Swachh Bharat Abhiyan: क्या कहती है स्वच्छता अभियान की गाइडलाइन
Swachh Bharat Abhiyan: आमतौर पर जो भी गाइडलाइन जारी होती है, उसमें कहा जाता है कि यह अमुक तारीख से लागू होगी पर स्वच्छ भारत अभियान की गाइडलाइन बनी भले दिसंबर में हो, पर उसे 2 अक्टूबर से लागू समझा जाए।
Swachh Bharat Abhiyan Guidelines: अपनी जापान-यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi Japan Visit) ने निवेशकों को आकर्षित करते हुए कहा था कि भारत (India) में उनका स्वागत अब रेड टेपिज्म नहीं, बल्कि रेड कार्पेट करेगा। पर ऐसा कहते समय मोदी को यह इल्म नहीं रहा होगा कि उनका महत्वाकांक्षी 'स्वच्छ भारत अभियान' (Clean India Movement) ही 'रेड टेपिज्म' (red tapism) यानी लालफीताशाही का शिकार हो जाएगा। पूरी शिद्दत से शुरू किए गए इस अभियान में नौकरशाही प्रधानमन्त्री से कदमताल मिलाकर चलती नहीं दिख रही है।
राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी (Mahatma Gandhi) के जन्मदिन पर 2 अक्टूबर को मोदी ने दिल्ली के वाल्मीकि नगर की बस्ती में खुद हाथ में झाड़ू लेकर इस सफाई अभियान का श्रीगणेश तो कर दिया पर नौकरशाहों को यह तय करने में ढाई महीने लग गए कि यह अभियान पूरे देश में किस तरह से लागू किया जाएगा। अभियान की गाइडलाइन (Swachh Bharat Abhiyan Guideline) 18 दिसम्बर को जारी हो सकी। तब भी इसमें इतने पेंच छूट गए अथवा छोड़ दिए गए कि वे पीएम के इस ड्रीम प्रोजेक्ट की मंशा को पूरा करने में खासे असहाय और निष्प्रभावी लग रहे हैं।
पीएम मोदी ने खुद झाड़ू उठाने की हिचक तोड़ी
मोदी ने इस अभियान का जिस खास अन्दाज में श्रीगणेश किया, उससे लोगों के मन की हिचक टूटी। हिचक झाड़ू को हाथ लगाने और साफ-सफाई के लिए खुद झाड़ू उठाने की। उम्मीद यह की जा रही थी कि मोदी के नौकरशाह उनके ही तेवर और कलेवर के साथ इस अभियान की गाइडलाइन लेकर आएंगे, ताकि ग्रामीण इलाके में अब तक सफाई और शौचालय बनाने की एक फीसदी की वार्षिक दर को 15 गुना तेज किया जा सके। ऐसा करके ही मोदी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 150वीं जयंती पर उन्हें साल 2019 में सच्ची श्रद्धांजलि देना चाहते हैं। माना जा रहा था कि नया अभियान है। नई गाइडलाइन होगी। पुराने अभियानों से सबक लिया जाएगा और वो गलतियां नहीं दोहराई जाएंगी, जो दुनिया में भारत को खुले में शौच करने का तीसरा सबसे बड़ा मुकाम बनाती हैं।
गौरतलब है कि बांग्लादेश में 97 फीसदी, नेपाल में 76 फीसदी, भूटान में 96 फीसदी, म्यांमार में 75 फीसदी, पाकिस्तान में 56 फीसदी, श्रीलंका में 93 फीसदी ग्रामीण परिवारों के पास शौचालय है। जबकि भारत में यह आंकड़ा बेहद शर्मसार करने वाला है। यहां आज भी 66 फीसदी ग्रामीण खुले में शौच करने के लिए अभिशप्त हैं। यानी सिर्फ चालीस फीसदी ग्रामीणों के पास शौचालय है। एक फीसदी सालाना शौचालय बढ़ाने का यह लक्ष्य 1986 से अब तक तब हासिल हुआ है, जब एक लाख 60 हजार करोड़ रुपए 28 सालों में इस मद में खर्च हो चुके हैं। इसके बावजूद शहरों में अभी भी 17 फीसदी लोग खुले में शौच करते हैं। तकरीबन सभी राज्यों में सिर पर मैला ढोने की अमानुषिक प्रथा जारी है। लेकिन गाइडलाइन में इन लोगों के पुनर्वास और इस प्रथा को रोकने की कोई बात नहीं की गई है।
स्वच्छ भारत अभियान की गाइडलाइन
यही नहीं, आमतौर पर जो भी गाइडलाइन जारी होती है, उसमें कहा जाता है कि यह अमुक तारीख से लागू होगी पर स्वच्छ भारत अभियान की गाइडलाइन बनी भले दिसंबर में हो, पर उसे 2 अक्टूबर से लागू समझा जाए, यह इबारत दर्ज की गई है। यानी ढाई महीने तक कच्छप गति से चल रही नौकरशाही ने एक लाइन में अपने सात खून माफ करा लिए और देश की जनता की आँख में वही लालफीताशाही वाली धूल झोंक दी।
नई गाइडलाइन में शौचालय बनाने के लिए दी जानेवाली धनराशि 12 हजार रुपए कर दी गई है। इसमें नौ हजार रुपए केन्द्र और तीन हजार रुपए राज्य सरकार को देना होगा। हालांकि विशेष दर्जा प्राप्त और पूर्वोत्तर के राज्यों में राज्य का अंशदान सिर्फ 1200 रुपए होगा। यह बात दीगर है कि जिस अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर भाजपा सुशासन दिवस मनाने की मुनादी पीट रही है, उन्होंने महसूस किया था कि पैसा देने से शौचालय नहीं बनता। यह व्यवहार परिवर्तन का मामला है। इसी तर्क के मद्देनजर उन्होंने इस योजना में मिलने वाली सब्सिडी बन्द करके 500 रुपए की प्रोत्साहन राशि बीपीएल परिवारों को देने का फैसला लिया था। बाद में यूपीए सरकार ने इस धनराशि को बढ़ाकर 1200 रुपए कर दिया और आगे यह धनराशि 3200 रुपए कर दी गई। लेकिन निर्मल भारत अभियान की शुरुआत में फिर शौचालय निर्माण के लिए दस हजार रूपये की धनराशि देने का प्रावधान किया गया। इसमें आधी धनराशि मनरेगा के तहत दी जाती थी।
शौचालय निर्माण अथवा स्वच्छता (toilet construction or sanitation)
इस अभियान से पहले शौचालय निर्माण अथवा स्वच्छता से जुड़ी जो भी योजना होती थी, उसमें यह शर्त निहित थी कि सिर्फ निर्माण से ही नहीं, उपयोग की आदत के बाद प्रोत्साहन राशि पंचायतों द्वारा प्रदान की जानी थी। लेकिन इस बार फिर नई गाइडलाइन में सिर्फ निर्माण के लिए धनराशि मुक्त करने का प्रावधान कर दिया गया है। जबकि यह प्रयोग राजीव गांधी के प्रधानमन्त्रित्व काल में फेल हो चुका है। ऐसा नहीं कि नौ दिन चले अढ़ाई कोस की तर्ज पर बनी इस गाइडलाइन में कुछ नया ही न हो। नया और बेहतर यह है कि इस अभियान में पहली बार राज्यों को यह आजादी दी गई है कि अगर किसी गाँव के लोग अपने पैसे से शौचालय बना लेते हैं तो वे चाहें तो जितने भी बीपीएल परिवार हैं, उतने शौचालय बनाने के लिए निर्धारित धनराशि गाँव के अन्य किसी विकास पर खर्च कर लें।
स्वच्छता अभियान में स्कूलों और आंगनबाड़ी केन्द्रों की भूमिका
नई गाइडलाइन ने स्कूलों और आंगनबाड़ी केन्द्रों पर जो शौचालय ग्राम विकास अथवा पंचायत राज महकमे द्वारा बनाए जाते थे, उन्हें अब मानव संसाधन विकास तथा महिला और बाल विकास मंत्रालयों के हवाले कर दिया गया है। यह भी फैसला किया गया है कि अब इस काम को हर राज्य में पंचायत राज विभाग या वह विभाग देखेगा, जिसके जिम्मे स्वच्छता का काम होगा। स्वच्छ भारत अभियान की गाइडलाइन में अच्छा निगरानी तन्त्र भी विकसित किया गया है। रालू (RALU) यानी रैपिड एक्शन लर्निंग यूनिट (Rapid Action Learning Unit) के नाम से निगरानी तन्त्र राष्ट्रीय, राज्य और जिला स्तर पर बनेगा, जिसका काम पूरे देश में जारी स्वच्छता के कार्यक्रम का अध्ययन-विश्लेषण करना तो होगा ही, साथ ही उसके प्रभावों का मूल्यांकन भी उसे करना होगा। जो अच्छी आदतें इस अभियान के तहत किसी भी इलाके या समुदाय में विकसित हो रही हैं, उसे त्वरित गति से प्रचारित-प्रसारित करने की जिम्मेदारी भी रालू की होगी। इस निगरानी तंत्र की सफलता मोदी के अन्य अभियानों में इसे लागू किए जाने का सबब बनेगी।
अभी तक स्वच्छता अभियान की निगरानी और उसका मूल्यांकन साल के अन्त में या फिर पाँच साल बाद होता था। सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत चयनित गाँव में शौचालय बनाने के लक्ष्य को जिला प्रशासन को प्राथमिकता के आधार पर पूरा करना होगा। योजना का मूल्यांकन पल-पल करने के लिए ग्राम विकास मन्त्रालय के अधीन एक वेबसाइट बनाई गई है। राज्य सरकारें हर महीने जो भी काम करेंगी, उसे अपलोड करना होगा। वेबसाइट में हर पंचायत का कॉलम है। कोई भी आदमी इसे खोलकर देख सकता है कि उसकी पंचायत में इस योजना के तहत क्या और कैसा काम हो रहा है अथवा हो भी रहा है या नहीं हो रहा है। मोबाइल और व्हाट्स एप का उपयोग करके कार्यों की असलियत का पता लग जाएगा, क्योंकि इन एप्लीकेशन्स के जरिए कार्यों की वास्तविक फोटो भी खींची और भेजी जा सकेगी। यही फोटो वेबसाइट पर भी अपलोड होगी। गलत सूचना की शिकायत भी दर्ज कराई जा सकती है।
जिला स्तर पर स्वच्छ भारत मिशन का कार्यालय (Office of Swachh Bharat Mission)
जिला स्तर पर स्वच्छ भारत मिशन का कार्यालय होगा, जिसका चेयरमैन जिलाधिकारी होगा। जिला परिषद अध्यक्ष को भी इसमें महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गई है। यह तन्त्र ब्लॉक स्तर तक खड़ा किया जाएगा। रालू के माध्यम से सतत मूल्यांकन चलेगा। इसके अलावा केन्द्र सरकार स्वतन्त्र जाँच एजेंसी भी भेजेगी। हर साल हर राज्य में हुए कार्यों का जमीनी मुआयना भी कराया जाएगा। कुल बजट का आठ फीसदी हिस्सा मोदी के इस अभियान के लिए निर्धारित किया गया है। जिला स्तर पर पूरे बजट की तीन फीसदी राशि इस अभियान के लिए ऋण देने के वास्ते रखी जाएगी। ब्याजमुक्त इस राशि को 12 से 18 किश्तों में वापस करना होगा।
माहवारी स्वच्छता अभियान को मेन कंपोनेंट में जगह दी गई है। गांवों में सैनेटरी सामग्री बनाने के लिए अगर स्वयं सहायता समूह चाहें तो उन्हें भी धनराशि दी जाएगी। सार्वजनिक स्थानों पर टॉयलेट बनाने और उसके रखरखाव की जिम्मेदारी का निर्वाह औद्योगिक घराने कॉरपोरेट सोशल रिस्पान्सिबिलिटी के मार्फत कर सकेंगे। विकलांगों और असहायों के लिए शौचालय के विशेष मॉडल तैयार किए जाएंगे। गाँव के कचरा प्रबन्धन के लिए अलग से धनराशि रखी गई है, जो सात लाख से 20 लाख रुपए तक हो सकती है। यह धनराशि बीपीएल परिवारों की संख्या पर निर्भर करेगी। इस अभियान को सफल बनाने के लिए स्वच्छ सेना और स्वच्छता दूत ग्राम स्तर पर तैयार किए जाएंगे।
देश में स्वच्छता पर अध्ययन और शोध (Study and research on cleanliness in the country)
देश में स्वच्छता पर अध्ययन और शोध के लिए आईआईटी-रुड़की, दिल्ली विश्वविद्यालय, टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस-मुम्बई, आईआईटी-चेन्नई और आईआईएम-अहमदाबाद में चेयर बनेंगी। इन पाँच चेयर का अध्यक्ष प्रोफेसर स्तर का विद्वान होगा। हर चेयर को पाँच करोड़ रुपए सालाना मिलेंगे। गाइडलाइन और स्वच्छता के लिए दिए जाने इस साल के निर्मल ग्राम पुरस्कार यह तो बयान करते ही हैं कि सरकार की नीयत ठीक है, क्योंकि पहली मर्तबा पूरी जाँच-परख करके ईमानदारी से पुरस्कार दिए गए हैं। इसमें आंध्र प्रदेश के 27, अरुणाचल के दो, बिहार के एक, गुजरात के दो, ओडिशा के तीन, राजस्थान के पाँच, कर्नाटक व छत्तीसगढ़ के एक-एक गाँव शामिल हैं। सबसे अधिक 355 पुरस्कार महाराष्ट्र के खाते में गए हैं। मेघालय को 43, मध्य प्रदेश को 34 और हिमाचल के 21 गाँवों को निर्मल ग्राम पुरस्कार के लिए चुना गया है।
(यह आलेख मूल रूप से 23.12.2014 को प्रकाशित हुआ था।)