मरे हुए लोगों की रेल यात्रा, यहां आत्माओं के बुक हो रहें टिकेट

आधुनिकता के इस दौर में आज भी अंधविश्वास जीवित है। लोगों को धर्म,आस्था, श्रद्धा के नाम पर लूटा जा रहा है। ये कहना गलत नहीं कि अच्छाई-बुराई सब होती है दुनिया में लेकिन उसको हद से ज्यादा मान लेना गलत होता है।

Update:2023-05-11 02:46 IST

नई दिल्ली: आधुनिकता के इस दौर में आज भी अंधविश्वास जीवित है। लोगों को धर्म,आस्था, श्रद्धा के नाम पर लूटा जा रहा है। ये कहना गलत नहीं कि अच्छाई-बुराई सब होती है दुनिया में लेकिन उसको हद से ज्यादा मान लेना गलत होता है। हम आपको एक ऐसी बात बताने जा रहे हैं जिसे सुन कर आप चौंक जाएगे। और सोचेंगे की लोगों के मन में क्या-क्या चलता रहता है।

आज हम आपको एक ऐसी ही खबर बताने जा रहे हैं जिसमे लोग मरे हुए लोगों का भी भारतीय रेल में रिजर्वेशन करते हैं और उन्हें रिजर्वेशन मिलता भी है। जी हां...ट्रेनों में पितरों के नाम से सीट रिजर्व कर उन्हें 'गयाजी' लाते हैं। पिंडदानी इंसानों की तरह ट्रेन की रिजर्व बर्थ पर 'पितरों' के रूप में 'नारियल और बांस' से निर्मित 'पितृदंड' को सुलाकर लाया जाता है। 'गयाजी' पितृदंड निर्माण के लिए पितरों के अंतिम संस्कार से संबंधित श्मशान घाटों की पवित्र मिट्टी का इस्तेमाल किया जाता है।

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बिहार के गया में 15 दिनों तक चलने वाले पितृपक्ष महासंगम मेले में देश के कोने-कोने से लाखों हिन्दू सनातन धर्मावलम्बी अपने पितरों का उद्धार और मोक्ष दिलाने के लिए गया में पिंडदान, तर्पण व श्राद्ध कार्य करते हैं लेकिन उड़ीसा के कांटामांझी से आए पिंडदानियों का दल अपने साथ मृत पूर्वजों का रेल टिकट कटा कर यहां लाए हैं।

ओड़िया के लोगों ने बताया की अपने पूर्वजों के प्रति आस्था है, तभी इतनी संख्या में लोग आते हैं। वह अपने साथ साधारण से दिखने वाले डंडे की टिकट बुक करा कर बर्थ पर रख कर यहां लाए हैं जिसे वे पितृदंड कहते हैं। इसके बारे में बताया कि इस पितृदंड में अपने पूर्वजों से जुड़ी चीजें गांठ के रूप में बांधते हैं। इसे लाने से पहले वहां 7 दिनों तक भगवदगीता पाठ का आयोजन कराते हैं। उसके बाद सभी सदस्यों में सबसे पहले पितृदंड का रिजर्वेशन कराते हैं फिर बाकी के सदस्यों का टिकट होता है।

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टिकट के बाद कोच के बर्थ पर पितृदंड को लिटा कर लाते है। इस बीच ट्रेन में टीटीई भी पूछते है की यह क्या तो उन्हें बताया जाता है और उनका टिकट भी दिखाया जाता है। अब सभी सदस्य रास्ते मे 2-2 घंटे का पहरा देते हैं ताकि कोई परेशान न करे, कोई ठोकर न मार दे। जिस तरह से पूर्वज अपने बच्चों को संभालते है, उसी तरह अब उनके वंशज अपने पूर्वजों को संभाल कर यहां लाते हैं और फिर यहां पिंडदान करते हैं।

गयाजी में वर मित्तल के परिवार ने बताया की हम लोग पितृ मोक्ष के लिए आए हैं। हम लोग 9 सितम्बर को उड़ीसा के कांटामांझी से निकले हैं और इलाहाबाद और बनारस पिंडदान कराते हुए गयाजी पहुंचे हैं। हमारी सात पीढ़ी के पूर्वज ट्रेन से और बस से पितृदंड लेकर गयाजी पहुंचे हैं। पितृदंड का रेलवे में अलग से रिजर्वेशन होता है। पितृदंड के रिजर्वेशन के सीट पर पितृदंड ही रहते हैं, बाकी हम लोगों का अलग रिजर्वेशन होता है। जो यहां से पंडा जी कपड़ा देते हैं, उसी को बिछा कर पितृदंड को रखा जाता है और पूरे रास्ते में देखभाल कर के लाया जाता है।

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मित्तल परिवार ने कहा की हम 10 लोग साथ में आए हैं। सभी लोगों ने 2 -2 घंटे की ड्यूटी बांध ली थी की पितृदंड को कोई तकलीफ नहीं हो। रात को पितृदंड को हम लोग अकेले में नहीं छोड़ते हैं। ट्रेन में लोग पूछते थे की यह क्या चीज है तो हम लोग उनको समझाते थे की हम लोगों के पूर्वज हैं और इसे पितृदंड कहते हैं। हम पूजा के लिए गयाजी जा रहे हैं। उड़ीसा के टीटीई ट्रेन में पूछते हैं की यह क्या है मगर इधर के टीटीई कुछ नहीं पूछते हैं। कुछ टीटी नहीं समझते थे तो उन्हें हम लोग समझाते थे की हम लोगों की आस्था से जुड़ी चीज है। हम लोग गयाजी में 20 दिनों तक रहेंगे, इसलिए इनको साथ में लेकर जा रहे हैं।

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