Bengal Panchayat Election: राजनीतिक वर्चस्व और पैसे की लड़ाई बना बंगाल का पंचायत चुनाव

West Bengal Panchayat Election 2023: पश्चिम बंगाल के पंचायत चुनाव में मौतों का आंकड़ा बढ़ता ही जा रहा है। वैसे तो पंचायत चुनाव में हर जगह कुछ न कुछ होता जरूर है लेकिन इतने बड़े पैमाने पर हिंसा भारत में भी कहीं और नहीं होती।

Update:2023-07-08 18:09 IST
West Bengal Panchayat Election 2023(social media)

West Bengal Panchayat Election 2023: नई दिल्ली। पश्चिम बंगाल के पंचायत चुनाव में मौतों का आंकड़ा बढ़ता ही जा रहा है। वैसे तो पंचायत चुनाव में हर जगह कुछ न कुछ होता जरूर है लेकिन इतने बड़े पैमाने पर हिंसा भारत में भी कहीं और नहीं होती।

बंगाल में पंचायतें

शेष भारत की तुलना में बंगाल में पंचायती राज काफी पहले और मजबूती से लागू है। बंगाल में पंचायती राज की शुरुआत 1870 में लॉर्ड मेयो द्वारा पारित बंगाल चौकीदारी अधिनियम, 1882 में लॉर्ड रिपन द्वारा जारी प्रस्ताव, 1885 के बंगाल स्थानीय स्वशासन अधिनियम, 1919 के बंगाल ग्राम स्वशासन अधिनियम और 1957 के पश्चिम बंगाल पंचायत अधिनियम से लगाई जा सकती है। 1957 के अधिनियम ने दो स्तरों की शुरुआत की थी।
चुनावी लोकतंत्र की पहली सीढ़ी
भारत में लोकतंत्र की पहली सीढ़ी हैं पंचायत चुनाव जो दरअसल ग्रामीण इलाकों में वर्चस्व की लड़ाई बन गए हैं। चुनाव चाहे जो हों, ग्रामीण इलाकों के मतदाता ही निर्णायक भूमिका निभाते रहे हैं। बंगाल में ये कुछ ज्यादा ही है और सभी दल ये जानते हैं कि जिस दल का पंचायतों पर कब्जा होगा उसे विधानसभा और लोकसभा चुनावों में काफी मदद मिल जाएगी। पश्चिम बंगाल में देखा गया है कि पंचायत चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करने वाले दल संसद और विधानसभा चुनावों में भी बेहतर प्रदर्शन करते हैं। ये सिस्टम राज्य के वाममोर्चा सरकार के जमाने से पुख्ता जमा दिया गया है। इसी लिए पंचायतों पर किसी भी तरह कब्जा करने की होड़ रहती है।

सवाल पैसे का

हिंसा की दूसरी बड़ी वजह है पंचायतों को मिलने वाली मोटी रकम। विकेन्द्रीकृत व्यवस्था में पंचायत सीधे पैसा पाती हैं और प्रधान काफी अधिकारसंपन्न होते हैं। ग्रामीण इलाकों में हर साल हजारों करोड़ के प्रोजेक्ट पंचायतों के जरिए ही लागू किये जाते हैं। इसीलिए पंचायतों पर नियंत्रण के लिए पूरी ताकत झोंक दी जाती है, खून बहाया जाता है।

धंधे का भी सवाल

पश्चिम बंगाल के विभिन्न इलाकों में बालू, पत्थर और कोयले के अवैध खनन और कारोबार का पहलू भी ग्रामीण हिंसा की वजह है। नदियों पर नाव चलाने से लेकर कई तरह के कारोबार पर पंचायतों का नियंत्रण रहता है सो इसके लिए भी मारकाट मचती है। बंगाल की राजनीतिक हिंसा इस तरह पैठ कर चुकी है कि ये राज्य में अब हैरत का कारण नहीं बनती।

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