नई दिल्ली: तीन तलाक पर आज (22 अगस्त) का दिन बेहद अहम है। सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय खंडपीठ तीन तलाक के मुद्दे पर अपना अहम फैसला दे सकती है। इस खंडपीठ में सभी धर्मों के जस्टिस शामिल हैं। इनमें चीफ जस्टिस जेएस खेहर (सिख), जस्टिस कुरियन जोसफ (ईसाई), जस्टिस रोहिंग्टन एफ नरीमन (पारसी), जस्टिस यूयू ललित (हिंदू) और जस्टिस अब्दुल नजीर (मुस्लिम) शामिल हैं।
बता दें, कि इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में 11 से 18 मई तक सुनवाई चली थी। जिसमें मुस्लिम समुदाय में चल रही प्रथा तीन तलाक, निकाह हलाला और बहुविवाह की वैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनावई हुई।
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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नहीं बताया कानून के अनुरूप
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक मुद्दे पर सुनवाई गर्मियों की छुट्टी के दौरान भी जारी रखी। सुप्रीम कोर्ट का तीन तलाक पर फैसला इसलिए भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि अप्रैल के अंतिम हफ्ते में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में तीन तलाक को एकतरफा और कानून के अनुरूप नहीं बताया था। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अकील जमील की उस याचिका को खारिज करते हुए यह फैसला सुनाया था, जिसमें उसकी पत्नी ने अकील के खिलाफ आपराधिक शिकायत दर्ज किया था। उसने अपने पति पर दहेज के लिए मारपीट करने और जब मांगें पूरी ना होने पर तीन तलाक देने के चलते केस दर्ज किया था।
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'तीन तलाक की वैधानिकता पर होगा फैसला'
सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले कहा था, कि वह मुस्लिमों में चल रहे तीन तलाक, निकाह हलाल और बहुविवाह की वैधानिकता से संबंधित मुद्दों पर फैसला करेगा। दूसरी तरफ, सुप्रीम कोर्ट में अपनी ओर से दिए गए हलफनामे में केंद्र सरकार ने कहा था, कि 'वह तीन तलाक की प्रथा को वैध नहीं मानती और इसे जारी रखने के पक्ष में नहीं है।'
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तलाक पर लें महिलाओं की राय
हालांकि, अदालत में सुनवाई के दौरान ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने माना था कि वे सभी काजियों को एडवाइजरी जारी करेगा ताकि वे तीन तलाक पर न केवल महिलाओं की राय लें, बल्कि उसे निकाहनामे में शामिल भी करें। अब सबकी नजरें सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर टिकी हुई हैं।
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सुप्रीम कोर्ट ने पूछे थे ये तीन अहम सवाल
18 मई यानि तीन तलाक मुद्दे पर चली सुनवाई के आखिरी दिन सुप्रीम कोर्ट ने ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड से पूछा था, कि 'क्या निकाह के समय 'निकाहनामा' में महिला को तीन तलाक के लिए 'ना' कहने का विकल्प दिया जा सकता है?' चीफ जस्टिस खेहर ने मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के वकील कपिल सिब्बल से पूछा था, कि 'क्या ये संभव है कि किसी महिला को निकाह के समय ये अधिकार दिया जाए कि वह तीन तलाक को स्वीकार नहीं करेगी?' कोर्ट ने ये भी पूछा कि 'क्या ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड सभी काजियों को निर्देश जारी कर सकता है कि वे निकाहनामा में तीन तलाक पर महिला की मर्जी को भी शामिल करें।'
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...तो केंद्र सरकार कानून लाएगी
वहीं, अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने चीफ जस्टिस जगदीश सिंह खेहर की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ से सुनवाई के दौरान कहा था, 'अगर शीर्ष अदालत तुरंत तीन तलाक के तरीके को निरस्त कर देती है, तो केंद्र सरकार मुस्लिम समुदाय के बीच शादी और तलाक के नियमन के लिए एक कानून लाएगी।' मुकुल रोहतगी ने ये बातें तब कही, जब कोर्ट ने उनसे पूछा था कि 'अगर तीन तलाक के तरीके निरस्त कर दिए जाएं, तो शादी से निकलने के लिए किसी मुस्लिम मर्द के पास क्या तरीका होगा?'
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ये है पूरा मामला
मार्च 2016 में उतराखंड की शायरा बानो नामक मुस्लिम महिला ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर तीन तलाक, हलाला निकाह और बहु-विवाह की व्यवस्था को असंवैधानिक घोषित किए जाने की मांग की थी। शायरा बानो ने मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लीकेशन कानून 1937 की धारा- 2 की संवैधानिकता को चुनौती दी है। कोर्ट में दाखिल याचिका में शायरा ने कहा है, कि 'मुस्लिम महिलाओं के हाथ बंधे होते हैं। उन पर तलाक की तलवार लटकती रहती है। वहीं, पति के पास निर्विवाद रूप से अधिकार होते हैं। यह भेदभाव और असमानता एकतरफा तीन बार तलाक के तौर पर सामने आती है।' इसके बाद से अब पूरे देश की निगाह तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट के आनवाले फैसले पर टिकी हुई है।
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