देश भक्त हेमू कालाणी: अंग्रेजों ने सुनाई फांसी की सजा, ऐसी थी शहादत की कहानी

हेमू कालाणी के कई क्रांतिकारी किस्से प्रसिद्ध है जो आज भी याद किए जाते हैं। आपको बता दें कि जब यह 19 साल के थे तब इन्होंने अपनी टोली के साथ "अंग्रेजों भारत छोड़ों " के नारे लगाते हुए सिन्ध प्रदेश में तहलका मचा दिया था।

Update:2021-03-23 11:07 IST
देश भक्त हेमू कालाणी: अंग्रेजों ने सुनाई फांसी की सजा, ऐसी थी शहादत की कहानी photos (social media)

लखनऊ : हेमू कालाणी भारत के एक क्रन्तिकारी एवं स्वतंत्रता सेनानियों के रूप में याद किए जाते हैं। भारत को आजाद कराने के लिए कई सपूतों ने अपने प्राण को न्यौछावर कर दिया। हेमू कालाणी भी इन सपूतों में से एक है। इनका जन्म आज ही के दिन यानि 23 मार्च 1923 में हुआ था। आज इस स्वतंत्रता सेनानी के जन्म दिन के मौके पर इनके जीवन से सम्बंधित कई बहादुरी के किस्से जानते हैं।

हेमू कालाणी का जन्म

भारतीय सेनानी हेमू कालाणी का जन्म 23 मार्च 1923 को सिंध के सख्खर में हुआ था। बताया जाता है कि यह बच्चपन से ही काफी साहसी रहे थे। हेमू अपने विद्यार्थी जीवन से ही काफी सक्रीय रहे थे। जब यह मात्र 7 साल के थे तब तिरंगा लेकर अंग्रेजों की बस्ती में चले गए थे और वहां अपने दोस्तों के साथ क्रन्तिकारी गतिविधियों का नेतृत्व किया था।

कई क्रांतिकारी किस्से प्रसिद्ध

हेमू कालाणी के कई क्रांतिकारी किस्से प्रसिद्ध है जो आज भी याद किए जाते हैं। आपको बता दें कि जब यह 19 साल के थे तब इन्होंने अपनी टोली के साथ "अंग्रेजों भारत छोड़ों " के नारे लगाते हुए सिन्ध प्रदेश में तहलका मचा दिया था। हेमू अंग्रेजों के खिलाफ हमेशा से अपनी आवाज तेज करने के लिए जाने जाते थे। वह हमेशा लोगों से विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार करने का अनुरोध किया करते थे। इसके बाद वह राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम के क्रियाकलापों में भाग लेना शुरू कर दिया।

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अंग्रेजी हुकूमत ने हेमू कालाणी को सुनाई फांसी की सजा

भारतीय सेनानी हेमू ने एक बार अंग्रेजों की एक ट्रेन जिसमें क्रांतिकारियों के दमन करने का हथियार था। अंग्रेजी सेना इन हथियारों से भरी रेलगाड़ी रोहड़ी शहर से होकर गुजरेगी। हेमू अपने साथियों के साथ इस ट्रेन की पटरियों को अस्त - व्यस्त करने की योजना बनाई। आपको बता दें कि यह कार्य बड़ी गुप्त तरीके से कर रहे थे लेकिन अंग्रेजों ने देख लिया। हेमू कालाणी को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया और उनके अन्य साथी मौके पर फरार हो गए। अंग्रेजी हुकूमत ने इनको फांसी की सजा सुना दी। 26 जनवरी 1943 में इनको फांसी दे दी गई। आज भी यह नाम एक भारतीय सेनानी के रूप में याद किया जाता है।

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