Supertech Twin Tower Demolition: भ्रष्टाचार की इमारत 'ट्विन टॉवर' की जानें पूरी कहानी
Supertech Twin Tower Demolition Latest Update: साल 2004 में 23 नवंबर को नोएडा प्राधिकरण ने सेक्टर 93ए में ग्रुप हाउसिंग का प्लॉट नंबर 4 एमराल्ड कोर्ट को आवंटित किया।
Supertech Twin Tower Demolition Latest Update: देश की राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से महज कुछ दूरी पर तन कर खड़ी एक गगनचुंबी इमारत पिछले कुछ दिनों से सुर्खियों में है। 32 मंजिला यह इमारत अपनी ऊंचाई के लिए देशभर में विख्यात कुतुबमीनार को भी इस मामले में पीछे छोड़ दिया है। नोएडा के सेक्टर 93ए में स्थित यह इमारत सुपरटेक ट्विन टॉवर के नाम से अब मशहूर हो गया है। इसमें एपेक्स और सियान के नाम के दो टॉवर है। एपेक्स 32 मंजिला और सियान 29 मंजिला इमारत है। दोनों को नियमों को ताक पर रख कर बनाया गया था।
नोएडा विकास प्राधिकारण के अधिकारियों के भ्रष्टाचार का जीता जागता उदाहरण बने इस इमारत को गिराने के लिए एमराल्ड कोर्ट के बायर्स को अपने खर्चे पर लंबी और थका देने वाली कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी। तब जाकर फैसला उनके पक्ष में आया। दिग्गज रियल एस्टेट कंपनी सुपरटेक के खिलाफ उन्होंने साल 2012 में इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। 2021 में सुप्रीम कोर्ट में आकर इस कानूनी लड़ाई का पटाक्षेप हुआ। तो आइए एक दशक पुराने इस विवाद की क्या है कहानी इस पर एक नजर डालते हैं ।
ट्विन टॉवर की पूरी कहानी
साल 2004 में 23 नवंबर को नोएडा प्राधिकरण ने सेक्टर 93ए में ग्रुप हाउसिंग का प्लॉट नंबर 4 एमराल्ड कोर्ट को आवंटित किया। इस प्रोजेक्ट के तहत प्राधिकरण ने ग्रुप हाउसिंग सोसाइटी को 14 टॉवर का नक्शा आवंटित किया जिसमें सभी टॉवर ग्राउंड फ्लोर के साथ 9 मंजिल तक पास किए गए। इसके बाद 29 दिसंबर 2006 को प्राधिकरण ने ग्रुप हाउसिंग हाइसिंग प्रोजेक्ट में पहला संसोधन करते हुए दो मंजिल और बनाने का नक्शा पास किया। जिसके तहत 14 टावर मिलाकर ग्राउंड फ्लोर के अलावा 9 मंजिल की जगह 11 मंजिल बनाने का नक्शा पास हो गया। इसके बाद टॉवर 15 और फिर टॉवर 16 का भी नक्शा पास किया गया।
26 नवंबर 2009 को नोएडा प्राधिकरण ने फिर से 17 टॉवर बनाने का नक्शा पास कर दिया। इसके बाद प्राधिकरण ने 2 मार्च 2012 को संशोधन करते हुए टॉवर नंबर 16 और 17 के लिए एफएआर और बढ़ा दिया। इससे दोनों टॉवर को 40 मंजिल तक करने की अनुमति मिल गई और इसकी ऊंचाई 121 मीटर तय की गई।
विवाद की शुरूआत
एमराल्ड कोर्ट प्रोजेक्ट के बायर्स ने टॉवर नंबर 16 और 17 जिसे आज ट्विन टॉवर कहा जा रहा है, कि ऊंचाई बढ़ाने का विरोध करना शुरू कर दिया। रेजीडेंट वेलफेयर एसोसिएशन (RWA ) ने बिल्डर से बात कर नक्शा दिखाने की मांग की। लेकिन बिल्डर ने लोगों को नक्शा नहीं दिखाया। RWA के अध्यक्ष उदयभान सिंह के मुताबिक, जहां पर टॉवर नंबर 16 और 17 बनाए गए हैं, वहां पर बिल्डर ने जब लोगों को फ्लैट दिया था तो उसे ओपन स्पेस दिखाया था। इसके साथ ही यहां पर एक छोटी इमारत बनाने का भी प्रावधान किया गया था।
विवाद की एक वजह दो आवसीय टॉवरों के बीच की दूरी को लेकर भी है। दरअसल नेशनल बिल्डिंग कोड का नियम है कि किसी भी दो आवासीय टॉवर के बीच में कम से कम 16 मीटर की दूरी होनी चाहिए मगर इस प्रोजेक्ट में टॉवर नंबर 1 और ट्विन टॉवर के बीच 9 मीटर से भी कम दूरी है। RWA और फ्लैट बायर्स द्वारा आपत्ति दर्ज कराने के बावजूद धड़ल्ले से ट्विन टॉवर का अवैध निर्माण जारी रहा।
अदालत पहुंचा मामला
नोएडा प्राधिकारण के उदासीनता से नाराज फ्लैट बायर्स ने साल 2012 में इलाहाबाद हाईकोर्ट का रूख किया। अदालत ने पुलिस को जांच के आदेश दिए और जांच में पुलिस ने आरोपों को सही भी पाया। लेकिन इस जांच रिपोर्ट को दबा दिया गया। प्राधिकरण ने महज खानापूर्ति के लिए बिल्डर को नोटिस भेजा लेकिन बायर्स को कभी नक्शा नहीं मिला। इसके उलट ट्विन टॉवर का निर्माण कार्य और तेज हो गया। साल 2012 में जब मामला हाईकोर्ट पहुंचा था, तब महज 13 मंजिलें बनी थीं मगर डेढ़ साल के अंदर सुपरटेक ने 32 फ्लोर का निर्माण पूरा कर लिया।
इस बीच अदालत में सुनवाई चलती रही। दिग्गज रियल एस्टेट कंपनी की तरफ से नामी वकील पैरवी के लिए आते रहे लेकिन अंततः साल 2014 में फैसला बायर्स के पक्ष में ही आया। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने बिल्डर को नियमों का उल्लंघन करने का दोषी मानते हुए ट्विन टॉवर को अवैध घोषित कर जमींदोज करने का आदेश जारी कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट की कठोर टिप्पणी
हाईकोर्ट से झटका मिलने के बाद सुपरटेक इस फैसले को चुनौती देने के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया। लेकिन यहां भी उसे मुंह की खानी पड़ी। शीर्ष अदालत ने 31 अगस्त 2021 को तीन महीने के भीतर ट्विन टॉवर को गिराने का आदेश दिया। हालांकि बाद में इसकी तारीख को बढ़ाकर 28 अगस्त 2022 कर दिया गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने ये फैसला सुनाते हुए नोएडा प्राधिकारण के सीनियर अधिकारियों पर कठोर टिप्पणी की थी। मामले की सुनवाई के दौरान अदालत ने यहां तक कह दिया था कि नोएडा प्राधिकारण एक भ्रष्ट निकाय है। इसके आंख, कान, नाक और यहां तक की चेहरे से भ्रष्टाचार टपकता है।
योगी सरकार ने बनाई थी जांच समिति
पिछले साल इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का आदेश का आदेश आने के बाद योगी सरकार ने औद्योगिक विकास आयुक्त के नेतृत्व में 4 सदस्यों की समिति बनाई थी। समिति की रिपोर्ट के आधार पर अवैध निर्माण में शामिल 26 अधिकारियों, कर्मचारियों, सुपरटेक लिमिटेड के निदेशक और उनके आर्किटेक्ट के विरूद्ध कार्रवाई की गई।
बता दें कि ट्विन टॉवर को अब से महज कुछ ही देर बाद 3700 किलोग्राम बारूद की मदद से जमींदोज कर दिया जाएगा। इसी के साथ यह रियल एस्टेट में भ्रष्टाचार करने वालों के लिए एक बड़ा नजीर भी साबित होगा।