Uttarakhand News: पुरानी फाइल से! उत्तराखंड गठन में वन विभाग ने पेंच फंसाया
Uttarakhand : उत्तराखंड गठन में वन विभाग ने पेंच फंसाया। इसका मतलब है कि उत्तराखंड में वन विभाग की नौकरियों को लेकर उलझन बनी हुई है। पेंच फंसाने का मतलब होता है कि वन विभाग के कर्मचारी को अब उनकी नौकरी की स्थिति अस्थायी हो गई है। यह स्थिति उनके लिए बहुत निराशाजनक हो सकती है। वन विभाग के कर्मचारियों द्वारा इस मुद्दे को लेकर कई बार सरकार को चेतावनी दी गई थी।
Uttarakhand News: नई दिल्ली, 06 जून, 2000, उत्तराखंड के गठन की राह में आड़े आ रहा हरिद्वार का मामला अभी सुलझा नहीं है कि उत्तर प्रदेश वन विभाग इसके गठन में नया पेंच फंसाने की कोशिश शुरु कर दी है। इसके लिए वन मंत्रालय ने पर्यावरण असंतुलन का सहारा लिया है। प्रदेश सरकार ने केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्री को एक पत्र लिखकर कहा है कि उत्तराखंड के अलग राज्य बन जाने के बाद उत्पन्न होने वाले पर्यावरण के खतरे से निपटने के लिए बड़े पैमाने पर केंद्रीय मदद की जरुरत होगी। इसके लिए केंद्रीय सरकार को अभी से तैयार रहना होगा।
प्रदेश के वन मंत्रालय ने विशेषज्ञों के हवाले से अपने पक्ष में कई तर्क पेश किये हैं। वन विभाग के मुताबिक विशेषज्ञों ने इस बात की चेतावनी दी है कि उत्तर प्रदेश के वन क्षेत्रफल में पहले ही खासी गिरावट आ चुकी है। यदि इसका और हृास हुआ तो सम्पूर्ण क्षेत्र का पर्यावरणीय संतुलन विगड़ सकता है।गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में कुल 11.4 फीसदी वनाच्छादित क्षेत्रफल है। इसमें उत्तराखंड के बारह जिलों में कुल वन क्षेत्र का 22 फीसदी हिस्सा आता है। पर्यावरणविदों के अनुसार प्रदेश में 98,000 वर्ग किलोमीटर का वन क्षेत्र होना चाहिए । जबकि वर्तमान में यह मात्र 51,640 वर्ग किमी है। यह प्रदेश के कुल क्षेत्र का 17.5 फीसदी बैठता है । लेकिन हिमाच्छादित चट्टानी क्षेत्र तथा नदी नालों का निकाल दिया जाए तो असली वनाच्छादित क्षेत्र मात्र 11.5 प्रतिशत रह जाता है।
आंकड़े बताते हैं कि पर्वतीय जनपदों में 23,682 वर्ग किमी तथा मैदानी क्षेत्रों में 17,305 वर्ग किमीका वन क्षेत्र है। भारतीय वन सर्वेक्षण की रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश का कुल क्षेत्र राष्ट्रीय वन नीति में निर्धारित किये गये 33 फीसदी के वनाच्छादित क्षेत्रफल की तुलना में एक तिहाई है। चितांजनक तथ्य यह है कि पूरे देश के वन क्षेत्र में उत्तर प्रदेश का हिस्सा सिर्फ 6.5 फीसदी है। इस भयावह स्थिति को प्रस्तुत करते हुए प्रदेश सरकार ने केंद्रसे यह अपेक्षा की है कि उत्तराखंड के गठन से पहले राज्य सरकार को सामाजिक वानिकी के लिए एक मुश्त आर्थिक सहायता उपलब्ध कराई जाए जिससे कि सामाजिक वानिकी तथा अन्य कार्यक्रमों का संचालन करके प्रदेश के वन क्षेत्र का विस्तार किया जा सके। प्रदेश सरकार ने केंद्र से बीस से तीस रुपये प्रति पेड़ के हिसाब से धनराशि अवमुक्त करने को कहा है।
(मूल रूप से दैनिक जागरण के नई दिल्ली संस्करण में दिनांक 07 जून, 2000 को प्रकाशित)