शिशिर कुमार सिन्हा
पटना। बिहार की राजनीति में बड़ा उलटफेर होने वाला है। उलटफेर की तीन चर्चाएं हैं - 1. तेजस्वी यादव राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के राष्ट्रीय अध्यक्ष घोषित होंगे और उसके बाद चाचा नीतीश कुमार के साथ जाकर फिर भाजपा को अलग-थलग करेंगे। 2. तेजस्वी यादव राजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष घोषित होंगे और उसके बाद भाजपा का छद्म साथ लेंगे। भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व को मनाएंगे कि वह लालू प्रसाद यादव समेत अपने उनके पूरे परिवार पर हमला कम करे, एवज में वह नीतीश को अलग-थलग कर भाजपा को अकेले चुनाव लडऩे पर भी मुश्किल नहीं खड़ी करेंगे। 3. तेजस्वी यादव राजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष घोषित होंगे और उसके बाद राजद के तमाम पुराने नेताओं को दरकिनार कर पूरी तरह युवाओं की टीम के साथ विधानसभा चुनाव की तैयारी में ताकत झोंकेंगे।
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किस चर्चा में कितना दम है- 'अपना भारत' इसका अनुमान नहीं लगा रहा लेकिन तीनों ही गरमागरम हैं। तीनों में एक बात कॉमन है और वह यह कि तेजस्वी यादव राष्ट्रीय जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष घोषित होंगे। इसके संकेत अब लगातार मजबूत भी हो रहे हैं। तेजस्वी यादव घर के झगड़े से परेशान हैं। बड़े भाई तेज प्रताप यादव की शादी बिगडऩे से भी और पार्टी के खिलाफ उनके रवैए से भी। इससे ज्यादा तेजस्वी इस बात से परेशान हैं कि उन्हें पार्टी के अंदर मन की करने की खुली छूट नहीं है। वह अपने पिता और राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव जैसी सुपर पावर चाहते हैं। इतना पावर कि तेज प्रताप यादव को भी झटके में सबक सिखा सकें और बीच-बीच में सबक सिखाने वाले बुजुर्ग नेताओं को भी किनारे लगा सकें। फिलहाल लालू प्रसाद ने अपने बेटों को संगठन में वह ताकत नहीं दे रखी है। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष खुद हैं और प्रदेश अध्यक्ष भी अपने पुराने सहयोगी रामचंद्र पूर्वे को बना रखा है। पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी को भी सदन में भले जो अधिकार हो, पार्टी के अंदर वह कुछ नहीं कर पाती हैं। पार्टी की बैठकों से नदारद रहने पर पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव को जब कुछ पुराने नेताओं ने भरे मंच से सीख दी तो मां राबड़ी देवी भी बेटे को सीखने के लिए ही कहती सुनी गई थीं। यानी, पार्टी के अंदर तेजस्वी की अब भी कमजोर हैं। लालू प्रसाद ने नीतीश कुमार के साथ मिलकर महागठबंधन की सरकार बनने पर तेजस्वी यादव को बड़े बेटे तेज प्रताप यादव से ज्यादा ताकतवर बनाते हुए उप मुख्यमंत्री का पद दिलाया था, लेकिन सरकार जाने के बाद तेजस्वी लगातार पार्टी के अंदर मजबूत स्थिति की चाहत में हैं।
42 दिनों के बाद निकले कोप भवन से, चाहिए मुराद
लोकसभा चुनाव में करारी शिकस्त के बाद तेजस्वी यादव बिहार की राजनीति ही नहीं, देश के नक्शे से ही गायब हैं। बताया गया बीमार हैं। कभी-कभी ट्वीट्स आए, लेकिन बहुत हमलावर नहीं। फिर लंबे समय तक गायब रहने के बाद विधानमंडल के मानसून सत्र में एक दिन औपचारिकता के लिए तेजस्वी आए भी तो कुछ नहीं कहा। तीन बार राजद की बड़ी बैठकों में उनका इंतजार ही होता रहा लेकिन वह नहीं आए। प्रदेशव्यापी सदस्यता अभियान तक पार्टी ने उनकी गैरमौजूदगी से उठते सवालों के बीच ही शुरू किया। अब 42 दिन बाद भी तेजस्वी लौटे तो कोप भवन से निकलने वाली मुद्रा में ही। लालू के करीबी रहे विधायक भाई वीरेंद्र से लेकर पार्टी प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी तक अब उगते सूरज की तरह तेजस्वी यादव का नाम ले रहे। इस बार तेजस्वी लौटे तो अचानक उन्हें राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने की मांग न केवल उठी, बल्कि बुलंद आवाज में सुनाई पड़ी। तेजस्वी यादव से जब पूछा गया तो उन्होंने इस सवाल पर जवाब ही नहीं दिया। रात के अंधेरे में आए। कहां थे, यह तक नहीं बताया। क्या करेंगे, इसपर सिर्फ उनके कुछ करीबियों की बातें ही सुनाई पड़ी। बहुत कुरेदा गया तो सिर्फ आरक्षण पर मोहन भागवत और भाजपा की मंशा को ठीक नहीं बताकर चले गए। अगले दिन घर पर कुछ विमर्श भी किया तो असल बात बाहर आने नहीं दी गई। राजद के पुराने कद्दावरों की मानें तो तेजस्वी यादव किसी बड़े गेम की प्लानिंग कर चुके हैं और इसके लिए उन्हें पार्टी में सुपर पावर चाहिए। गेम क्या है, इसपर कोई जिम्मेदार बयान देने को तैयार नहीं है। वैसे, चर्चाएं तो तीन ही हैं। बस, अब इंतजार करना है कि इनमें से किस विकल्प को चुनने वाले हैं लालू के लाल।