Article 370: 'अनुच्छेद-370 के स्थायी होने का भ्रम हुआ दूर', सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार की दलील, जानिए और क्या कहा?
Article 370 Hearing: जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद-370 को निरस्त किए जाने को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में ये दलीलें पेश की।
SC Hearing on Article-370 Abrogation: जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 हटाए जाने पर गुरुवार (24 अगस्त) को केंद्र सरकार ने अपना पक्ष रखा। केंद्र ने कहा, अनुच्छेद-370 बेअसर करने का फैसला राष्ट्रहित के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर के लोगों की भलाई के लिए लिया गया था। बता दें, सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ (Constitution Bench) में आज से केंद्र सरकार ने अपना पक्ष रखना शुरू किया है।
केंद्र की तरफ से अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमनी (Attorney General R Venkataramani) ने सर्वोच्च न्यायालय में दलील दी। उन्होंने 'राष्ट्र की अखंडता' के पहलू पर जोर दिया। सॉलिसीटर जनरल ने पीठ को बताया कि 'पुरानी व्यवस्था में जम्मू-कश्मीर में बसे लोगों की एक बड़ी आबादी को दूसरे राज्यों के नागरिकों जैसे अधिकार नहीं मिल रहे थे। लेकिन, अब वे लोग सबके बराबर हो गए हैं।'
क्या कहा अटॉर्नी जनरल ने?
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud) की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ में चल रही सुनवाई का गुरुवार को 10वां दिन था। इससे पहले, 9 दिन जम्मू-कश्मीर में पुरानी स्थिति बहाल करने के समर्थक याचिकाकर्ताओं की तरफ से दलीलें रखी गई। केंद्र सरकार की तरफ से अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमनी (R Venkataramani) और राज्य सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता (AG Tushar Mehta) ने पक्ष रखा।
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आर्टिकल-370 स्थायी है या अस्थायी, भ्रम दूर हुआ
तुषार मेहता ने अदालत में कहा, 'आर्टिकल-370 स्थायी है या अस्थायी, इसे लेकर भ्रम बना रहता था। भारत विरोधी शक्तियां (Anti India Forces) इस भ्रम को और बढ़ाकर इसका लाभ लेने की कोशिश में जुटी थी। एजी ने कहा, जम्मू-कश्मीर में रहने वाले लोग भी इस बारे में दुविधा में रहते थे। केंद्र सरकार के फैसले के बाद अब यह भ्रम दूर हो गया है।'
नहीं मिल पाता था केंद्र की योजनाओं का लाभ
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने आगे कहा, 'अनुच्छेद-370 और 35-A के चलते जम्मू-कश्मीर के लोगों को केंद्र सरकार की योजनाओं का पूरा लाभ नहीं मिल पता था। घाटी में बहुत से लोगों को राज्य की विधानसभा या स्थानीय निकाय चुनाव (Local Body Elections) में मतदान का अधिकार भी नहीं था। अब वो सभी देश के अन्य राज्यों के लोगों की तरह अपने सभी अधिकार हासिल कर सकेंगे।'
'तब ऐसी 62 रियासते थीं, जिनका अपना संविधान'
दरअसल, याचिकाकर्ताओं की तरफ से दलील में कई बातें कही गई थी। आज सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल ने इस दलील को भी गलत बताया जिसमें कहा गया कि, 'ब्रिटिश शासन के समय जम्मू-कश्मीर रियासत को अन्य रियासतों से अलग 'विशेष दर्जा' प्राप्त था। उन्होंने कहा, जम्मू-कश्मीर अकेला ऐसा राज्य नहीं था, जिसका 1939 में अपना संविधान था। तब ऐसी 62 रियासते थीं, जिनका अपना संविधान हुआ करता था। कई राज्य अपना संविधान बनाने की प्रक्रिया में भी थे। कई बड़े वकील रियासतों को अपना संविधान बनाने में मदद भी कर रहे थे। मगर, भारत में विलय के साथ ही रियासतों के संविधान समाप्त हो गए।'
अटॉर्नी जनरल ने लिंकन के भाषण की पंक्तियां कही
अटॉर्नी जनरल आर.वेंकटरमनी ने 24 अगस्त की सुनवाई में विस्तार से बहस नहीं की। हालांकि, उन्होंने अपनी विस्तृत दलीलों की शुरुआती जानकारी अदालत को जरूर दी। अटॉर्नी जनरल ने अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन (Abraham Lincoln) के भाषण का भी ज़िक्र किया। उन्होंने बताया, 'इस भाषण में लिंकन ने कहा था कि संविधान के प्रावधानों और देश की अखंडता को बचाने में से एक विकल्प चुनना हो तो पहली प्राथमिकता 'देश' को दी जानी चाहिए। जीवन बचाने के लिए शरीर का कोई हिस्सा तो काटा जा सकता है लेकिन कोई अंग बचाने के लिए जान नहीं दी जा सकती।'
आर्टिकल-370 के महत्व को बताया
अटॉर्नी जनरल वेंकटरमनी (Attorney General Venkataramani) ने आगे कहा, 'आर्टिकल-370 को संविधान में रखने का इकलौता मकसद भारत और जम्मू-कश्मीर के एकीकरण में सहायता था। अगर, यह एक लंबे वक़्त तक बना रहा, तो सिर्फ इस वजह से इसके मूल उद्देश्य को अनदेखा नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा, सीमावर्ती राज्य भारत के विशेष क्षेत्र हैं। उनके पुनर्गठन का काम काफी सोच-विचार के बाद ही किया जाता है।'