इस गलतफहमी में न रहे अपराधी कि गुनाह की सजा फांसी नहीं होगी-सुप्रीम कोर्ट

15 अप्रैल 2008 को हुई इस जघन्य हत्या में निचली अदालत ने शबनम व सलीम को फांसी की सजा सुनाई थी। इसके बाद वर्ष 2013 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उनकी सजा पर मुहर लगा दी थी। मई 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने उनकी सजा पर मुहर लगा दी थी।

Update:2020-01-24 11:50 IST

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि फांसी की सजा को मुकाम तक पहुंचाना बेहद महत्वपूर्ण है। कोर्ट ने कहा कि ऐसे दोषियों को इस सोच में नहीं रहना चाहिए कि उनकी फांसी अंजाम तक नहीं पहुंचेगी। दोषियों को कानून के नाम पर अंतहीन मुकदमेबाजी की इजाजत नहीं दी जा सकती।

सीजेआई एसए बोबडे, जस्टिस एस अब्दुल नजीर और जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने ये टिप्पणी 10 महीने के बच्चे समेत परिवार के सात सदस्यों की हत्या में दोषी शबनम और उसके प्रेमी सलीम की पुनर्विचार याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान की। पीठ ने सभी पक्षों की दलीले सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया।

पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि फांसी की सजा पाए दोषी को कानून के नाम पर अंतहीन लड़ाई लड़ने की इजाजत नहीं दी जा सकती। वास्तव में शबनम की ओर से पेश वरिष्ठ वकील मीनाक्षी अरोड़ा ने जेल में उसके आचरण पीठ ने फांसी की सजा कम करने की गुहार की थी।

 

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इस पर पीठ ने कहा, फांसी की सजा पाए दोषियों के लिए दया की बात उठाई जाती है। सच्चाई यह है कि उनके कृत्य को नजरअंदाज कर दिया जाता है। दूसरे पक्ष को भी देखने की जरूरत है। कल्पना कीजिए कि अगर ऐसे दोषियों को छोड़ दिया जाए तो क्या होगा। निर्दोष को सजा नहीं होनी चाहिए वहीं दोषियों को छोड़ा नहीं जाना चाहिए।

पीठ ने मनीक्षी अरोड़ा से कहा कि आप मुझे ऐसा मामला बताइए जब जेल में अच्छे आचरण के कारण फांसी की सजा पाए दोषियों की सजा कम हुई हो। साथ ही पीठ ने कहा कि हमें सिर्फ दोषियों के जीवन व मौत के बारे में ही नहीं सोचना चाहिए बल्कि दूसरे पक्ष के बारे में भी सोचना चाहिए।

वहीं यूपी सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने केंद्र सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किए गए उस आवेदन का जिक्र किया जिसमें फांसी की सजा के मामले में दया याचिका और फांसी देने में अधिकतम 14 दिनों का अंतराल होने की गुहार की गई है। साथ ही पुनर्विचार व सुधारात्मक याचिका दायर करने केलिए भी समय सीमा निर्धारित करने का आग्रह किया है।

सुनवाई के दौरान पीठ ने यह भी कहा कि शबनम और सलीम के बीच लंबे समय से प्रेम संबंध था। शिक्षक पिता ने बेटी से संबंध को खत्म करने की अपील की थी। उनके बीच लड़ाई होती थी। इसके बाद शबनम ने सलीम के साथ मिलकर अपने परिवार के सदस्यों को जान मारने का षड्यंत्र रच दिया। पूर्व नियोजित षड्यंत्र के तहत वारदात को अंजाम दिया गया।

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15 अप्रैल 2008 को हुई इस जघन्य हत्या में निचली अदालत ने शबनम व सलीम को फांसी की सजा सुनाई थी। इसके बाद वर्ष 2013 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उनकी सजा पर मुहर लगा दी थी। मई 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने उनकी सजा पर मुहर लगा दी थी। इसके बाद दोनों के खिलाफ निचली अदालत ने डेथ वारंट जारी किया था, जिसपर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी। इसके बाद दोनों ने पुनर्विचार याचिकाएं दायर की थी।

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