बर्थ डे स्पेशल: जानिए, कसाब को जिंदा पकड़वाने वाले 'करकरे' की अनसुनी दास्तान
हेमंत करकरे ने नॉरकोटिक्स विभाग में तैनाती के दौरान पहली बार विदेशी ड्रग्स माफिया को गिरगांव चौपाटी के पास गोली मारकर ढेर कर दिया था। महाराष्ट्र मालेगांव बम धमाके की जांच का जिम्मा भी उन्हें ही सौंपा गया था।
लखनऊ: 26/11 मुंबई आतंकी हमले में शहीद तत्कालीन एटीएस प्रमुख हेमंत करकरे का जन्म 12 दिसंबर 1954 को करहड़े ब्राह्मण परिवार में हुआ था।
उन्होंने अपने पूरे जीवन में कई भूमिकाएं अदा कीं। वह एक आदर्श पुलिस अधिकारी थे। उन्होंने वैश्विक स्तर पर अपने देश का प्रतिनिधित्व किया।
वह सामाजिक कार्यकर्ता और कलाकार भी थे। उन्होंने 26/11 के आतंकी हमले में शामिल आतंकी अजमल आमिर कसाब को ज़िंदा पकड़वाया था। उनकी बहादुरी के लिए बाद में उन्हें मरणोपरांत अशोक चक्र से भी सम्मानित किया गया था।उनके जीवन पर एक किताब भी लिखी जा चुकी है।
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हेमन्त करकरे के बारें में ये बातें नहीं जानते होंगे आप
हेमन्त करकरे तीन भाई और एक बहन थे। भाई –बहन में हेमन्त सबसे बड़े थे। उनकी शुरूआती पढ़ाई वर्धा के
चितरंजन दास स्कूल में हुई थी। 1975 में उन्होंने विश्वेश्वरैया नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, नागपुर से मैकेनिकल इंजीनियर की डिग्री हासिल की थी।
उसके बाद हिंदुस्तान यूनीलिवर में उनकी नौकरी लग गई थी। हेमन्त करकरे वर्ष 1982 में आईपीएस अधिकारी बने। महाराष्ट्र के ज्वाइंट पुलिस कमिश्नर के बाद इनको एटीएस चीफ बनाया गया था।
इस दौरान इन्होंने कई कारनामे किए। वह ऑस्ट्रिया में भारत की खुफिया एजेंसी रॉ के अधिकारी के रूप में सात साल तक तैनात थे. चंद्रपुर के नक्सल प्रभावित क्षेत्र में भी काम किया था।
नॉरकोटिक्स विभाग में तैनाती मिलने के बाद किया था बड़ा कारनामा
नॉरकोटिक्स विभाग में तैनाती के दौरान उन्होंने पहली बार विदेशी ड्रग्स माफिया को गिरगांव चौपाटी के पास गोली मारकर ढेर कर दिया था।
8 सितंबर 2006 में महाराष्ट्र के मालेगांव में एक के बाद एक कई बम धमाके हुए थे। इसकी इन्वेस्टीगेशन का जिम्मा हेमंत करकरे को सौंपा गया था। बाद में उनकी चार्जशीट पर कई सवाल भी उठे थे।
उनके ख़िलाफ़ जांच के दौरान आरोपियों पर प्रताड़ित करने का आरोप लगा। कहा जाता है कि एक आरोपी सुधाकर चतुर्वेदी के घर आरडीएक्स भी उनकी टीम के इंस्पेक्टर बागड़े ने रखा था।
साध्वी प्रज्ञा सहित तमाम आरोपियों को एक साजिश के तहत फंसाने का भी उन पर आरोप लगा था। मुंबई में 26 नवंबर 2008 को जब आतंकी हमला हुआ था तब हेमंत करकरे दादर स्थित अपने घर पर ही थे।
वह फौरन अपने दस्ते के साथ मौके पर पहुंच गये थे। उन्हें उसी सूचना मिली कि कॉर्पोरेशन बैंक के एटीएम के पास आतंकी एक लाल रंग की कार के पीछे छिपकर बैठे हुए हैं। हेमंत जैसे ही मौके पर पहुंचे उनके ऊपर फायरिंग होने लगी।
इसी बीच एक गोली एक आतंकी के कंधे पर लगी। वो जख्मी हो गया। उसके हाथ से एके-47 गिर गया।वह आतंकी अजमल कसाब था, जिसे करकरे ने धर दबोचा। तभी आतंकियों की ओर से जवाबी फायरिंग में तीन गोली इस बहादुर जवान को भी लगी, जिसके बाद हेमंत करकरे शहीद हो गए।
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बेटी जुई करकरे ने पिता के ऊपर लिखी किताब
“हर बच्चे के लिए उसका पिता हीरो होता है, मेरे लिए वो हमेशा एक रक्षक की तरह रहे” ये पंक्तियां हैं हेमंत करकरे की बेटी और लेखक, जुई करकरे की। अपने पिता को खोने का दर्द जितना है, उससे ज्यादा गर्व अपने पिता की बहादुरी पर है।
भारत का हर बड़ा और बुजुर्ग यह जनता है कि महाराष्ट्र ATS प्रमुख हेमंत करकरे 26/11 आतंकी हमले में शहीद हो गए थे। इस हमले के 11 साल बाद, उनकी बेटी जुई करकरे नवरे ने अपने पिता की यादों का जिक्र अपनी किताब ‘Hemant Karkare: A Daughter’s Memoir’ में किया है।
जानिये एक बेटी की भावना अपने हीरो पिता के लिए
ये बात सिर्फ मानने में ही लंबा वक्त लग गया कि वो अब इस दुनिया में नहीं हैं। मैं उस वक्त बॉस्टन में थी, मेरे पति को भारत सरकार से कॉल आया कि वो हमारा मुंबई का टिकट स्पॉन्सर कर रहे हैं।
उसके बाद मैंने ये महसूस किया कि इस दुनिया में न होते हुए भी वो हमारा ख्याल रख रहे हैं। मैं ये मान ही नहीं सकती थी कि ऐसा भी कुछ हो सकता है। उनकी उम्र सिर्फ 54 साल थी।
जुई करकरे, शहीद हेमंत करकरे की बेटी और लेखक हैं
उन्होंने आगे कहा कि उनकी इस किताब के सहारे उनकी बेटी को अपने नाना के बारे में जानने का मौका मिलेगा। अपने बचपन के कुछ किस्सों को याद करते हुए जुई कहती हैं कि उनके पिता हमेशा जड़ से किसी भी समस्या को हल करने की कोशिश करते थे। ये उनके लिए सिर्फ नौकरी नहीं थी, बल्कि उनकी ड्यूटी थी।
जब हेमंत करकरे महाराष्ट्र के चंद्रपुर में पोस्टेड थे, तब अपने पिता से सुने एक किस्से को याद करते हुए जुई ने बताया कि वो उस वक्त एसपी थे, इसलिए गांव-गांव तक जाते थे और लोगों से बात करते थे, क्योंकि चंद्रपुर में नक्सली दिक्कतें काफी बड़ी थीं।
वो (हेमंत) सोचते थे कि इस स्थिति को कैसे बदला जाए
उन्होंने वहां के बच्चों से बात की और उनसे पूछा कि वो बड़े होकर क्या बनना चाहते हैं? कई बच्चों ने कहा ‘शेखर अन्ना’ जो नक्सलियों का नेता था।
मेरे पिता ने बताया कि उन बच्चों के पास कोई अच्छा रोल मॉडल नहीं था। वो पुलिसवालों को अपना दुश्मन और नक्सलियों को अपने करीब समझते थे। ऐसे में वो (हेमंत) सोचते थे कि इस स्थिति को कैसे बदला जाए।
जुई ने बताया कि फिर कैसे हेमंत करकरे कई ट्रांसलेटर से मिले और फिर गांव में अपनी टीम के साथ जाकर लोगों और बच्चों से बात की। उन्होंने लोगों से कहा कि वो उनकी तरफ हैं। उनके पिता का मानना था कि बदलाव नियम-कानून से ही आ सकता है, हिंसा से नहीं।
हर देश को शहीदों का सम्मान करना चाहिए
बीजेपी सांसद प्रज्ञा ठाकुर ने लोकसभा चुनाव के दौरान शहीद हेमंत करकरे को लेकर कई विवादित बयान दिए थे।
प्रज्ञा ठाकुर के बयान पर जुई ने कहा-‘मुझे लगता है कि हर देश को अपने शहीदों का सम्मान करना चाहिए। जिसने देश के लिए अपनी जान दे दी। देश के लिए कोई इससे बड़ी कुर्बानी नहीं दे सकता, इसलिए उनका हमेशा सम्मान होना चाहिए।’
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