो उठती है। इस दिन तो शिव भक्‍तों की संख्‍या ५० हजार के आंकड़े को पार कर जाती है।

प्रकृति प्रेमियों के लिए मनोरम है यह स्‍थान

भगवान शिव को समर्पित यह स्‍थान (शिव बाड़ी) तीर्थ स्‍थल के साथ-साथ प्रकृति प्रेमियों के पर्यटन स्‍थल भी है। मशीनी कोलाहल और प्रदूषण से मुक्‍त यह स्‍थल घने जंगलों के बीच है। जहां छोटे-छोटे शिव लिंग व संतों की समाधियों के अलावा कुछ नजर नहीं आता। यदि कुछ दिखता है कि हरेभरे जंगल, बरगद, पीपल व खैर के पेड़ और सुनाई देता है तो मंदिरों की घंटियों के साथ पंक्षियों का कलरव। यहां दूर-दूर तक दिख रही प्रकृति की सुंदरता ईश्‍वर की सर्वव्‍यपकता को बोध कराती है।

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कैसे पहुंचे

यह पवित्र स्‍थान होशियारपुर-चिंतापूर्णी मार्ग पर गगरेट जिला ऊना (हिमाचल प्रदेश) से एक किमी उत्‍तर की तरफ अवस्थित है। यह वही स्‍थान है जहां द्रोणाचार्य और उनकी पुत्री यज्‍याति ने मिलकर भगवान शिव की तपस्‍या की थी। यहां पहुंचने के लिए दिल्‍ली, अंबाला, लुधियान, जालंधर सहित पंजाब के सभी जिलों से सीधी बस सेवा है। रेल मार्ग जालंधर या होशियारपुर तक पहुंचा जा सकता है। इसके यहां से बस सेवा लेनी होगी।

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