जयपुर : राजस्थान की विशिष्टता यहां संस्कृति परंपराए व ज्वैलरी है जो पूरी दुनिया को अपनी तरफ आकर्षित करती है। वैसे यहां का हर शहर अपने आप में खास है। उनमें पिंकसिटी जयपुर की बात ही निराली है। फैशन के दौर एक जगह टिककर नहीं रहते। फैशन एक घुमक्कड सोच है जो एक बार जहां से गुजरती है वहां अपनी छाप छोड़ देती है। जब जब फैशन का जिक्र होता है तो जयपुर का नाम पहले आता है क्योंकि फैशन एक कला है और जयपुर कलाओं की नगरी। फैशन बदलने के साथ ही ज्वैलरी भी अपना रंग, रूप और आकार बदल लेती है। चलिए इन दिनों वेडिंग सीजन व त्योहारों की सीजन है और इस सीजन की खास बात ज्वैलरी हैं ।
जयपुर अपनी परंपराओं की जड़ों से गहराई से जुड़ा है। जयपुर की खूबसूरती का प्रमुख स्रोत यहां सदियों से चली आ रही परंपराएं भी हैं। जयपुर के राजघराने से लेकर आम आदमी तक परंपराओं और स्थानीय संस्कृति से गहराई से जुड़ा हुआ है। जयपुर का रहन-सहन, खान-पान और पहनावा दुनियाभर को आकर्षित करता है। आभूषण पहनना यहां की खास और समृद्ध परंपरा का प्रतीक है। यह प्रतीक अब दुनियाभर में अपनी खास पहचान बना चुका है और विश्व को कोने कोने में जयपुर की ज्वैलरी की धाक है। हर साल ’जयपुर ज्वैलरी शो’ में दुनियाभर से लोगों का जुड़ाव भी होता रहा है।
केवल सुनारों तक सीमित नहीं
आज के दौर में ज्वैलरी मेकिंग सिर्फ सुनारों का ही खानदानी काम नहीं रहा। आप भी गहने बनाने के काम में अपना भविष्य बना सकते हैं। शुरू में थोड़े इन्वेस्टमेंट के साथ आप अपना काम भी शुरू कर सकते हैं।जिस तरह ज्वैलरी अब सिर्फ सोने-चांदी का नाम नहीं है, ठीक वैसे ही यह काम अब केवल सुनारों का नहीं रह गया है। ये ज्वैलरी डिजायनिंग में रिसर्च कर चुके डिजाइनर दुष्यंत दवे के माध्यम से कह रही हूं। व इसके तह तक जाने की कोशिश की तो ज्वेलरी खासकर कुंदन मीणा के बारे में तो बहुत सी अनोखी और ज्ञानवर्धक जानकारी मिली।
राजघरानों की खास पंसद
जब बात राजस्थान की है तो यहां के रजवाड़ों का जिक्र स्वभाविक है। दुष्यंत जी ने बताया कि जयपुर का रजवाड़ा देश के सबसे समृद्ध रजवाड़ों में से एक था। यहां के शासक ज्वैलरी के शौकीन थे। वे जानते थे कि ज्वैलरी सिर्फ महिलाओं की खूबसूरती के लिए ही आवश्यक नहीं, बल्कि राज्य की समृद्धि के लिए भी मजबूत आधार है। इसलिए जयपुर के प्रमुख बाजारों में जौहरियों को बसाया गया। जौहरी बाजार इसका प्रमुख प्रमाण है। आज जयपुर से बड़ी मात्रा में ज्वैलरी एक्सपोर्ट के जरिए विदेशों में विक्रय की जाती है। साथ ही जयपुर की पहचान भी ज्वैल-सिटी के रूप में हुई है।
जयपुर में दुनिया का प्रसिद्ध रत्न बाजार है। जयपुर के जौहरियों को मुगल दरबार में भी बहुत इज्जत बख्शी जाती थी। ये जौहरी राजाओं-बादशाहों तथा शाही महिलाओं के लिए रत्नाभूषण तैयार करते थे। जयपुर के राजा-महाराजा भी रत्नाभूषणों के शौकीन थे। जयपुर की ज्वैलरी समय के साथ आधुनिकता के रंग में रंगी जरूर लेकिन पीढी दर पीढी से चली आ रही परंपराओं को नहीं छोड़ने के कारण इसका शाही अंदाज कायम है और सारी दुनिया इसी शाही अंदाज की दीवानी भी है। जयपुर में हर साल ज्वैलरी शो का आयोजन किया जाता है। इस आयोजन में आए देशी विदेशी यहां की डिजाइन और शैली से प्रभावित होते हैं।राजस्थान की ज्वैलरी की सबसे बड़ी विशेषता इसकी परंपरागत डिजाइन है। गले के हार, चेन, अंगुठी, बालियां, बाजूबंध, कमरबंध, कनखनी, पाजेब या फिर मंगलसूत्र हो, जयपुर की ज्वैलरी हर किसी की पहली पसंद होती है। जयपुर की ज्वैलरी देश की शाही शादियों में प्रमुखता से खरीदी जाती है।
कुंदन मीनाकारी
जयपुर की कुंदनकारी पूरी दुनिया में मशहूर है। दुनिया के कई देशों में जयपुर कुंदनकारी का महत्वपूर्ण केंद्र है। कुंदनकारी सोने में रत्नों की जड़ाई को कहा जाता है। सोने के हार, पाजेब या मंगलसूत्र में सुंदर डिजाइनें डालने के बाद उनमें मणियां जड़ी जाती हैं। ये मणियां कीमती स्टोन या हीरा भी होती है। कुंदनकारी का काम जयपुर में जौहरी बाजार में प्रमुखता से होता है। वर्तमान में ज्वैलर्स की बड़ी फर्म अस्तित्व में हैं जो आभूषणों को अपने मार्का के साथ देश विदेश में बेचती हैं। कुंदनकारी आभूषणों के निर्माण की प्राचीन परंपरा है। राजस्थान में जयपुर के साथ यह कला गुजरात में भी नाम रखती है। कुंदन स्वर्ण का ही पर्याय नाम है।
आभूषणों पर मीनाकारी की कला बीकानेर और जयपुर में है। इस कला में स्वर्ण पर विशेष आकृतियां उकेर कर उन्हें खूबसूरत बनाया जाता है। पात्रों पर यह कार्य और भी खूबसूरत लगता है। मीना कुंदनकारी में सदियों से जयपुर की धाक रही है। जयपुर में जौहरी बाजार, बड़ी चौपड़,त्रिपोलिया बाजार, गोपालजी का रास्ता, चौड़ा रास्ता आदि परकोटा के इलाकों में इन जौहरियों के शोरूम बहुतायत में हैं। इसके अलावा शहर भर में जौहरियों की प्रतिष्ठित दुकानें मौजूद हैं। हजोरी लाल ,कृतचंद्र ,घनश्याम दास ये फेमस ज्वेलर है।जयपुर के एमआई रोड पर भी ज्वैलरी के जहां जाने माने शोरूम हैं वहीं चमेली मार्केट में कीमती स्टोन का कार्य किया जाता है। जौहरी बाजार में देवडीजी मंदिर के पास रत्नों की मंडी भी लगती है जहां कीमती पत्थर खरीदे बेचे जाते हैं। इन ज्वेलरों के चौथी पीढ़ी भी इसी काम में लगी है जिसने पढ़ाई कर इसी क्षेत्र में नया और यूनिक किया है।
सूफियाना थीम दुष्यंत जी का कहना है कि उन्होंने खुद के रिसर्च में पाया की कुंदनकारी का काम फ्यूजन हो गया है।अब इसमें मशीनी करण भी हुआ है । जिससे हाथ के काम में थोड़ी कमी आई है। साथ ही कुंदन मीना जो अब देश की संस्कृति में रच बस गया है के बारे में कहा कि यह अपने देश की नहीं परसिया से आई कला है जिसे परसियन लोगों ने यहा लाया। इसलिए इसमें सूफियाना स्टाइल भी दिखता है।
ऐशवर्या के गले की शोभा भी बनी है ये ज्वैलरी
जयपुर की इस ज्वैलरी की एक विशेषता है। यहां स्वर्ण और हीरे की ज्वैलरी के विकल्प भी गढ़े जाते हैं जिससे साधारण लोग ज्वैलरी पहनने का शौक पूरा कर सकें। यह आर्टीफिशियल ज्वैलरी भी जयपुर में प्रचुर मात्रा में तैयार की जाती है। यह काम चांदी और अर्धकीमती रत्न का प्रयोग करके किया जाता है। जयपुर परकोटा के मुख्य बाजारों से सटी गलियों में परिवार के परिवार आर्टीफिशियल ज्वैलरी तैयार करने के कार्य में सालों से जुटे हैं। जयपुर की परंपरागत ज्वैलरी के प्रति आकर्षण का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि फिल्म ’जोधा अकबर’ में ऐश्वर्या रॉय द्वारा पहनी गई जयपुर की पारंपरिक ज्वैलरी को दुनियाभर में पसंद किया गया और फिल्म के प्रमोशन के लिए भी जयपुर के गहनों से सजी ऐश्वर्या के फोटो इस्तेमाल किए गए। जयपुर में आभूषणों का काम बड़े पैमाने पर होता है और यहां की ज्वैलरी दुनिया के कोने कोने में पहुंचती है। खास तौर पर वैवाहिक कार्यों के लिए यहां तैयार खास तरह की ज्वैलरी विश्वबाजार में अहम स्थान रखती
प्रोफेशनल
मीनाकारी एक पुरानी और काफी प्रचलित प्रौद्योगिकी है। असल में मीना फारसी के शब्द मीनू से लिया गया हैं, जिसका अर्थ है स्वर्ग। ईरान के कारीगरों ने इस कला का आविष्कार किया जो बाद में मंगोलों द्वारा भारत व अन्य देशों में फैल गई। भारत का जयपुर मीनाकारी की कला के लिए दुनियाभर में जाना जाता है। जयपुर में मीनाकारी की कला महाराजा मानसिंह प्रथम द्वारा बाहर लाई गई थी। ज्वेलरी मेकर बनने के लिए डिप्लोमा या सर्टिफिकेट कोर्स करना आवश्यक है। इसके लिए आपकी न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता बारहवीं होनी चाहिए। कुछ प्राइवेट संस्थान दसवीं पास छात्रों को भी प्रशिक्षण प्रदान करते हैं। बड़े संस्थान लिखित परीक्षा और साक्षात्कार के आधार पर प्रवेश देते हैं। ज्वेलरी मेकिंग के कोर्सेज की अवधि तीन माह से लेकर दो साल तक है। इसमें तीन से छह माह के सर्टिफिकेट कोर्स होते हैं, जबकि एक से दो साल में डिप्लोमा कोर्स कराए जाते हैं। आजकल कुछ संस्थान साप्ताहिक कोर्स भी कराते हैं, जिनमें टांका लगाना, ज्वेलरी साफ करना, तार खिंचाई, लड़ी जोड़ना सिखाया जाता है। ज्वेलरी मेकिंग के कोर्स का शुल्क प्रशिक्षण अवधि, कोर्स और संस्थान पर निर्भर करता है। इस काम को सिखाने वाले संस्थान 10 हजार रुपए से दो लाख रुपए तक चार्ज करते हैं। ज्वेलरी की बढ़ती डिमांड और बाजार में प्रतिस्पर्धा के चलते अब इस क्षेत्र में पढ़े-लिखे व डिग्रीधारी प्रोफेशनल्स को काम करने का मौका मिलने लगा है। दुष्यंत जी ने बताया कि ‘ज्वेलरी मेकिंग में भारत विश्व में सबसे आगे आ चुका है। यहां सस्ते और अच्छे कारीगर मिलने की वजह से लोगों का ध्यान देश की ओर आता है।
करियर के लिए बेहतर विकल्प
इस क्षेत्र में काम करने वालों को आभूषण बनाना, उन्हें मॉडिफाई करना, डिजाइन करना आदि के अलावा जैमोलॉजी की बेसिक जानकारी तथा कास्टिंग टेक्नोलॉजी, ज्वेलरी का इतिहास, स्टोन कटिंग एंड इनेबलिंग यानी नक्काशी, रत्नों की शुद्घता मापना, रत्नों का चुनाव, मूल्य, सेटिंग,पॉलिशिंग, सोइंग एवं सोल्डरिंग, फेब्रिकेशन, रिपेयरिंग, रत्नों के अलावा टेराकोटा मोतियों और हाथी दांत व सीपियों का प्रयोग करना सिखाया जाता है। अगर कोई भी इस कला में रुचि रखते हैं। दसवीं या बारहवीं पास हैं और अपना काम करना चाहते हैं या नौकरी उतनी अच्छी नहीं मिल रही है अथवा परीक्षाओं में अच्छे अंक नहीं लाए हैं तो ज्वेलरी मेकिंग का काम सीख कर इस क्षेत्र में अच्छा पैसा कमा सकते हैं।
मशीनें व लागत
ज्वेलरी मेकिंग या डिजाइनिंग के लिए कम से कम 10 फुट चौड़े और 12 फुट लंबाई वाले कमरे की जरूरत होती है। बड़ा काम करने के लिए उसी हिसाब से जगह की ज्यादा जरूरत होती है। इस काम को करने के लिए उपकरणों व कुछ मशीनों की जरूरत पड़ेगी, जो हैं- कटर, रेती,कुठाली, प्लास, पेचकस, गैस बर्नर, कोयले की भट्ठी, पिघलती भट्ठी, सांचे, कास्टिंग प्लांट, वैक्स मोल्ड यानी मोम के सांचे, वायर, ड्राइंग मशीन, कंप्यूटर आदि। इस काम को करने में कम से कम पांच लाख रुपए का खर्च आता है। आप जितना बड़ा काम करना चाहेंगे, लागत भी उतनी ही अधिक आएगी। व कम से कम 15 लोगों की जरूरत पड़ेगी।
कुंदन ज्वेलरी मेकिंग का काम विश्व के सबसे तेजी से फलते-फूलते व्यवसायों में पहले नंबर पर है। पहले मशीन से बनी ज्वेलरी भारत में आती थी, लेकिन आज देश में बनी मशीनों की ज्वेलरी दूसरे देशों में भेजी जाती है। तो कुंदन ज्वेलरी से जुड़ी बहुत सी बातों हमने इस क्षेत्र में महारत हासिल कर चुके डिजाइनर दुष्यंत दवे के रिसर्च व काम के आधार पर बताया। जो ना कि इस क्षेत्र में कई सालों से कार्यरत है बल्कि सैकड़ों स्टूडेंट को प्रशिक्षित भी कर रहे हैं।