What is Fake News: फेक न्यूज के शिकंजे में सभी, यहां सावधानी हटी तो दुर्घटना घटी, वीडियो में देखें ये चौंकाने वाली रिपोर्ट
Fake News: फेक न्यूज़ भी जान कर जनरेट की जाती है फैलाई जाती है। चूंकि भारत में डिजिटल लिटरेसी अत्यधिक कम है। सो यहां फेक न्यूज़ फैक्ट्रियों का कारोबार खूब जमता है। इसी डिजिटल निरक्षरता के चलते क्या फेक है, क्या फेक नहीं है, ये फर्क कर पाना अच्छे अच्छों के बस की बात नहीं।
What is Fake News: फेक न्यूज़ यानी झूठी खबरें, गलत जानकारी। यह बीमारी है तो बहुत पुरानी। लेकिन जबसे इंटरनेट और खासकर सोशल मीडिया आया है तबसे इसने विकराल रूप धारण कर लिया है। व्हाट्सएप, फेसबुक, यूट्यूब, ट्विटर वगैरह इस्तेमाल करने वालों की तादाद करोड़ों अरबों में है।इनमें हर कोई तो जागरूक या समझदार होता नहीं है। सुनी सुनाई बातों पर भरोसा करने वाले भी अच्छी खासी तादाद में पाए जाते हैं। ये वही लोग हैं जो फेक न्यूज़ के सबसे चहेते होते हैं।
फेक न्यूज़ भी जान कर जनरेट की जाती है फैलाई जाती है। चूंकि भारत में डिजिटल लिटरेसी अत्यधिक कम है। सो यहां फेक न्यूज़ फैक्ट्रियों का कारोबार खूब जमता है। इसी डिजिटल निरक्षरता के चलते क्या फेक है , क्या फेक नहीं है, ये फर्क कर पाना अच्छे अच्छों के बस की बात नहीं। तभी तो लोग यूट्यूब पर चलते किसी भी वीडियो में दी गई "जानकारी" या इलाज को सच मान लेते हैं, फेसबुक या ट्विटर पर डाले गए हर मैसेज को परम सत्य मान लेते हैं। व्हाट्सएप पर बमबारी की तरह आते मैसेजों को जीवन का तथ्य मान लेते हैं। इसी का नतीजा मॉब लिंचिंग, तमिलनाडु से बिहारियों के पलायन, मुंहनोचवा, बच्चा चोर आदि इत्यादि के रूप में सामने आता है।
फेक न्यूज़ की बीमारी का इलाज करने के लिए आईटी एक्ट और आईपीसी की धाराएं जोड़ी गईं। सोशल मीडिया कंपनियों ने अपने प्रयास किये, फैक्ट चेक संगठन अस्तित्व में आये लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात है। इसका ताजा उदाहरण तमिलनाडु का मामला है।
जान लीजिए कि भारत में कोरोना महामारी के वर्ष 2020 में फेक समाचारों के कुल 1,527 मामले दर्ज किए गए थे। जबकि 2019 में 486 मामले और 2018 में 280 मामले दर्ज किए गए। 2018 में ही दफा 505 के तहत फेक न्यूज़ को पहली बार शामिल किया गया था।
एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार, भारत ने 2021 में फर्जी खबरों के 882 मामले दर्ज किए। आंकड़ों के अनुसार, फर्जी खबरों और अफवाहों के इन 882 मामलों ने 892 पीड़ितों को प्रभावित किया।
तेलंगाना में इन मामलों की सबसे अधिक संख्या 218 थी। इसके बाद तमिलनाडु में 137 और मध्य प्रदेश में 129 दर्ज की गई।
माइक्रोसॉफ्ट के 2019 के एक सर्वेक्षण के निष्कर्षों के अनुसार, 60 फीसदी से अधिक भारतीयों ने कहा कि ऑनलाइन फेक न्यूज़ देखी हैं। इस मामले में ग्लोबल औसत 57 फीसदी है ।
यानी भारत फेक न्यूज़ में कहीं आगे है। सर्वेक्षण में शामिल आधे से अधिक उत्तरदाताओं ने यह भी कहा कि उन्होंने इंटरनेट धोखाधड़ी का सामना किया है, यह आंकड़ा वैश्विक औसत 50 फीसदी से काफी अधिक था। सर्वे के अनुसार, 42 फीसदी ने कहा कि उन्होंने फ़िशिंग या स्पूफ़िंग का सामना किया है।
भारत में गलत सूचना और नकली समाचारों की समस्या को उजागर करने के लिए माइक्रोसॉफ्ट के सर्वेक्षण से पहले बीबीसी रिसर्च की एक जांच में पाया गया कि भारत में फेक न्यूज के व्यापक प्रसार के पीछे राष्ट्रवाद मुख्य प्रेरक ताकत है।
मार्च 2022 में ‘साइंस डायरेक्ट’ पत्रिका में प्रकाशित एक शोध पत्र में बताया गया था कि शोध कर्ताओं ने जून 2016 से दिसंबर 2019 तक भारत में छह लोकप्रिय फैक्ट चेक वेबसाइटों द्वारा रिपोर्ट की गई 4,803 फेक न्यूज़ को एकत्र किया था, इनमें से ट्विटर पर 5,031 ट्वीट और यूट्यूब पर 866 वीडियो शामिल थे।
पिछले ही महीने केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग सिंह ठाकुर ने लोकसभा में बताया था कि प्रेस सूचना ब्यूरो (पीआईबी) की फैक्ट चेक यूनिट ने नवंबर 2019 में अपनी स्थापना के बाद से फेक न्यूज़ के 1,160 मामलों का भंडाफोड़ किया है। उन्होंने बताया कि पीआईबी को अब तक 37,000 से अधिक शिकायतें मिली हैं। फैक्ट चेक यूनिट ने 2019 में 17 फर्जी खबरों का भंडाफोड़ किया, 2020 में 394 मामलों, 2021 में 285 मामलों और 2022 में 338 मामले पकड़े। वर्तमान वर्ष में, 126 फर्जी खबरों के मामले अब तक सामने आए हैं।
यूट्यूब की बात करें तो वह भी फेक सूचनाओं का बहुत बड़ा भण्डार है। हाल ही में भारत सरकार ने फर्जी समाचार और गलत सूचना के प्रचार के लिए यूट्यूब के छह चैनलों पर प्रतिबंध लगा दिया है।
इन चैनलों के नाम हैं नेशन टीवी, सरोकार भारत, नेशन 24, संवाद समाचार, स्वर्णिम भारत और संवाद टीवी। इन्हें पीआईबी की फैक्ट चेक यूनिट ने सूचीबद्ध किया था। इन चैनलों की पहुँच भी हैरान करने वाली है। मिसाल के तौर पर नेशन टीवी के 5 लाख 50 हजार सब्सक्राईबर हैं और इनके 21 करोड़ से ज्यादा व्यूज थे।
पीआईबी फैक्ट चेक यूनिट की जानकारी के आधार पर इसके पहले दिसंबर 2022 में सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने 104 यूट्यूब चैनल, 45 वीडियो, चार फेसबुक अकाउंट, तीन इंस्टाग्राम अकाउंट, पांच ट्विटर हैंडल और छह वेबसाइटों को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बताया था। बताया गया था कि ये सब फेक न्यूज फैला रहे थे।
तमिलनाडु में बिहारी श्रमिकों पर हमले के सन्दर्भ में बात करें तो संयोग से, बिहार में 4 करोड़ से अधिक इंटरनेट यूजर और 6 करोड़ 2० लाख से अधिक सक्रिय मोबाइल फोन हैं। पूरे देश की बात करें तो भारत में इंटरनेट की पहुंच 2012 में 13 करोड़ 70 लाख इंटरनेट यूजर्स से बढ़कर 2019 में 60 करोड़ से अधिक हो गई। ये डिजिटल अफवाहें फैलाने वालों के लिए एक बहुत बड़ा मैदान है।
अमेरिका में फेक न्यूज़ शब्द और अवधारणा 2016 के राष्ट्रपति चुनाव के दौरान बहुत तेजी से बढ़ा । लेकिन उसके बाद से यह राजनीति के दायरे से बाहर के क्षेत्रों में फ़ैल गया है।
इसका एक हालिया उदाहरण कोरोना महामारी है – स्टेटिस्टिका के एक सर्वे के अनुसार, अमेरिका में लगभग 80 प्रतिशत यूजर्स ने कोरोना वायरस प्रकोप के दौरान फेक न्यूज़ पाने की सूचना दी, जो इस मसले की व्यापकता को उजागर करता है। इसी सर्वे में पता चला कि फेक न्यूज़ के चलते अमेरिका में 10 प्रतिशत से अधिक लोगों ने कुछ मीडिया हाउस से समाचार प्राप्त करना बंद कर दिया है, लगभग 15 प्रतिशत ने कहा कि फेक न्यूज़ की भरमार के चलते उन्होंने समाचार देखना – पढ़ना भी कम कर दिया है। एक अन्य स्टडी में लगभग 40 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने माना कि उन्होंने गलती से दूसरों के साथ फेक न्यूज़ साझा किया था।
वर्ष 2022 के एक सर्वे में निकल कर आया कि झूठी ख़बरों के चलते दक्षिण कोरिया के केवल 27 प्रतिशत लोगों को समाचारों पर भरोसा रह गया है।
यूनाइटेड किंगडम में मीडिया पर भरोसा करने वाले वयस्कों की हिस्सेदारी 40 प्रतिशत से कम थी, और कोलंबिया, फ्रांस और जापान के उत्तरदाताओं के लिए भी यही आंकड़ा है। अध्ययन में अधिकांश देशों में मीडिया पर भरोसा 2021 और 2022 के बीच गिरा है।
स्टेटिस्टा, पीईडब्ल्यू रिसर्च, डेलॉइट और इकोनॉमिस्ट के सर्वे के अनुसार - अमेरिका में 80 फीसदी से अधिक वयस्कों ने फर्जी खबरें पाईं और पढ़ीं हैं। 50 फीसदी लोगों के अनुसार फेक न्यूज एक महत्वपूर्ण समस्या है जबकि 39 फीसदी वयस्कों ने बताया कि वे फेक न्यूज़ को पहचान सकते हैं। 44 फीसदी समाचार उपभोक्ताओं का कहना है कि पारंपरिक स्रोतों से मिले समाचार भरोसेमंद नहीं हैं। दुनिया भर के 87 फीसदी नागरिक चाहते हैं कि उन्हें समाचार की प्रामाणिकता की पहचान करने के लिए शिक्षा दी जाए। 85 फीसदी इंटरनेट यूजर्स का मानना है कि वेब पर नकली समाचारों के चलते वे धोखा खा चुके हैं। यूरोपीय सरकारों 2019 में यूरोपियन संसदीय चुनाव के दौरान फेक न्यूज को रोकने के लिए "स्वाट टीम" बनाई, यूरोपीय आयोग ने दुष्प्रचार से निपटने के लिए नियम बनाये, और फ़ेसबुक ने ऑनलाइन फेक न्यूज़ के प्रसार को रोकने के लिए डबलिन में 40 लोगों के साथ एक तथाकथित वार रूम खोला। लेकिन इन सबके बावजूद फेक न्यूज़ की बाढ़ कतई कंट्रोल नहीं की जा सकी।
बहरहाल, भारत में व्हाट्सएप को फेक न्यूज़ के लिये सबसे अधिक असुरक्षित माध्यम माना जाता है, क्योंकि इसका प्रयोग करने वाले लोग अक्सर खबर की सत्यता जाने बिना उसे कई लोगों को फॉरवर्ड कर देते हैं, जिसके कारण एक साथ कई सारे लोगों तक गलत सूचना पहुँच जाती है।
दुनिया की सबसे बड़ी आबादी के साथ दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में, भारत में फेक समाचारों का मुद्दा एक अनूठा खतरा बन गया है। कम साक्षरता के साथ फर्जी खबरों और विभाजनकारी प्रचार का विस्फोट देश के लोकतांत्रिक ताने-बाने के लिए एक वास्तविक खतरा है। इसकी हालत कुछ ऐसी हो गयी है कि ज्यों ज्यों दवा की मर्ज़ बढ़ता गया। पर मर्ज़ खुद ब खुद नहीं बढ़ रहा है। इसे बढ़ाया जा रहा है।
सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर काम करने वाली कंपनियों के लिए कंटेंट का नहीं केवल डाटा का मतलब है। जिस भी माध्यम से उनके डाटा की खपत बढ़ती है। उस माध्यम को बढ़ाने की महज़ कोशिश इनकी होती है। किसी भी सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर सफ़ाई अभियान चला दें तो आधे से ज़्यादा फेंक लोग मिल जायेंगें। दुनिया का कोई बड़ा से नेता या सेलिब्रिटी क्यों न हो सबके फ़ेक फ़ालोअर्स समय पर दिखे और मिले हैं। जिन लोगों की मौत हो गई है उनके सोशल मीडिया अकाउंट बंद करने की कोई योजना नहीं है। महज़ इसलिए क्योंकि वह संख्या में इज़ाफ़ा करता है। एक बार फ़ेस बुक ने खुद को पाक साफ़ साबित करने के लिए भारत के सभी बड़े समाचार पत्रों में विज्ञापन दे कर जनता की राय माँगी थी। हमने भी एक छोटी सी राय दी कि किसी भी कंटेंट के ओरिजनेटर का नाम आसानी से पब्लिक डोमेन में पता किया जा सके। यह लागू कर दिया जाये। पर यह तो छोड़िये। हम जैसे लाखों करोड़ों लोगों ने राय दी होगी। पर सब रदी की टोकरी के हवाले हो गये। महज़ इसलिए क्योंकि इनकी नीति व नियत दोनों में खोट हैं।