UP Politics Story: पुरानी फाइल से! धर्मस्थल विधेयक पर कांग्रेस को हायतौबा मचाने का हक नहीं: सूरजभान
UP Politics Story: के सीनियर नेता सूरजभान सिंह ने बताया कि कांग्रेस को धर्मस्थल विधेयक पर हायतौबा मचाने का हक नहीं है। उन्होंने कहा कि विधेयक समर्थित होने से संविधान में कोई बदलाव नहीं होगा और न यह भारत की संघीयता को कमजोर करेगा।
UP Politics Story: नई दिल्ली, 09 मई, 2000, धर्मस्थल विधेयक, विश्वविद्यालय संशोधन बिल तथा उच्च शिक्षा के क्षेत्र में अपने कई निर्णयों के चलते समय-समय पर विवादों में आने वाले राज्यपाल सूरजभान फिर सक्रिय होने की तैयारी में हैं। वे शीघ्र ही शेष रह गईं मंडलीय समीक्षा बैठकें फिर शुरु करेंगे। प्रदेश के सभी विश्वविद्यालय में दो-दो दिन का प्रवास करके वे सामान्य और वित्तीय अनुशासन कायम करने की दिशा में सभी पक्षों से रायशुमारी तो करेंगे ही, ठोस निर्देश भी जारी करेंगे। उनका मानना है कि धर्मस्थल विधेयक से सीधे तौर पर तीन केंद्रीय एक्ट जुड़े हैं । इसलिए इसे राष्ट्रपति को भेजना अनिवार्य था। वह कहते हैं कि विश्वविद्यालय संशोधन बिल को लंबे समय तक लंबित रखेंगे। क्रास वोटिंग की पंरपरा को दुर्भाग्यपूर्ण मानने वाले सूरजभान सदन की गरिमा बरकरार रखने के लिए कठोर अनुशासन के पक्षधर है। उनका प्रयास है कि छात्र पूरा पाठ्यक्रम पढ़े और अध्यापक भी पूरा पाठ्यक्रम पढ़ाएं। इसके लिए वह दस प्रश्नों पर आधारित परीक्षा प्रणाली को बदलने की कवायद में जुटे हैं। अध्यापकों की सक्रिय राजनीति में भागीदारी के विरोधी सूरजभान गठबंधन सरकारों को राजनीति का संक्रमण काल मानते हैं और आश्वस्त हैं कि शीघ्र ही यह संक्रमण काल समाप्त होगा।
संविधान समीक्षा आयोग और अयोध्या जैसे मुद्दों को विवादास्पद मानते हुए इन पर किसी भी तरह की टिप्पणी से वह इनकार करते हैं। दैनिक जागरण ने उनसे इन मुद्दों पर लंबी बातचीत की। प्रस्तुत है उनसे की गई बातचीत के प्रमुख अंश-
धर्मस्थल विधेयक को आपने राट्रपति के पास क्यों भेज दिया? अभी हाल में यह प्रकाश में आया है कि राष्ट्रपति ने इसे प्रधानमंत्री को भेजा था। प्रधानमंत्री कार्यालय ने इसे हरी झंडी दिखाकर फिर राष्ट्रपति को भेज दिया है। राष्ट्रपति आपको यह बिल पुनः भेज दें तो आप क्या करेंगे?
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मैं इसमें कोई पार्टी नहीं हूँ। मैने वही किया है जो राजस्थान, मध्यप्रदेश और पश्चिम बंगाल के राज्यपालों ने किया था। इस विधेयक से केंद्र सरकार के तीन एक्ट, रीलिजियस एंडाउमेंट एक्ट व वक्फ एक्ट। इन अधिनियमों को राज्य सरकार कैसे संशोधित कर सकती है। इसलिए मैने धर्मस्थल विधेयक को राष्ट्रपति के पास भेज दिया। राष्ट्रपति जो कहेंगे उसे माना जाएगा। वैसे इस विधेयक पर कांग्रेस को हाय-तौबा मचाने का कोई अधिकार नहीं है क्योंकि कांग्रेस शासित राज्यों में यह विधेयक काफी पहले से अमल में है। इस विधेयक का विरोध करने से पहले कांग्रेस को राजस्थान और मध्यप्रदेश से धर्मस्थल विधेयक वापस ले लेना चाहिए।
विश्वविद्यालय संशोधन बिल आपके पास दोनों सदनों से पारित होकर लंबित पड़ा है। इस बिल पर आपकी क्या राय है? इसे आपने क्यों रोक रखा है?
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग एवं राज्यपालों की कांफ्रेस ने राज सरकार द्वारा इस बिल में किए गए संशोधन को अव्यवहारिक व औचित्यहीन ठहराया है। इस बिल के बारे में मेरे पास तीन ही स्थितियां थी-पहली, इस पर हस्ताक्षर कर देता। दूसरी, इसे सदन को वापस करता ।परंतु सदन इसमें संशोधन करके या उसी तरह दोबारा मेरे पास भेजता । तब मुझसे हस्ताक्षर करना पड़ता। तीसरी इसे लंबित रखता। मैने यही किया। वैसे भी लंबित रखने की कोई अवधि निश्चित नहीं है । इसलिए जब तक चाहूं इसे लंबित रख सकता हूँ। विश्वविद्यालय की स्वायत्ता को बनाए रखने के लिए भी इसे लंबित रखना जरुरी है। कुलाधिपति होने के नाते यह मेरी जिममेदारी भी है।
राज्यसभा और विधान परिषद चुनाव में हुई क्रास वोंटिंग को आप किस नजरिये से देखते हैं?
दुर्भाग्यपूर्ण है, इसे रोका जाना चाहिए। ऐसा सोचे जाने चाहिए जिससे इस प्रवृत्ति को रोका जा सके। वैसे खुला वोट देने का प्रस्ताव भी काफ़ी तेजी से आ रहा है। इस पर भी अभ्यास किया जाए तो उचित होगा।
आप लोकसभा के डिप्टी स्पीकर भी रह चुके राज्यपाल होने के कारण प्रदेश के दोनों सदनों का सर्वोच्च दर्जा भी हासिल है। सदनों की निरंतर गिरती गरीमा के बारे में आपकी क्या राय हैं?
इस सवाल का जवाब देने के लिए वाकया बताता हूँ। 1967 की बात है। मैं पहली दफा सांसद चुना गया था। मेरे ससुर गांव के अनपढ़ आदमी थे। मैंने उनसे कहा कि चलिए आपको संसद की कार्यवाही दिखाऊं। बाद में जब मैने उनसे पूछा कैसी लगी? वह बोले, ‘देख ली तुम्हारी पार्लियामेंट। तुम्हारे से अच्छी तो हमारी पंचायत है। हम एक दूसरे की बात तो सुन लेते हैं। तुम तो सुनते ही नहीं हो।‘ जब मैं डिप्टी स्पीकर बना तो मेरे एक हितैषी ने पूछा कि आप सांसदों को कैसे नियंत्रित करते हैं। तब मैने कहा-मैं सांसदों को नहीं, स्वयं को नियंत्रित करता हूँ। उन्होंने कहा कि सदन की गरिमा बनाए रखने के लिए कठोर अनुशासन लागू किया जाना चाहिए।
संविधान समीक्षा आयोग के बारे में आपकी क्या राय है?
यह विवादास्पद मुद्दा है। इस पर कुछ बोलने को मत कहिए।
आपने राज्यपाल बनकर प्रदेश में आते ही समीक्षा बैठकें शुरु कर दी थीं। इसे क्या आप राज्य सरकार के कामकाज में हस्तक्षेप नहीं मानते?
मंडल स्तर पर जाकर समीक्षा के पीछे भी एक घटना है। दरअसल जब मैं राज्यपाल बना ही था तभी एक कार्यक्रम में भाग लेने नोएडा आया। वहां कार्यक्रम की विश्ष्टि अतिथि किरन बेदी ने धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा कि आपके आने से सड़के अच्छी हो गई। मैंने उसी समय सोचा कि प्रदेश के कई जिलों में जाऊंगा। शायद मेरे जाने से ही कुछ विकास हो जाए। मैंने लखनऊ पहुंच कर कल्याण सिंह से कहा कि मैं समीक्षा बैठकें करना चाहता हूँ। मैं मंडल स्तर पर जाकर विकास कार्य की प्रगति को देखना चाहता हूँ। उन्होंने मुझे विकास की योजनाए बताई और आकड़े दिए। मैंने मंडल स्तर पर जाकर विशेष रुप से स्पेशल कंपोनेंट प्लान पर कार्य किया। इस योजना को बतौर सांसद मैंने ही शुरु कराया था। मैं चाहता था कि जिला स्तर पर अच्छे कर्मचारियों को सम्मानित किया जाए । लेकिन यह सब नहीं कर पाया। मुझे डाक्टरों ने आराम की सलाह दे दी। लेकिन अब मैं शेष मंडलों में जाकर अपने कार्यक्रम को आगे बढ़ाऊंगा।
उच्च शिक्षा के क्षेत्र में आपने काफी सक्रियता दिखाई है। कुलाधिपति होने के नाते वर्तमान उच्च शिक्षा पद्धति के बारे में आपकी क्या राय है?
इसके लिए मैं शीघ्र ही एक अभियान शुरु करने वाला हूँ। हर विश्वविद्यालय में जाकर कम से कम दो दिन ठहरुंगा। परिसर में छात्रों, अभिभावकों, शहर के संभ्रांत नागरिकों और अध्यापकों सभी से भेंट करुंगा। मैंने विश्वविद्यालयों में सामान्य और वित्तीय अनुशासन कायम रखने के लिए ऐसा करने का मन बनाया है। प्रदेश के सभी विश्वविद्यालयों को मैंने एक प्रश्नानली भेजी है, उसका उत्तर आने के बाद विश्वविद्यालय भ्रमण कार्यक्रम शुरु कर दूंगा। मैंने अस्थायी मान्यता प्रकरणों पर पूरी तरह से रोक लगा दी है। मान्यता के बिना छात्रों को पढ़ाने वाले संस्थानों पर आर्थिक दंड तो लगाया ही, छात्रों को क्षतिपूर्ति भी दिलवाई। छात्रावासों से अवैध कब्जे हटवाए। विश्वविद्यालय और महाविद्यालय छात्र संघों पर छात्रों का प्रभुत्व बनाए रखने के लिए कई कानून लागू किए और यह तय कर दिया कि छात्र संघ चुनाव लड़ने के लिए विद्यार्थी की आयु 25 वर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिए। जो छात्र दो बार फेल हो चुका हो और एक बार फेल होने के बाद दूसरी बार परीक्षा न दी हो उसे चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित कर दिया गया है।
मैंने परीक्षा प्रणाली में अनेक परिवर्तनों का प्रस्ताव रखा है। अब दस में से पांच सवाल नहीं करने होंगे। संभव है कि प्रश्नपत्र में पच्चीस हो और सभी करने पड़ें। हां, प्रश्नों के उत्तर कम लिखने होंगे और उनके अंक कम होंगे। उन्होंने कहा कि मैं इस प्रयास में हूँ कि अध्यापक पूरा कोर्स पढ़ांए और छात्रों को पूरा कोर्स पढ़ना पड़े। परीक्षाओं में सवाल भी पूरे कोर्स से पूछे जाने चाहिए। इस प्रश्नोत्तरी की परीक्षा प्रणाली समाप्त होनी चाहिए।
शिक्षकों को राजनीति में भाग लेना चाहिए या नहीं ?
शिक्षा में कोई राजनीति नहीं होनी चाहिए।
गठबंधन सरकारों के बारे में आपका क्या ख्याल है ?
मैं समझता हूँ कि वह भारतीय राजनीति का संक्रमण काल है। ऐसा अजादी के तुरंत बाद होना चाहिए था । परंतु उस समय के दिग्गजों के चलते ऐसा नहीं हो सका। बाद में एक ऐसा सिस्टम चल निकला कि केंद्र राज्यों पर मुख्यमंत्रियों को थोपने लगा। इसके कारण आक्रोश उभरा। क्षेत्रीय पार्टियां इसी की देन हैं। हर चीज में कुछ न कुछ अच्छाई भी होती है। गठबंधन सरकारों की अच्छाई यह है कि जो क्षेत्रीय पार्टियां सिर्फ राज्सों सिमटी हुई थी अब वही पार्टियां केंद्र सरकार में शामिल है। उसके सोचने के दायरे में विस्तार हुआ है ।वे देश के बारे में सोच रही हैं। मैं संक्रमण काल के शीघ्र समाप्त होने को लेकर आशान्वित हूँ। हालात निश्चित ही ठीक होंगे।
आरक्षण के बारे में आपका क्या नजरिया है? क्या आपको नहीं लगता कि आरक्षण का लाभ कुछ मुट्ठी भर लोगों के हाथों में ही केंद्रित हो गया है?
आरक्षण हमारे समाज की अनिवार्यता है। जैसे बीमार को किसी भी तरह व्यवस्था करके दवा और पौष्टिक खाद्य पदार्थ देना जरुरी होता है । उसी तरह अनुसूचित जाति के लिए भी आरक्षण अनिवार्य है। आज आईएएस, आईपीएस और सांसदों आदि के बच्चों को भी शामिल कर लें तब भी आरक्षण का कोटा पूरा नहीं होता है। यदि इन पर पाबंदी लबा दी जाए तो सीटें और भी कम हो जाएंगी और हर वर्ष शेष बची सीटों को निरस्त कर दिया जाएगा। हां, अगर आरक्षण के कोटे को निरस्त न किया जाए तब मैं आरक्षण से एक बार लाभान्वित हो जाने के बाद किसी परिवार के दूसरे सदस्य को आरक्षण के लाभ से वंचित किए जाने की वकालत कर सकता हूँ।
अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के बारे में आपकी क्या राय है?
कुछ भी नहीं बोलूंगा। मैं चाहता हूँ कि राज्यपाल का पद किसी किस्म की कंट्रोवर्सी से परे रहे।
राज्यपालों के सक्रिय रानीति में वापसी पर आपका क्या विाचार है?
मैं कुछ नहीं कहना चाहता। दरअसल यह कुछ राज्यपालों पर छींटाकशी हो जाएगी। मैं भी पिछले संसदीय चुनावों में लोकसभा का टिकट मांग रहा था।
राज्यपाल सूरजभान की पसंदीदा किताबों में धनंजय की लिखित ‘लाइफ स्टोरी ऑफ अंबेडकर‘ है। उन्हें कविताएं लिखने व पढ़ने का बेहद शौक है। साहिर लुधियानवी और फैज अहमद फैज उनके पसंदीदा शायर हैं। बातचीत खत्म करते हुए वह कह उठते हैं-‘ठनी रहती है मेरी सिरफिरी पागल हवाओं से, मैं फिर भी रेत के टीलों पर अपना घर बनाता हूँ।‘
(मूल रूप से दैनिक जागरण के नई दिल्ली संस्करण में दिनांक 10 मई, 2000 को प्रकाशित)