यहां है लालू यादव के गुनाहों का 'मकबरा! मामला जानकर हैरान हो जायेंगे आप

KMCEL नाम तो सुने ही होंगे आप, बताया जाता है यह लालू यादव के गुनाहों का 'मकबरा' है, कहा ये भी जाता है कि लालू ने किस तरह इंजीनियर्स को भीख मांगने पर मजबूर कर दिया था, इसकी मिसाल है निरसा के कुमारधुबी का KMCEL।

Update: 2019-12-04 12:37 GMT

रांची: KMCEL नाम तो सुने ही होंगे आप, बताया जाता है यह लालू यादव के गुनाहों का 'मकबरा' है, कहा ये भी जाता है कि लालू ने किस तरह इंजीनियर्स को भीख मांगने पर मजबूर कर दिया था, इसकी मिसाल है निरसा के कुमारधुबी का KMCEL।

बिहार के पूर्व सीएम लालू यादव के फैसलों ने कैसे एक शहर को बर्बाद कर दिया इसकी मिसाल है KMCEL, कैसे एक फैसले ने हजारों परिवारों का पालनहार छीन लिया, कौन पूछेगा इस गुनाह के मकबरे पर लालू से सवाल...

लालू यादव, लालू जेल में है। उनसे कौन सवाल पूछेगा? बिहार और झारखंड की प्रगति की रफ्तार में लालू यादव का जो ऐतिहासिक योगदान है उसकी तस्वीरें देखकर आत्मा कांप जाती है। झारखंड में एक ओर चुनाव हो रहा है, विधानसभा चुनाव के लिए निरसा में भी चुनावी माहौल है।

मगर गायब है इस शहर का सबसे बड़ा मुद्दा, औद्योगिक शहर निरसा के खत्म होने का मुद्दा, कुमारधुबी मेटल कास्टिंग एंड इंजीनियरिंग लिमिटेड की ये दरों-दीवारें राजनीतिक अपराध की वो दास्तां है जिसे सुनकर आप नेताओं और उनकी नेतागिरी से नफरत करने लगेंगे।

कभी जिस फैक्टरी का नाम पूरे एशिया में मशहूर था, यूरोप और अमेरिका में निर्यात होता था वो अब भूतहा खंडहर हो चुकी है। राजनीतिक भ्रष्टाचार की अमर बेल में विकास के चक्के ऐसे जकड़े पड़े हैं मानों हजारों साल पुरानी फैक्टरी हो ये।

हर चीज में कभी यहां जिंदगी का जश्न होता था, लोहे की ये औजारें, मशीनें अगर बोल पातीं तो बताती की लालू राज और उसके बाद की सरकारों की सोच में कितनी जंग लग चुकी थी और अभी लगी है जिसने उनका ये हाल कर दिया।

जिन औजारों ने देश की तरक्की में बहुत बड़ा योगदान दिया वो मुर्दा पड़ी हैं। लोहे की मशीनें, ये खंडहर, ये दीवारें, टूटी छत, खिड़कियां चीख-चीख कर उस गुनाह का सबूत दे रही हैं जिसने यहां काम करने वालों हजारों परिवारों को भीख मांगने पर मजबूर कर दिया जो यहां इंजीनियर थे वे इसी फैक्टरी में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी कर रहे हैं।

ऐसे ही एक शख्स सर्वदीप से हुई हमारी मुलाकात, उनसे सवाल पूछते ही सबसे पहले बर्बादी के लिए लालू यादव और टाटा कंपनी का नाम लेते हैं।

बताते हैं की किसी समय यहां के उत्पादों की मांग दुनिया भर में होती थी लेकिन लालू यादव की डिमांड ने इसे खंडहर बना दिया।

KMCEL में कदम बढ़ते रहे सर्वदीप के आंखों से आंसू बहता रहा...

इंजीनियर होते हुए गार्ड की नौकरी करने वाले सर्वदीप से हमारी मुलाकात KMCEL के मुख्य दरवाजे पर हो गई, दरवाजे KMCEL में टूट कर गिर चुकी है। गेट के सामने ही KMCEL का विशाल कट आउट लगा था जो पूरी तरह जंगली लताओं में छुप चुका है।

मुख्य द्वार से आगे बढ़ते हुए हमारे सामने नजर आती है एक विशाल जंगल, हैरी पॉटर के सीरियल्स जैसा एक विशाल सेट। चारों तरफ विशाल इमारतें हैं और उस पर उग चुके विशाल पेड़ और खतरनाक लताएं।

सर्वदीप बताते हैं की यहां अब जहरीले सांप ही रहते हैं, मुख्य द्वार के दाहिने तरफ ही है गैरेज। जहां आज भी फैक्टरी के जनरल मैनजर की 34 नंबर की फिएट कार खड़ी है, दर्जनों गाड़ियां सड़ चुकी है।

थोड़ा आगे जाने पर हमें कैंटिन नजर आता है, दो मंजिला कैंटीन में एक साथ हजारों लोगों के बैठने खाने की व्यवस्था थी लेकिन अब यहां सिर्फ जंगल है। कैंटीन के सामने ही विशाल पार्क था जहां अब सिर्फ झाड़-झंखाड़ ही है, हम थोड़ा आगे बढ़ते हैं सिर के ऊपर लोहे की बड़ी और चौड़ी संरचना नजर आती है।

और सबकुछ खत्म हो गया...

KMCEL में ही गार्ड की नौकरी करने वाले जंग बहादुर बताते हैं की ये क्रेन है, लोहे की भारी चीजें इससे उठाई जाती थी।

आपको बता दें की KMCEL को 1930 के दशक में अंग्रेजी सरकार ने तैयार की थी, शुरुआत में इसका नाम कुमारधुबी इंजीनियरिंग वर्क्स था। आजादी के बाद बंगाल सरकार ने इसे अपने अधिकार में ले लिया।

1979 में ये बिहार स्टेट इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन के हाथों चला गया, 1983 में इसका नाम बदलकर कुमारधुबी मेटल कॉस्टिंग एंड इंजीनियरिंग लिमिटेड कर दिया गया। साल 1985 से 1995 तक ये टाटा और बिहार सरकार का संयुक्त उपक्रम रहा, लेकिन इसी दशक में बिहार में शुरु हुआ लालू राज और इसके साथ ही शुरु हो गई बिहार में उद्योगों का काला दिन. फैक्टरी के अदंर का हाल तो किसी त्रासदी से कम नहीं था।

बड़ी-बड़ी मशीनें दो दशक से भी अधिक समय से बंद पड़ी हैं, कई मशीनों पर तो अभी तक पेंट कायम है। डीजल का गंध आज भी महसूस किया जा सकता है। इंजीनियर से गार्ड बने सर्वदीप बताते हैं की KMCEL में जलयान के इंजन से लेकर रेलवे के पटरी तक बनते थे। तोप के अंदर इस्तेमाल होने वाली मशीनें भी तैयार होती थी। अब सब खत्म हो चुका है।

मैथन, पंचेत डैम के निर्माण में अहम योगदान देने वाली इस फैक्टरी को बचाया जा सकता अगर राजनीतिक इच्छाशक्ति होती, कहा जाता है की KMCEL में 51 फीसदी के हिस्सेदारी वाली बिहार सरकार के उस वक्त के मुखिया ने 49 फीसदी की हिस्सेदारी वाली टाटा कंपनी से 1 करोड़ मांगे, टाटा ने मना कर दिया।

सरकार ने समझौता रद्द कर दिया, कंपनी बंद हो गई। हजारों लोग सड़क पर आ गए, मामला अदालत में है, मशीनें जंग खा रही है। 1 सौ 11 एकड़ में फैली ये फैक्टरी नेशनल हाईवे संख्या 2 के किनारे है।

रेलवे लाइन फैक्टरी के अंदर तक गई है, पास में पावर प्लांट भी है। शहर में इंजीनियर्स की कमी नहीं, मगर फिर भी यहां सन्नाटा पसरा

है और जहरीले सांपों ने बसेरा कर लिया है।

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