424 साल पुराना दुर्लभ ताम्रपत्र: सालों बाद यहां मिला, इस राजा ने लिखी हैं ये बातें

उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में गांव के एक शख्स के पास 424 साल पुराना दुर्लभ ताम्रपत्र मिला है। यह ताम्रपत्र तत्कालीन चंद शासक रुद्रचंद ने छाना गांव के तिवारी परिवार के पूर्वज को दिया था।

Update:2020-09-02 11:24 IST
424 साल पुराना दुर्लभ ताम्रपत्र: सालों बाद यहां मिला, इस राजा ने लिखी हैं ये बातें

अल्मोड़ा: उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में गांव के एक शख्स के पास 424 साल पुराना दुर्लभ ताम्रपत्र मिला है। जानकारी के मुताबिक, यह ताम्रपत्र तत्कालीन चंद शासक रुद्रचंद ने छाना गांव के तिवारी परिवार के पूर्वज को दिया था। जिस शख्स के पास यह ताम्रपत्र मिला है, वह तिखौन पट्टी के अंतर्गत छाना गांव का रहने वाला है। इस ताम्रपत्र में राजा ने तीन वीसी भूमि (करीब 450 नाली) दान करने का आदेश दिया था। वहीं, राज्य पुरातत्व विभाग की टीम ने इस महत्वपूर्ण ताम्रपत्र को अपने रिकॉर्ड में दर्ज कर लिया है।

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सूत्र से मिली थी ताम्रपत्र की जानकारी

क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी डॉ. चंद्र सिंह चौहान को किसी सूत्र द्वारा कुछ महीने पहले छाना गांव में एक व्यक्ति के पास ये दुर्लभ ताम्रपत्र होने की जानकारी मिली थी। सही जानकारी ना मिल पाने के चलते विभाग की टीम काफी वक्त बाद सही व्यक्ति के पास पहुंच पाई। डॉ. चंद्र सिंह चौहान ने बताया कि छाना गांव के मोहन चंद्र तिवारी के घर में यह दुर्लभ ताम्रपत्र मिला। 1518 (1596 ई.) के इस ताम्रपत्र को तत्कालीन राजा रुद्रचंद ने तिवारी परिवार के पूर्वज पूर्वज किशलाकर त्याड़ी (तिवारी) को दिया था।

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तीन वीसी दान करने का दिया था आदेश

इसमें अल्मोड़ा जिले के तिखौन पट्टी में तीन वीसी (करीब 450 नाली) दान करने का आदेश दिया गया है। इसमें राज परिवार के लखी चंद (राजा रुद्रचंद के पुत्र लक्ष्मण चंद) के साथ-साथ 16 लोगों को गवाह बनाया गया था। इन सभी लोगों के नाम इस ताम्रपत्र में दर्ज हैं। इसे मानिक सुनार नाम के एक व्यक्ति ने लिखा है।

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1596 ई. में राजा ने दिया था यह ताम्रपत्र

राजा रूद्रचंद 1565 से 1597 तक शासक रहे। उन्होंने यह ताम्रपत्र 1596 ई. में दिया था। बता दें कि राजा रुद्रचंद द्वारा 1596 ई. में दिए गए इस ताम्रपत्र का वजह 700 ग्राम वजन है। इसे कुमाऊंनी भाषा में लिखा गया है। ऐसा माना जा रहा है कि कुमाऊं क्षेत्र में अन्य लोगों के पास भी कई दुर्लभ ताम्रपत्र और अन्य पुरावशेष हो सकते हैं। दरअसल, लोगों को यह डर रहता है कि इसके बारे में जानकारी मिलने पर उनके पास मौजूद दुर्लभ चीजों को जब्त किया जा सकता है।

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क्या जब्त हो जाती हैं ऐसी दुलर्भ चीजें?

इस बारे में डॉ. चंद्र सिंह चौहान ने कहा कि अगर व्यक्ति खुद की इच्छा से अपने पास रखी दुर्लभ चीज को पुरातत्व विभाग को सौंपना चाहता है तो बात अलग है, वरना वो दुर्लभ चीजें संबंधित व्यक्ति के पास ही रहती हैं। विभाग के पास केवल इनका रिकॉर्ड रहता है। ताम्रपत्र का पता लगाने वाली टीम में डॉ. चंद्र सिंह चौहान के अलावा भास्कर तिवारी, चंद्रशेखर उपाध्याय, फोटोग्राफर रणजीत सिराड़ी आदि शामिल थे।

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