समझौता मामले में विशेष अदालत ने कहा - सबूतों के अभाव में गुनहगारों को नहीं मिल पाई सजा 

समझौता एक्सप्रेस बम विस्फोट मामले में स्वामी असीमानंद और तीन अन्य आरोपियों को बरी करने वाली विशेष अदालत ने यहां कहा कि अभियोजन के सबूतों में गंभीर खामियां थी और विश्वसनीय एवं स्वीकार्य साक्ष्यों के अभाव के चलते हिंसा के इस नृशंस कृत्य में किसी गुनहगार को सजा नहीं मिल पाई।

Update: 2019-03-28 15:53 GMT

पंचकूला (हरियाणा): समझौता एक्सप्रेस बम विस्फोट मामले में स्वामी असीमानंद और तीन अन्य आरोपियों को बरी करने वाली विशेष अदालत ने यहां कहा कि अभियोजन के सबूतों में गंभीर खामियां थी और विश्वसनीय एवं स्वीकार्य साक्ष्यों के अभाव के चलते हिंसा के इस नृशंस कृत्य में किसी गुनहगार को सजा नहीं मिल पाई।

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उल्लेखनीय है कि एनआईए अदालत ने इस मामले में चारों आरोपियों - स्वामी असीमानंद, लोकेश शर्मा, कमल चौहान और राजिंदर चौधरी को 20 मार्च को बरी कर दिया था।

न्यायाधीश ने कहा कि आतंकवाद का कोई महजब नहीं होता और आमतौर पर यह पाया गया है कि जांच एजेंसियों में भी एक दुर्भावना घर कर गई है, जिसने मुस्लिम आतंकवाद, हिंदू कट्टरपंथ जैसे विभिन्न शब्द गढ़े।

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उन्होंने कहा कि किसी धर्म, समुदाय या जाति से जुड़े किसी आपराधिक तत्व को इस तरह के खास धर्म, समुदाय या जाति के प्रतिनिधि के तौर पर पेश नहीं किया जा सकता तथा समूचे समुदाय, जाति या धर्म को इस रूप में देखना पूरी तरह से गलत होगा।

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राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) अदालत के विशेष न्यायाधीश जगदीप सिंह ने 160 पन्नों के अपने फैसले में कहा, “मुझे गहरे दर्द और पीड़ा के साथ फैसले का समापन करना पड़ रहा है क्योंकि विश्वसनीय और स्वीकार्य साक्ष्यों के अभाव के चलते हिंसा के इस नृशंस कृत्य में किसी को गुनहगार नहीं ठहराया जा सका।

अभियोजन के साक्ष्यों में निरंतरता का अभाव था और आतंकवाद का मामला अनसुलझा रह गया।”

18 फरवरी 2007 को हरियाणा के पानीपत के पास हुआ था धमाका

गौरतलब है कि भारत और पाकिस्तान के बीच चलने वाली समझौता एक्सप्रेस में 18 फरवरी 2007 को हरियाणा के पानीपत के पास धमाका हुआ था। उस वक्त रेलगाड़ी अटारी जा रही थी जो भारत की तरफ का आखिरी स्टेशन है। इस बम विस्फोट में 68 लोगों की मौत हो गई थी।

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न्यायाधीश ने 28 मार्च को सार्वजनिक किये गए विस्तृत फैसले में कहा है, “अदालत को लोकप्रिय या प्रभावी सार्वजनिक धारणा या राजनीतिक भाषणों के तहत आगे नहीं बढ़ना चाहिए और अंतत: उसे मौजूदा साक्ष्यों को तवज्जो देते हुए प्रासंगिक वैधानिक प्रावधानों और इसके साथ तय कानूनों के आधार पर अंतिम निष्कर्ष पर पहुंचना चाहिए।”

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“संदेह चाहे कितना भी गहरा हो, साक्ष्य की जगह नहीं ले सकता”

उन्होंने कहा, “चूंकि अदालती फैसले कानून के मुताबिक स्वीकार्य साक्ष्यों पर आधारित होते हैं, इसलिए ऐसे में यह पीड़ा तब और बढ़ जाती है, जब नृशंस अपराध के साजिशकर्ताओं की पहचान नहीं होती और उन्हें सजा नहीं मिल पाती है।”

न्यायाधीश ने कहा कि, “संदेह चाहे कितना भी गहरा हो, साक्ष्य की जगह नहीं ले सकता।”

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