V.P.Singh Birthday: जब वीपी सिंह ने खोला था मंडल का पिटारा, OBC को आरक्षण देने के फैसले ने बदल दी देश की सियासत

V.P.Singh Birthday: मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू करने के बाद पूरे देश में भारी बवाल हुआ था और वीपी सिंह सवर्णों की नजर में खलनायक बन गए थे।

Written By :  Anshuman Tiwari
Update:2024-06-25 11:17 IST

वीपी सिंह  (photo: social media ) 

V.P.Singh Birthday: देश में आरक्षण का जिक्र होने पर दो नामों की चर्चा जरूर होती है। इनमें पहला नाम है बाबा साहेब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का। अंबेडकर ने ही संविधान में आरक्षण का प्रावधान किया था। दूसरा प्रमुख नाम है पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह का। उन्होंने ही प्रधानमंत्री बनने के बाद मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू करते हुए ओबीसी के लिए 27 फीसदी आरक्षण का प्रावधान किया था।

मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू करने के बाद पूरे देश में भारी बवाल हुआ था और वीपी सिंह सवर्णों की नजर में खलनायक बन गए थे। देश में राजनीतिक भ्रष्टाचार को पहली बार मुद्दा बनाने वाले बीपी सिंह का जन्म 1931 में आज ही के दिन इलाहाबाद में हुआ था। बोफोर्स घोटाले को बड़ा मुद्दा बनाते हुए उन्होंने राजीव गांधी की अगुवाई वाली कांग्रेस को हराने में कामयाबी हासिल की थी और देश में बड़ा राजनीतिक बदलाव हुआ था। हालांकि इसके पहले उनकी गिनती इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के करीबियों में की जाती थी।

इलाहाबाद में 1931 में हुआ था जन्म

वीपी सिंह का जन्म 25 जून 1931 को इलाहाबाद में राजा बहादुर राम गोपाल सिंह के घर हुआ था। उन्होंने इलाहाबाद और पूना विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की थी। यह अजीब संयोग है कि वीपी सिंह का जन्म 25 जून को हुआ था और उनका विवाह भी 25 जून 1955 को सीता कुमारी के साथ हुआ था। वीपी सिंह और सीता कुमारी के दो बेटे हैं। पूर्व प्रधानमंत्री ने कोरांव में गोपाल विद्यालय इंटर कॉलेज की स्थापना भी की थी।


छात्र जीवन से ही राजनीति में सक्रियता

वीपी सिंह ने पढ़ाई के दौरान ही राजनीति शुरू कर दी थी। वाराणसी के उदय प्रताप कॉलेज में पढ़ाई के दौरान वे छात्रसंघ के अध्यक्ष चुने गए थे। इसके साथ ही वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के उपाध्यक्ष भी रहे। वीपी सिंह ने 1957 में भूदान आंदोलन में सक्रिय रूप से हिस्सा लिया था और इलाहाबाद जिले के पासना गांव में अपना खेत दान में दे दिया था।

छात्र राजनीति में सक्रिय रहने के बाद वीपी सिंह उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य बने। वे दो बार लोकसभा सांसद व एकबार राज्यसभा के सांसद भी रहे। इस दौरान 1980 से 1982 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री भी रहे।

इसके बाद 1983 में फिर से केंद्र में आए और केंद्रीय वाणिज्य मंत्री होने के साथ ही आपूर्ति विभाग का अतिरिक्त प्रभार संभाला। वी.पी.सिंह 1984 में उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष चुने गए थे और 31 दिसंबर 1984 को उन्होंने देश के वित्त मंत्री पद की कमान संभाली।


भ्रष्टाचार के मुद्दे पर लड़ी जंग

प्रधानमंत्री राजीव गांधी से खटपट के बाद उन्होंने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था और जनमोर्चा नाम से अपना अलग राजनीतिक दल बनाया था। वीपी सिंह अलग तेवर वाले नेता थे जो राजीव गांधी की सियासी बुलंदियों के दौर में उनसे भिड़ गए थे। उन्होंने कांग्रेस में उस शख़्स को निशाने पर लिया, जो उस दौर में कांग्रेस का चेहरा भी थे और प्रधानमंत्री भी।

वीपी सिंह ने सीधे राजीव गांधी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। नौकरशाही और कांग्रेस की सरकार में फैले भ्रष्टाचार के मुद्दों को लेकर उन्होंने राजीव गांधी पर तीखा हमला बोला। इसी के दम पर वे 1989 के चुनाव में बड़ा राजनीतिक बदलाव करने में कामयाब रहे।

कांग्रेस को भारी नुकसान उठाना पड़ा, जबकि वीपी सिंह के राष्ट्रीय मोर्चे को बहुमत वाला जनादेश मिला। भारतीय जनता पार्टी और वाम दलों की मदद से विश्वनाथ प्रताप सिंह प्रधानमंत्री बनने में कामयाब हुए।


कैबिनेट की बैठक में ऐतिहासिक फैसला

प्रधानमंत्री बनने के बाद वीपी सिंह ने चौधरी देवीलाल से निपटने और अपनी सियासी जमीन को बचाने के लिए एक बड़ा कदम उठाया। उन्होंने 6 अगस्त, 1990 को कैबिनेट की एक मीटिंग बुलाई। इस मीटिंग के दौरान उन्होंने कहा कि वे मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू करना चाहते हैं।

मंडल कमीशन का आदेश मोरारजी देसाई की जनता पार्टी ने किया था और एक दशक से ज्यादा समय से इसकी सिफारिशें धूल फांक रही थीं। इसके तहत आरक्षण की सीमा को 49.5 फीसदी तक बढ़ाया जाना था और इसमें अन्य पिछड़ा वर्ग को 27 फीसदी का आरक्षण दिया जाना था। वीपी सिंह के मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू करने के प्रस्ताव पर पूरी कैबिनेट चौंक गई थी।


अपने दम पर लिया था बड़ा फैसला

हालांकि कैबिनेट बैठक के दौरान वीपी सिंह को शरद यादव, रामविलास पासवान और मधु दंडवत जैसे नेताओं का पूरा समर्थन भी मिला। बाद में एक इंटरव्यू के दौरान वीपी सिंह ने कहा था कि मेरी सरकार बनने के बाद कांग्रेस हमेशा सवाल पूछा करती थी कि मंडल कमीशन की सिफारिशों को कब लागू किया जाएगा।

मैंने कांग्रेस को जवाब दिया था कि एक साल के भीतर इन सिफारिशों को लागू कर दिया जाएगा। यह बात पूरी तरह सच है कि जनता दल के कई सांसदों ने इन सिफारिशों को लागू करने के मेरे प्रस्ताव का समर्थन किया था, लेकिन यह हमारा अपना फैसला था।


सवर्णों की नजर में बन गए खलनायक

कैबिनेट बैठक के दूसरे दिन 7 अगस्त 1990 को वीपी सिंह ने संसद में ओबीसी के लिए 27 फीसदी आरक्षण लागू करने का बड़ा ऐलान कर दिया था। 13 अगस्त 1990 को इस संबंध में अधिसूचना भी जारी कर दी गई। दो दिन बाद ही देश में स्वतंत्रता दिवस का आयोजन था और इस दौरान लाल किले की प्राचीर से वीपी सिंह के भाषण में मंडल आयोग और आयोग की सिफारिशों को लागू करने का सबसे प्रमुखता से जिक्र किया गया था।

मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करके वीपी सिंह ने नया इतिहास रच दिया था। हालांकि उनके इस कदम का सवर्णों की ओर से काफी तीखा विरोध किया गया था और देश के कई इलाकों में खूब हिंसा भी हुई थी। सवर्णों की नजर में वीपी सिंह खलनायक बन गए थे। इस बात की भी खूब चर्चा हुई थी की वीपी सिंह ने कमंडल का जवाब मंडल के जरिए दिया।

अब देश में एक बार फिर जातीय जनगणना कराने और आबादी के हिसाब से हिस्सेदारी देने की मांग जोर पकड़ रही है। इस मांग ने एक बार फिर मंडल कमीशन की याद दिला दी है। प्रधानमंत्री के रूप में वीपी सिंह ने काफी संक्षिप्त पारी खेली मगर इस पारी के दौरान ही उन्होंने ऐतिहासिक फैसला लेते हुए इतिहास रच दिया था।



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