इश्क में सरहद की हद लांघ गई POK से आई दो बहनें, भारतीय सेना ने उठाया बड़ा कदम
पीओके से आई लाइबा जुबैर ने भारतीय सैनिकों को बताया कि वह पिछले 10 सालों से गुलाम कमीर के अब्बासपुर में रह रही हैं। वह बेहद गरीब परिवार से ताल्लुक रखती है। उसके दादा अब्दुल हक मूल रूप से श्रीनगर के रहने वाले थे।
जम्मू: कहते हैं कि प्यार अंधा होता है। प्यार में इंसान जाति और धर्म को नहीं देखता है। उसकी राह में चाह लाख मुसीबतें क्यों न आये। वह उन सब को हसंते हुए पार करते चला जाता है। उसकी आगे सरहद की दीवारें भी छोटी पड़ जाती हैं। वह ऊंची से ऊंची सरहदों को भी पार करने की ताकत रखता है।
आज हम आपको ऐसी ही एक सच्ची घटना के बारें में बताने जा रहे हैं। जिसके बारें में जानकर आप भी एक बार प्यार के बारें में सोचने पर मजबूर हो जायेंगे।
पुंछ जिले से गत रविवार को सरहद पार कर भारतीय क्षेत्र में PoK से आईं दो बहनों की कहानी भी कुछ इसी तरह मेल खाती है।
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भारतीय सेना ने तोहफे देकर सम्मान पाक भेजा वापस
भारतीय फौज ने आज सोमवार को इन दोनों बहनों को सम्मान के साथ तोहफे देकर पाकिस्तान को लौटा दिया। इन्हें पुंछ के चकन-द-बाग से पाकिस्तानी फौज को सौंपा गया।
गुलाम कश्मीर में अब्बासपुर की रहने वाली ये दोनों बहने गत रविवार को जिला पूंछ से लगती नियंत्रण रेखा को पार कर भारतीय क्षेत्र में घुस आई थी। भारतीय सरहद में प्रवेश करते ही फौज ने उन्हें पकड़ लिया।
बाद में इन्हें पुंछ पुलिस को सौंप दिया गया। पुलिस ने जब इन बहनों से पूछताछ की तो बड़ी बहन लाइबा जुबैर ने खुलासा किया कि वह भारत में गलती से प्रवेश कर गई हैं। जब उससे सरहदी क्षेत्र में आने की वजह पूछी गई तो लाइबा ने अपने प्रेम की दास्तां सुनाई।
उसने बताया कि उसके घरवाले उसकी मर्जी के बगैर दूसरी जगह उसकी शादी कराना चाहते हैं लेकिन वह किसी और से प्यार करती है। वह जिस लड़के से प्यार करती है वह पाकिस्तान की सेना का जवान है।
इन दिनों इसी इलाके में सरहद पर उसकी ड्यूटी लगी है। उसने मिलने के लिए बुलाया था। मिलने की चाहत में वह अपनी छोटी बहन सना जुबैर को साथ लेकर पाकिस्तानी सरहद के उस इलाके तक पहुंच आई, जहां उसका महबूब ड्यूटी पर तैनात रहता है।
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अन्धेरा होने पर रास्ता भटक गई दोनों बहनें
मीडिया रिपोर्टस के मुताबिक उसे ढूंढते-ढूंढते अंधेरा हो गया था और इस कारण उसे सरहद का पता नहीं चला और वे दोनों भारतीय क्षेत्र में प्रवेश कर बैठी। उसने बताया कि वे पिछले 10 सालों से गुलाम कमीर के अब्बासपुर में रह रही है।
वह बेहद गरीब परिवार से ताल्लुक रखती हैं। उसके दादा अब्दुल हक मूल रूप से श्रीनगर के रहने वाले थे। वर्ष 1990 में उनका देहांत हो गया था। उसके अब्बू मोहम्मद जुबैर पेशे से कसाई थे।
उनकी भी इस साल जुलाई में हार्ट अटैक से मौत हो गई। उनके पिता ने दो शादियां की थी और दोनों पत्नियों से छह-छह बच्चे थे। वे उनकी शादी उसकी मर्जी के बगैर कराना चाहते हैं। इसलिए उन्होंने इस तरह का कदम उठाया था।
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