लखनऊ:जब हम आप यात्रा करने के लिए दूसरे शहरों में जातें है तब सार्वजनिक स्थलों पर सुलभ् शौचालय हम सब देखतें है। क्या आपके मन में कभी सह आया कि ये जानें कि पूरे देश और विश्व के कई शहरों में शौचालय श्रृंखला चलानें वाले कौन हैं और कैसे उनके मन में ये विचार आया कि स्वच्छता का यह मॉडल सक्सेस ही होगा।
डॉ बिन्देश्वरी पाठक (जन्म: 02 अप्रैल 1943) विश्वविख्यात भारतीय समाजिक कार्यकर्ता एवं उद्यमी हैं। उन्होने सन 1970 मे सुलभ इन्टरनेशनल की स्थापना की। सुलभ इंटरनेशनल मुख्यतः मानव अधिकार, पर्यावरणीय स्वच्छता, ऊर्जा के गैर पारंपरिक स्रोतों और शिक्षा द्वारा सामाजिक परिवर्तन आदि क्षेत्रों में कार्य करने वाली एक अग्रणी संस्था है। श्री पाठक का कार्य स्वच्छता और स्वास्थ्य के क्षेत्र में अग्रणी माना जाता है। इनके द्वारा किए गए कार्यों को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सराहा गया है और पुरस्कृत किया गया है।
डॉ बिन्देश्वरी पाठक ने का जन्म भारत के बिहार प्रान्त के रामपुर में हुआ। उन्होने सन् 1964 में समाज शास्त्र में स्नातक की उपाधि ली। सन 1967 में उन्होने बिहार गांधी जन्म शताब्दी समारोह समिति में एक प्रचारक के रूप में कार्य किया। वर्ष 1970 में बिहार सरकार के मंत्री श्री शत्रुहन शरण सिंह के सुझाव पर सुलभ शौचालय संस्थान की स्थापना की। बिहार से यह अभियान शुरू होकर बंगाल तक पहुंच गया। वर्ष 1980 आते आते सुलभ भारत ही नहीं विदेशों तक पहुंच गया।
सन, 1980 में इस संस्था का नाम सुलभ इण्टरनेशनल सोशल सर्विस आर्गनाइजेशन हो गया। सुलभ को लिए अन्तर्राष्ट्रीय गौरव उस समय प्राप्त हुआ जब संयुक्त राष्ट्र संघ की आर्थिक एवं सामाजिक परिषद द्वारा सुलभ इण्टरनेशनल को विशेष सलाहकार का दर्जा प्रदान किया गया।
सन 1980 में उन्होने स्नातकोत्तर तथा सन 1985 में पटना विश्वविद्यालय से पीएच डी की उपाधि अर्जित की। उनके शोध-प्रबन्ध का विषय था - बिहार में कम लागत की सफाई-प्रणाली के माध्यम से सफाईकर्मियों की मुक्ति(लिबरेशन ऑफ स्कैवेन्जर्स थ्रू लो कास्ट सेनिटेशन इन बिहार)।
एक पारंपरिक ब्राह्मण परिवार में जन्मे और बिहार में पले बढे डॉ॰ पाठक ने अपने पीएच.डी. का अध्ययन क्षेत्र "भंगी मुक्ति और स्वच्छता के लिए सर्व सुलभ संसाधन" जैसे विषय को चुना और इस दिशा में गहन शोध भी किया। 1968 में श्री पाठक भंगी मुक्ति कार्यक्रम से जुड़े रहे और उन्होंने तब इस सामाजिक बुराई और इससे जुड़ी हुई पीड़ा का अनुभव किया। श्री पाठक के दृढ निश्चय ने उन्हें सुलभ इंटरनेशनल जैसी संस्था की स्थापना की प्रेरणा दी और उन्होंने 1970 में भारत के इतिहास में एक अनोखे आंदोलन का शुभारंभ किया।
श्री पाठक ने 1970 में सुलभ इंटरनेशनल की स्थापना की सुलभ इंटरनेशनल एक सामाजिक सेवा संगठन है जो मुख्यतः मानव अधिकार, पर्यावरणीय स्वच्छता, ऊर्जा के गैर पारंपरिक स्रोतों और शिक्षा द्वारा सामाजिक परिवर्तन आदि क्षेत्रों में कार्य करती है। इस संस्था के 50,000 समर्पित स्वयंसेवक हैं। श्री पाठक ने सुलभ शौचालयों के द्वारा बिना दुर्गंध वाली बायोगैस के प्रयोग की खोज की। इस सुलभ तकनीकि का प्रयोग भारत सहित अनेक विकाशसील राष्ट्रों में बहुतायत से होता है। सुलभ शौचालयों से निकलने वाले अपशिष्ट का खाद के रूप में प्रयोग को भी प्रोत्साहित किया।
श्री पाठक को भारत सरकार द्वारा 1991 में पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया। सन् 2003 में श्री पाठक का नाम विश्व के 500 उत्कृष्ट सामाजिक कार्य करने वाले व्यक्तियों की सूची में प्रकाशित किया गया। श्री पाठक को एनर्जी ग्लोब पुरस्कार भी मिला। श्री पाठक को इंदिरा गांधी पुरस्कार, स्टाकहोम वाटर पुरस्कार इत्यादि सहित अनेक पुरस्कारों द्वारा सम्मानित किया गया है।
उन्होने पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने के लिये प्रियदर्शिनी पुरस्कार एवं सर्वोत्तम कार्यप्रणाली (बेस्ट प्रक्टिसेस) के लिये दुबई अन्तरराष्ट्रीय पुरस्कार भी प्राप्त किया है। इसके अलावा सन 2009 में अंतर्राष्ट्रीय अक्षय ऊर्जा संगठन(आईआरईओ) का अक्षय उर्जा पुरस्कार भी प्राप्त किया।