Hijab Controversy: सिखों की पगड़ी और कृपाण की तुलना हिजाब से नहीं हो सकती,सुप्रीम कोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पणी

Hijab Controversy: पगड़ी और कृपाण सिखों की धार्मिक पहचान का अनिवार्य हिस्सा है। सर्वोच्च अदालत ने कहा कि ऐसे में पगड़ी और कृपाण की तुलना हिसाब से करना ठीक नहीं है।

Written By :  Anshuman Tiwari
Update:2022-09-09 11:48 IST

Supreme Court (photo: social media )

Hijab Controversy: सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक के हिजाब मामले की सुनवाई के दौरान महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। शीर्ष अदालत ने कहा कि सिखों की पगड़ी और कृपाण की तुलना हिजाब से कतई नहीं की जा सकती। हिजाब मामले की सुनवाई के दौरान गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने यह अहम टिप्पणी की है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सिखों को पगड़ी और पहनने की अनुमति है और सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संविधान पीठ की ओर से पहले ही यह तय किया जा चुका है कि पगड़ी और कृपाण सिखों की धार्मिक पहचान का अनिवार्य हिस्सा है।

सर्वोच्च अदालत ने कहा कि ऐसे में पगड़ी और कृपाण की तुलना हिसाब से करना ठीक नहीं है। कर्नाटक हाईकोर्ट के शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध को बरकरार रखने के फैसले के खिलाफ दायर विभिन्न याचिकाओं की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने यह महत्वपूर्ण टिप्पणी की है।

याचिकाकर्ता के वकील ने की थी तुलना

दरअसल सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को सुनवाई के दौरान कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ याचिका दाखिल करने वाली एक छात्रा के वकील निजामुद्दीन पाशा ने हिजाब की तुलना सिखों की पगड़ी और कृपाण से करने की कोशिश की। पाशा ने हिजाब को मुस्लिम लड़कियों की धार्मिक प्रथा का हिस्सा बताया। उन्होंने सिख छात्रों के पगड़ी पहनकर शैक्षणिक संस्थानों में आने का जिक्र भी किया।

उन्होंने सवाल किया कि क्या मुस्लिम छात्राओं के हिजाब पहनकर स्कूल आने पर रोक लगाई जा सकती है? उन्होंने कहा कि देश में सांस्कृतिक प्रथाओं की अनदेखी नहीं की जानी चाहिए और इसका पालन करने के लिए पहल किए जाने की जरूरत है। अपनी दलील के दौरान पाशा ने फ्रांस जैसे देशों का उदाहरण भी दिया।

शीर्ष अदालत ने तुलना को अनुचित बताया

पाशा की इस दलील के बाद न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने कहा कि सिखों के लिए पांच ककार (केश कला कृपाण कंघा और कछैरा) जरूरी हैं। पाशा की दलीलों पर टिप्पणी करते हुए न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता ने कहा कि हिजाब पहनने की तुलना सिखों की पगड़ी और कृपाण से नहीं की जा सकती। सिखों को संविधान के जरिए कृपाण धारण करने की अनुमति हासिल है। इसलिए दोनों प्रथाओं की तुलना करना उचित नहीं है।

न्यायमूर्ति गुप्ता ने कहा कि करीब 500 सालों से सिखों की यह धार्मिक पहचान भारतीय सभ्यता का हिस्सा रही है। न्यायमूर्ति गुप्ता का कहना था कि हम भारतीय हैं और भारत में रहना चाहते हैं। हमें फ्रांस और आस्ट्रिया के मुताबिक नहीं चलना है। उन्होंने पांच जजों की संविधान पीठ के फैसले का जिक्र भी किया जिसमें पगड़ी और कृपाल को सिखों की धार्मिक पहचान का अनिवार्य हिस्सा बताया गया है।

हाईकोर्ट के अलग-अलग रुख का जिक्र

याचिकाकर्ता छात्रा के वकील पाशा का कहना था कि 1400 सालों से हिजाब इस्लामी परंपरा का हिस्सा रहा है। उन्होंने कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले का विरोध करते हुए कहा कि हिजाब से मुस्लिम महिलाओं की सुरक्षा होती है। उन्होंने अपनी दलितों के समर्थन में विभिन्न धार्मिक किताबों का भी जिक्र किया।

एक अन्य याचिकाकर्ता की ओर से दलील देते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता देवदत्त कामत ने कहा कि मैं जनेऊ पहनता हूं, लेकिन क्या इसे किसी भी तरह से कोर्ट के अनुशासन का उल्लंघन माना जा सकता है? इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि न्यायालय में पहनी जाने वाली ड्रेस की तुलना स्कूल ड्रेस से नहीं की जा सकती।

कामत ने कहा कि हर धार्मिक प्रथा जरूरी नहीं है मगर राज्य को इस पर रोक भी नहीं लगानी चाहिए। उन्होंने हिजाब को लेकर अलग-अलग हाईकोर्टों के अलग-अलग रुख का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि केरल और मद्रास हाईकोर्ट ने इसे अनिवार्य धार्मिक प्रथा माना है जबकि कर्नाटक हाईकोर्ट का नजरिया बिल्कुल अलग है। हिजाब मामले को लेकर अब सुप्रीम कोर्ट में अगली सुनवाई 12 सितंबर को होनी है।

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