टॉप-10 POLLUTED सिटी: यूपी के भी 6 नाम, जहां ले रहे लोग जहरीली हवा में सांस
देश के प्रदूषित शहरों की लिस्ट में 10 सबसे प्रदूषित शहरों में 6 उत्तर प्रदेश के हैं। गैर-सरकारी संगठन ग्रीनपीस इंडिया की रिपोर्ट में नोएडा, गाजियाबाद, बरेली, प्रयागराज, मुरादाबाद और फिरोजाबाद की आबोहवा बेहद खराब है।
नई दिल्ली: देश के प्रदूषित शहरों की लिस्ट में 10 सबसे प्रदूषित शहरों में 6 उत्तर प्रदेश के हैं। गैर-सरकारी संगठन ग्रीनपीस इंडिया की रिपोर्ट में नोएडा, गाजियाबाद, बरेली, प्रयागराज, मुरादाबाद और फिरोजाबाद की आबोहवा बेहद खराब है।
रिपोर्ट में दावा किया गया है कि नेशनल एम्बियेंट एयर क्वॉलिटी मॉनिटरिंग प्रोग्राम (एनएएमपी) में शामिल 287 भारतीय शहरों में से 231 में उच्च स्तर का वायु प्रदूषण बरकरार है। इन शहरों में पीएम-10 की मात्रा तय राष्ट्रीय मानक 60 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से कहीं ज्यादा दर्ज की गई है।
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रिपोर्ट में कहा गया है कि यूपी, बिहार, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, तेलंगाना, कर्नाटक और तमिलनाडु में कई ऐसे शहर हैं, जहां पीएम-10 का स्तर राष्ट्रीय मानक से अधिक है। बावजूद इसके उन्हें राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनएसीपी) का हिस्सा नहीं बनाया गया है। जनवरी 2019 में शुरू किए गए एनएसीपी के लिए 122 शहरों को चिन्हित किया गया था। हालांकि, अभी महज 102 शहर इस कार्यक्रम से जुड़े हैं। कुछ शहरों में हवा की गुणवत्ता सुधारने का काम भी शुरू हुआ है, लेकिन वायु प्रदूषण में ज्यादा कमी नहीं देखने को मिल रही है।
रिपोर्ट में कोयला खदानों के लिए मशहूर झारखंड के झरिया और धनबाद की हवा सबसे जहरीली है। साल 2018 में दोनों शहरों में पीएम-10 का वार्षिक औसत स्तर क्रमश: 322 और 264 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर रिकॉर्ड किया गया था।
2017 में सबसे दूषित भारतीय शहरों की सूची में आठवें पायदान पर काबिज दिल्ली 2018 में दसवें स्थान पर पहुंच गई है। हालांकि, यहां पीएम-10 की मात्रा अब भी तय राष्ट्रीय मानक से साढ़े तीन गुना, जबकि डब्ल्यूएचओ के मानकों से 11 गुना ज्यादा है।
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ग्रीनपीस इंडिया के मुताबिक मिजोरम के लुंगलेई और मेघालय के डॉकी की हवा सबसे साफ है। 2018 में दोनों शहरों में पीएम-10 का वार्षिक औसत स्तर क्रमश: 11 व 23 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर दर्ज किया गया। 2017 में यह क्रमश: 25 और 28 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर था।
प्रदूषण निगरानी कार्यक्रम में शामिल 80 फीसदी से ज्यादा भारतीय शहरों में पीएम-10 की मात्रा तय मानकों से अधिक है। इन शहरों को राष्ट्रीय स्वच्छ हवा कार्यक्रम में शामिल किए बगैर वायु प्रदूषण पर काबू पाना संभव नहीं होगा।
विशेषज्ञों के मुताबिक ग्रीनपीस के आंकड़े 2018 के हैं और बीते दो वर्षों में वायु प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए कई कदम उठाए गए हैं। इसलिए यह आंकड़े वास्तविकता को नहीं बताते। वायु प्रदूषण में सुधार के लिए उठाए गए कदमों का असर अगले साल की रिपोर्ट में दिखाई देगा। पर्यावरण मंत्रलय ने जनवरी 2019 में पांच साल के लिए नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (एनसीएपी) का आगाज किया था। इस कार्यक्रम के तहत देश के विभिन्न शहरों की वायु गुणवत्ता में वर्ष 2024 तक 20-30 फीसद कमी करने का लक्ष्य रखा गया था। इसके लिए आधार वर्ष 2017 तय किया गया था। ग्रीनपीस इंडिया की रिपोर्ट बताती है कि भारतीय शहर एनसीएपी के तहत चुने गए लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में सही ढंग से नहीं बढ़ रहे हैं।