सिंधु बॉर्डर: किसानों ने 5 हजार रुपए तक किराये पर लिए मकान, ये बातें आपको पता हैं?
किसान आन्दोलन में ध्यान देने वाली बात ये है कि यहां किसानों की थकान दूर करने के लिए दिन भर चाय वितरित की जाती है। चाय को तैयार करने के बाद उसे 300 किलो के टैंक में भर दिया जाता है।
नई दिल्ली: केंद्र सरकार के कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का आन्दोलन 59 दिनों से जारी है। इन 59 दिनों में किसानों ने पुलिस की लाठी से लेकर प्रकृति की मार सही है। बात चाहें खुले आसमान के नीचे रात बिताने का हो, दिन भर भूखे पेट रहने का हो। या फिर तेज आंधी और पानी वाली बारिश हो।
आन्दोलन की जगह से किसानों को टस से मस नहीं कर पाई। लेकिन अब धीरे-धीरे इन्ही किसानों की हिम्मत जवाब देने लगी है। इसकी वजह कड़ाके की ठण्ड है। कई किसानों की ठण्ड लगने से मौत भी हो चुकी है।
जिसके बाद से बारिश और ठंड से बचने के लिए किसानों ने आसपास के इलाकों में किराये के मकान भी खोज लिए हैं। किसान इन किराए के घरों का तीन से पांच हजार रुपये प्रति माह किराया चुका रहे हैं।
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एक छोटे से कमरे के लिए चुकाना पड़ रहा पांच हजार रुपए किराया
नाम न छापने की शर्त पर किसानों ने बताया कि जब से किसान आंदोलन शुरू हुआ है तब से उनका परिवार यहीं पर उनके साथ है।
गांव वालों का जब जत्था निकला था तब उनके साथ ही सिन्धु बॉर्डर पर आग गए थे। कुछ दिन तक वे बाहर खुले में रह लिए। लेकिन जैसे-जैसे ठंड शुरू हुई तो उनकी परेशानियां बढ़ने लगी।
इसके बाद बॉर्डर के पास गांवों में ही एक छोटा सा किराये का मकान खोज लिया। जिसके बाद से वे दिनभर आंदोलन में शामिल होते हैं। रात को यहीं आराम करते हैं।
मकान होने से ठंड और बारिश दोनों से रक्षा हो जाती है। इसके बदले में एक छोटे कमरे के लिए उन्हें पांच हजार रुपये किराया चुकाना पड़ रहा हैं।
वहीं सिंघु बॉर्डर क्षेत्र में रहने वाले एक आदमी ने बताया कि ठंड और बारिश के पहले ही कुछ किसान आसपास के इलाकों में किराये के मकानों में रहने लगे थे। कोई किसान 15 दिन रुक रहा है तो कोई एक से दो महीने के लिए कमरा किराये पर ले रहा है।
उसने भी अपनी दुकान को कुछ लोगों को रहने के लिए किराये पर दे दिया है। वहां करीब पांच से सात लोग रोज रुकते है। एक –दूसरे को देखकर आसपास के कई लोग भी अपने घर के कमरे एक से दो दिन के लिए भी भाड़े पर दे रहे हैं।
200 लीटर डीजल से रोज 10 हजार ब्रेड पकौड़े और एक टन बनती है चाय
दिल्ली बॉर्डर आज मिनी पंजाब में तब्दील हो गया है। सिंघु बॉर्डर पर जहां तक नजर जाती है केवल किसान ही किसान दिखाई पड़ रहे हैं। जाहिर सी बात है बड़ी तादाद में देश भर से किसान यहां पर जमा हुए हैं इसलिए उनके रहने से लेकर खाने पीने का भी पूरा बंदोबस्त किया गया है।
यहां पर किसानों का हुनर भी निकलकर अब बाहर आने लगा है। आन्दोलन में शामिल होने आये दूर-दूर से किसान यहां पर अनूठी तकनीक का सहारा लेकर खाना बना रहे हैं।
करीब 200 लीटर डीजल की खपत कर वह बड़े बर्नर से एक टन चाय रोजाना बनाते हैं। नाश्ते के लिए लगभग 10 हजार ब्रेड पकोड़ों को डीजल बर्नर के माध्यम से ही बनाया जा रहा है।
कुलवंत की लंगरघर में तैनाती है। उन्होंने बताया कि प्रदर्शन में किसानों के लिए नाश्ता तैयार करने के लिए उनकी जिम्मेदारी रहती है। जब लंगर की शुरुआत हुई थी तब बड़ी संख्या में गैस सिलिंडर का इंतजाम नहीं हो सका था। यह देखते हुए नाश्ता बनाने के लिए बड़े डीजल बर्नरों को चुना गया।
कुछ किलोमीटर की दूरी पर स्थित पेट्रोल पंप से प्रतिदिन 200 लीटर डीजल के ड्रम भरकर लाए जाते हैं, जिनसे एक दिन में करीब एक टन चाय और 10 हजार ब्रेड पकोड़े नाश्ते में बनाते हैं।
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डीजल की आपूर्ति टोंटी से की जाती है
कुलवंत के मुताबिक डीजल के बड़े टैंक को विभिन्न बर्नर के साथ आपसे में कनेक्ट किया गया है। इन बर्नर के बाहर दो टोटी लगाई गई हैं।
जिसमें से बूंद बूंद कर डीजल बर्नर में पहुंचता है। बर्नर में हवा देने के लिए एक पंखे को भी लगाया गया है, जिसकी तेज हवा के कारण आग की आंच कम या ज्यादा की जाती है। इससे गैस के मुकाबले कम समय में नाश्ते को तैयार कर लिया जाता है।
300 किलो के टैंक में रोजाना भरी जाती है चाय
किसान आन्दोलन में ध्यान देने वाली बात ये है कि किसानों की थकान दूर करने के लिए यहां पर दिन भर चाय वितरित की जाती है। चाय को तैयार करने के बाद उसे 300 किलो के टैंक में भर दिया जाता है।
यह टैंक विशेषकर चाय के लिए तैयार किया गया है। इसके नीचे भी एक बर्नर लगाकर रखा हुआ है, जिसे गैस सिलिंडर से कनेक्ट किया गया है। बर्नर को धीमी आंच पर पूरा दिन चालू रखा जाता है, जिससे दिनभर चाय गरम होती रहती है और प्रदर्शन में शामिल लोग ठंड से बचने के लिए गरम चाय की चुस्कियां लेते हैं।
40 लोग मिलकर तैयार करते हैं नाश्ता
दिल्ली बॉर्डर पर बड़ी तादाद में किसान जमा हैं। उनके लिए रोज नास्ता तैयार करना बड़ी चुनौती है। किसानों के बीच से ही 40 लोगों को चुना गया है।
जो रोज हजारों लोगों के लिए नाश्ता तैयार करते हैं। कुलवंत ने बताया कि दिन में कई ऐसे लोग भी आते हैं जो अपनी मर्जी से यहां सेवा देते हैं। इसके लिए उनके कोई भुगतान नहीं किया जाता है।