Gurukul History: भारत के गुरुकुल, जानें गुरुकुल की शुरुआत कैसे हुई, आज क्या है स्थिति

Gurukul In India History: प्राचीन काल में भारत में जो प्रसिद्ध शैक्षिक प्रणाली प्रचलित थी, वह थी गुरुकुल प्रणाली। आइए जानें गुरुकुल प्रणाली क्या है और इसकी शुरुआत कब हुई।

Written By :  AKshita Pidiha
Update:2024-12-11 20:12 IST

Gurukul (फोटो साभार- सोशल मीडिया) 

Gurukul of India: भारत सदियों से शिक्षा और अध्ययन के क्षेत्र में समृद्ध परंपरा का गहना रहा है। यह अच्छी तरह से जाना जाता है कि यूरोप, मध्य पूर्व और पुर्तगाल जैसे देशों के लोग भारत आते थे ताकि वे उच्च गुणवत्ता की शिक्षा प्राप्त कर सकें। प्राचीन काल में भारत में जो प्रसिद्ध शैक्षिक प्रणाली (Educational System) प्रचलित थी, वह थी गुरुकुल प्रणाली (Gurukul System)। आप शायद यह सोच रहे होंगे कि गुरुकुल प्रणाली क्या है (Gurukul Pranali Kya Hai)। आइए इसके बारे में अधिक जानें।

मातृदेवो भवः, पितृदेवो भवः, आचार्य देवो भवः।।

ऐतिहासिक एवं धर्मग्रन्थों के अध्ययन से ज्ञात होता है कि पूर्व में भारतीय शिक्षा सत्र को मुख्य रूप से तीन श्रेणियों में विभक्त किया जाता था। प्रथम माता के प्रभाव से प्राप्त होने वाले शिक्षा एवं संस्कार, द्वितीय पिता के प्रभाव से प्राप्त होने वाले शिक्षा एवं संस्कार तथा तृतीय आचार्य के प्रभाव से प्राप्त होने वाले शिक्षा एवं संस्कार।

"गुरु गृह पठन गए रघुराई। अलप काल विद्या सब पाई।।"

धर्मशास्त्रों में वर्णित है कि भगवान श्रीराम ने अपने अनुज भ्राताओं के साथ महर्षि वशिष्ठ के गुरुकुल में रहकर विद्यार्जन किया था। इसी प्रकार भगवान् श्रीकृष्ण ने बलराम जी और सुदामा जी के साथ महर्षि संदीपनी के गुरुकुल में विद्यार्जन किया था। कौरव और पाण्डवों ने भी महर्षि द्रोणाचार्य के गुरुकुल में रहकर विद्यार्जन किया था। गुरु संदीपनी के गुरुकुल में श्रीकृष्ण ने राजनीति शास्त्र, कूटनीति, अर्थशास्त्र, नैतिक शिक्षा, धर्म, कर्म, मोक्ष, न्याय दर्शन आदि विषयों की शिक्षा ग्रहण की थी, जिससे श्रीकृष्ण आगे चलकर युग पुरुष सिद्ध हुए थे।

गुरुकुल का अर्थ (Gurukul Ka Matlab)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

गुरुकुल का अर्थ है वह स्थान या क्षेत्र, जहां गुरु का कुल यानी परिवार निवास करता है। प्राचीन काल में शिक्षक को ही गुरु या आचार्य मानते थे और वहां शिक्षा प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों को उसका परिवार माना जाता था। गुरुकुल के छात्रों को लिए आठ साल का होना अनिवार्य था। पच्चीस वर्ष की आयु तक लोग यहां रहकर शिक्षा प्राप्त और ब्रह्मचर्य का पालन करते थे।

वर्तमान में गुरुकुल की संख्या

आज भी भारत में कई गुरुकुल कार्यरत हैं, जो परंपरागत शिक्षा पद्धति को सहेजे हुए हैं। एक अनुमान के अनुसार, भारत में वर्तमान में 4,500 से अधिक गुरुकुल हैं, जिनमें से अधिकांश ने आधुनिक शिक्षा के साथ वेदों और भारतीय संस्कृति की शिक्षा को भी शामिल किया है। ये गुरुकुल विभिन्न संस्कृतियों और परंपराओं का पालन करते हैं, जैसे कि स्वामी नारायण संप्रदाय, आर्ट ऑफ लिविंग, आर्य समाज और ISKCON जैसे संगठन कई गुरुकुल चला रहे हैं।

गुरुकुल का महत्व (Gurukul Ka Mahatva)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

गुरुकुल का महत्व अत्यधिक है क्योंकि यह भारतीय शिक्षा पद्धति का प्राचीन रूप है, जो न केवल शारीरिक और बौद्धिक शिक्षा प्रदान करता था, बल्कि जीवन के मूल्यों, संस्कारों और आध्यात्मिक ज्ञान का भी प्रसार करता था। प्राचीन काल में, बच्चों को गुरुकुल में भेजा जाता था, जहां वे गुरु से ज्ञान प्राप्त करते थे और विभिन्न शास्त्रों, गणित, विज्ञान और संस्कृत साहित्य में पारंगत होते थे।

आज के समय में, जहां शिक्षा प्रणाली ने अधिक व्यावसायिक रूप ले लिया है, गुरुकुलों की आवश्यकता इसलिये महसूस होती है क्योंकि वे बच्चों को केवल शैक्षिक ज्ञान ही नहीं, बल्कि आंतरिक शांति, नैतिक मूल्यों और समाज के प्रति उत्तरदायित्व की शिक्षा भी प्रदान करते हैं।

इसके अलावा, वे पारंपरिक भारतीय ज्ञान प्रणालियों को संरक्षित करने का कार्य भी करते हैं, जो आधुनिक शिक्षा में अक्सर गायब हो जाते हैं। इसलिए, आज भी भारत में गुरुकुलों की आवश्यकता है ताकि हम अपनी सांस्कृतिक धरोहर को बनाए रख सकें और साथ ही बच्चों को एक संतुलित, मूल्य-आधारित शिक्षा प्रदान कर सकें।

गुरुकुल प्रणाली का वर्तमान समय में महत्व

गुरुकुलों का मुख्य ध्यान छात्रों को एक प्राकृतिक वातावरण में शिक्षा देने पर था, जहाँ छात्र आपस में भाईचारे, मानवता, प्रेम और अनुशासन के साथ रहते थे। मुख्य शिक्षा भाषाओं, विज्ञान, गणित जैसे विषयों में समूह चर्चा, आत्म-शिक्षा आदि के माध्यम से दी जाती थी। इसके अलावा, कला, खेल, शिल्प, गायन आदि पर भी ध्यान दिया जाता था, जिससे छात्रों की बुद्धिमत्ता और आलोचनात्मक सोच विकसित होती थी।

योग, ध्यान, मंत्रोच्चारण जैसी गतिविधियाँ मानसिक शांति और सकारात्मकता उत्पन्न करती थीं और शारीरिक रूप से उन्हें फिट बनाती थीं। छात्रों को दैनिक कार्य स्वयं करने होते थे, जिससे उन्हें व्यावहारिक कौशल मिलते थे। ये सब उनके व्यक्तित्व विकास में मदद करते थे और आत्मविश्वास, अनुशासन, बौद्धिकता और मानसिक जागरूकता में वृद्धि करते थे, जो आज के समय में भी जरूरी हैं।

वर्तमान शिक्षा प्रणाली में खामियां (Flaws In Current Education System)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

दुर्भाग्यवश, उपर्युक्त अवधारणा गायब हो गई है और 1835 में लॉर्ड मैकाले द्वारा भारत में लाई गई आधुनिक शिक्षा प्रणाली अब दूसरों से आगे निकलने की दौड़ बन चुकी है। इस प्रणाली में व्यक्तित्व विकास, नैतिकता की जागरूकता और आचार्य प्रशिक्षण की पूरी तरह से कमी है। इसका एक बड़ा दोष यह है कि यह एक व्यापारिक प्रणाली बन चुकी है, न कि एक संस्थागत अवधारणा, जो छात्रों को समग्र शिक्षा देनी चाहिए। इस प्रणाली में शारीरिक गतिविधियों और अन्य कौशल विकास के लिए बहुत कम समय दिया जाता है, जो छात्रों को एक बेहतर इंसान बनाने में मदद कर सकते हैं।

क्या हमें भारत में गुरुकुल प्रणाली की आवश्यकता है

कई लोग गुरुकुल प्रणाली को अव्यवस्थित और अजीब समझ सकते हैं। एक शिक्षक के साथ रहने, पाठ्यक्रम या निर्धारित दिनचर्या की अनुपस्थिति पर विचार करते हुए यह सवाल उठता है कि आखिर एक बच्चा कुछ सीखेगा कैसे? हालांकि, आजकल के शिक्षा विशेषज्ञों ने पीछे मुड़कर देखा है और यह महसूस किया है कि गुरुकुल प्रणाली से कई ऐसे शिक्षा के तरीके हैं, जिन्हें वर्तमान शिक्षा प्रणाली में लागू किया जा सकता है। यहां कुछ कारण दिए गए हैं, जो यह समझने में मदद करेंगे कि गुरुकुल प्रणाली क्यों महत्वपूर्ण है:

आधुनिक बुनियादी ढाँचा– छात्रों का मजबूत और स्थिर ज्ञान केवल तभी हो सकता है जब प्रायोगिक ज्ञान पर ध्यान दिया जाए। दुर्भाग्यवश, हमारी वर्तमान शिक्षा प्रणाली केवल किताबों तक सीमित है, जो अपर्याप्त है। गुरुकुल प्रणाली ने प्रायोगिक ज्ञान पर ध्यान केंद्रित किया था, जिससे छात्र जीवन के सभी क्षेत्रों में तैयार होते थे। वर्तमान में इसे शैक्षणिक और अतिरिक्त गतिविधियों का संतुलन बनाकर, साथ ही मानसिकता और आध्यात्मिक जागरूकता के क्षेत्र में शिक्षा प्रदान करके किया जा सकता है।

समग्र शिक्षा– आजकल की शिक्षा प्रणाली मुख्य रूप से रैंक आधारित होती है, जो छात्रों के बीच शत्रुता को बढ़ाती है। इसे और बढ़ावा उन अत्यधिक महत्वाकांक्षी माता-पिता द्वारा मिलता है, जो छात्रों के ज्ञान को केवल शैक्षणिक प्रदर्शन से आंकते हैं। गुरुकुल प्रणाली के अनुसार एक मूल्य आधारित प्रणाली लागू की जा सकती है, जो छात्र की विशिष्टता पर ध्यान केंद्रित करेगी, जिससे वे अपनी रुचियों में उत्कृष्टता प्राप्त कर सकेंगे। इससे एक अच्छा चरित्र निर्माण होगा, जो तेज़ प्रतिस्पर्धा और बढ़ते तनाव स्तरों से दूर होगा, जो आमतौर पर अवसाद का कारण बनते हैं।

शिक्षक और छात्र के बीच संबंध– वर्तमान समय की आवश्यकता यह है कि शिक्षक और छात्र के बीच मित्रवत संबंध और सम्मान का आदान-प्रदान हो। जब बच्चे सुरक्षित महसूस करते हैं और देखभाल करने वाले पर विश्वास करते हैं, तो वे इसी को अनुकरण करते हैं। यह गुरुकुल प्रणाली में मौजूद था, जिसे आज के समय में विभिन्न गतिविधियों और प्रशिक्षण कार्यशालाओं के माध्यम से छात्रों के साथ जोड़ा जा सकता है।

प्राचीन भारत में गुरुकुल पद्धति क्या थी?

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

प्राचीन भारत में गुरुकुल पद्धति में पढ़ने वाले बच्चों को गुरु के यहां जाना होता था। यहां वो गुरू के यहां रह कर ही अपनी पढ़ाई करते थे। वहां जाने वाले बच्चों की आयु 8 से 10 साल होती थी। विद्यार्थी वहीं रह कर गुरु की आज्ञा का पालन करते थे और उनके दिए निर्देशों के अनुसार अपनी शिक्षा लेते थे। गुरुकुल में बच्चों को दिनचर्या के सभी कार्य करने होते थे।

गुरुकुल में किस प्रकार छात्रों को विभाजित किया जाता है

छात्रों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया जाता है:

1. वासु – 24 साल की उम्र तक शिक्षा प्राप्त करने वाले।


2. रुद्र – 36 साल की उम्र तक शिक्षा प्राप्त करने वाले।

3. आदित्य – 48 साल की उम्र तक शिक्षा प्राप्त करने वाले।

​विक्रमशिला गुरुकुल न्याय दर्शन विषय के लिए था प्रसिद्ध​

इस गुरुकुल में चार प्रमुख तोरण द्वार थे, प्रत्येक द्वार पर एक परीक्षा होती थी, जिसे छात्रों को प्रवेश के लिए पास करना पड़ता था। यहाँ आठ महागुरु कुलपति और 108 गुरु थे, जो धर्म, न्याय, दर्शन और तंत्र की शिक्षा देते थे। भारतीय शिक्षा व्यवस्था के प्राचीन गुरुकुलों में गूढ़ ज्ञान-विज्ञान के मूल्य निहित थे, और गुरु का स्थान मानव कल्याण में अत्यंत महत्वपूर्ण था, देवताओं के बाद गुरु का सम्मान सर्वोच्च था।

​नालन्दा का नाम विश्व भर में प्रसिद्ध था​

नालंदा एक प्रमुख ज्ञान केन्द्र था, जिसने दुनिया को भारतीय ज्ञान, विज्ञान, दर्शन, कला और संस्कृति से परिचित कराया। चीनी यात्री ह्वेनसांग ने यहाँ 10,000 से अधिक छात्रों के होने का उल्लेख किया। यहाँ 1,500 से अधिक गुरु थे, और मुख्य गुरु शीलभद्र थे। तीन विशाल पुस्तकालयों में अनेक विषयों के ग्रंथ संकलित थे।


प्रमुख विद्वान जैसे जिनमित्र, चन्द्रपाल, ज्ञानचन्द्र, और आचार्य शान्तरक्षित ने नालंदा को वैश्विक प्रसिद्धि दिलाई।

तक्षशिला में इन विषयों को पढ़ाया जाता था​

तक्षशिला, भारत की प्राचीनतम शिक्षा केन्द्रों में से एक थी, जहाँ चाणक्य जैसे महान राजनीतिज्ञ और कौमारजीव जैसे प्रसिद्ध चिकित्सक गुरू थे। यहाँ 18 प्रकार की विद्या सिखाई जाती थी, विशेष रूप से अर्थशास्त्र, राजनीति और आयुर्वेद। तक्षशिला के अवशेषों से यह साबित होता है कि यहाँ प्राचीन काल में एक समृद्ध और उन्नत सभ्यता मौजूद थी। यह नगरी ईसा से 500 साल पहले से लेकर छठी शताब्दी तक प्रमुख शिक्षा केन्द्र रही थी।

गुरुकुल प्रणाली ने भारतीय सभ्यता के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। यह केवल ज्ञान का केंद्र नहीं था, बल्कि एक ऐसा स्थान था जहाँ छात्र संपूर्ण व्यक्तित्व का निर्माण करते थे।गुरुकुल भारत की प्राचीन शिक्षा प्रणाली का आधार थे, जहाँ विद्यार्थी अपने गुरु के सान्निध्य में रहते हुए विद्या प्राप्त करते थे। इन संस्थाओं का उद्देश्य केवल शैक्षिक ज्ञान देना नहीं था, बल्कि जीवन के मूल्यों, नैतिकता और अनुशासन का विकास भी करना था।

Tags:    

Similar News