वर्ल्ड टॉयलेट डे: जानिए महत्व, बंद दरवाजे में करेंगे शौच, तभी जीवन रहेगा स्वच्छ
आज वर्ल्ड टॉयलेट डे है। हर साल 19 नवंबर को वर्ल्ड टॉयलेट डे मनाया जाता है। यह दिवस पर्याप्त स्वच्छता के महत्व पर बल देता है और सभी के लिए सुरक्षित और स्वच्छ टॉयलेट की सिफारिश करता है। इसके महत्व पर बल देते हुए एक भाषण में
जयपुर: आज वर्ल्ड टॉयलेट डे है। हर साल 19 नवंबर को वर्ल्ड टॉयलेट डे मनाया जाता है। यह दिवस पर्याप्त स्वच्छता के महत्व पर बल देता है और सभी के लिए सुरक्षित और स्वच्छ टॉयलेट की सिफारिश करता है। इसके महत्व पर बल देते हुए एक भाषण में महात्मा गाँधी ने कहा था कि स्वतंत्रता से महत्वपूर्ण स्वच्छता है, इसलिए यह काफी महत्वपूर्ण है कि हम स्वच्छता के महत्व को समझें, यहीं कारण है कि इस बार प्रकृति के हितों को ध्यान में रखते हुए इस बार विश्व शौचालय दिवस का थीम “जब प्रकृति पुकारे (व्हेन नेचर काल्स)” रखा गया है।
संयुक्त राष्ट्र ने अपने 2030 तक पूरे विश्व में स्वच्छ पानी की उपलब्धता और खुले में शौच से मुक्त करने का लक्ष्य रखा है। आकड़ो से पता चलता है कि वर्तमान में खुले में शौच करने वाले लोगों की संख्या लगभग 89 करोड़ के आस-पास है जोकि अभी भी काफी ज्यादा है। हालांकि भारत सरकार को इस विषय में सार्थक लक्ष्य प्राप्त करने में सफलता मिली है और स्वच्छ भारत अभियान के तहत अबतक ग्रामीण इलाकों में लगभग 9 करोड़ शौचालय बनाये जा चुके है।
विश्व शौचालय संगठन ने 2001 में इस दिवस की शुरुआत की। 12 साल बाद 2013 में दुनिया में साफ-सफाई और स्वच्छता के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा ने इस दिन को संयुक्त राष्ट्र के आधिकारिक दिवसों की सूची में शामिल किया। इस बार इस दिवस की थीम है, ‘ह्वेन नेचर काल्स’।
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इस बार विश्व शौचालय दिवस पर देश में एक बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य किया जायेगा, इस बार जानी-मानी हस्तियों के साथ मिलकर शौचालय के पुराने भरे हुए गड्ढे को खाली करने का काम किया जायेगा। शौचालय से निकले इस कचरे को काफी उपजाऊ माना जाता है और इसे काला सोना के नाम से भी पुकारा जाता है
आंकड़ों के हिसाब से 2015 तक लगभग एक अरब लोग खुले में शौच कर रहे हैं। स्वच्छ पानी के अधिकार की ही तरह स्वच्छता का अधिकार भी एक मानवीय अधिकार है। अगर हमें स्वच्छ जीवन नहीं मिलेगा तो विभिन्न बीमारियों (जैसे दस्त, शिस्टोसोमिआसिस, सोइल ट्रांसमिटेड हेल्मिन्थिआसिस) के शिकार होंगे। 145 देशों के एक अध्ययन में इसका मूल्यांकन किया गया था कि 58% दस्त खराब स्वच्छता, सफाई के अभाव और असुरक्षित पानी के कारण थे। इस वजह से पांच साल से कम उम्र के 5,26,000 से अधिक बच्चे स्वच्छता, सफाई और पानी से संबंधित दस्त से मर गए।
खुले में शौच करना मनुष्य की गरिमा और सुरक्षा के लिए ठीक नहीं है। देशों में लड़कियों और महिलाओं के लिए विशेष रूप से सच है जो खुले में शौच करने से अपनी गोपनीयता खो देती हैं क्योंकि खुले में शौच करना उनके लिए शर्म की बात है। इसके अलावा शौच करने के लिए उन्हें रात का इंतजार करना पड़ता है और पूरे दिन अपने को रोकना पड़ता है। विकासशील देशों में महिलाएं शौच जाने के लिए अपने घर छोड़ने पर बलात्कार या हमले के भय की अपनी भावनाओं को व्यक्त कर रही हैं। शौचालयों के पास या उसके आस-पास के इलाकों में महिलाओं के उत्पीड़न या हमलों की रिपोर्ट उजागर होना बहुत आम बात है। उनके खिलाफ ऐसी हिंसा का परिणाम पीड़ित व्यक्ति के लिए मनोवैज्ञानिक और शारीरिक है जिसका असर समाज और परिवारों पर पड़ता है जो लिंग असमानताओं के साथ जी रहे हैं।
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विश्व शौचालय संगठन एक अंतरराष्ट्रीय गैर-लाभकारी संस्था है जो पूरी दुनिया में स्वच्छता की स्थिति में सुधार के लिए प्रयत्नशील है। संगठन की शुरुआत 2001 में 15 सदस्यों के साथ हुई थी। अब इसकी संख्या 53 देशों से बढ़कर 151 हो गई है। संगठन के सभी सदस्य शौचालय की समस्या को खत्म करने और दुनिया भर में स्वच्छता के समाधान के लिए काम करते हैं। 2001 में विश्व शौचालय संगठन ने विश्व शौचालय दिवस की शुरुआत की। विश्व शौचालय संगठन के निर्माता जैक सिम और सिंगापुर के रेस्ट्रूम एसोसिएशन को एहसास हुआ कि शौचालय के मुद्दे पर एक अंतरराष्ट्रीय दिन होना चाहिए और इसलिए वे विश्व शौचालय दिवस बनाने के विचार के साथ आगे बढ़े ताकि यह दुनिया भर के लोगों के लिए स्वच्छता के मुद्दों की याद दिलाता रहे।