Kerala News: मैरिटल रेप केस में हाईकोर्ट का अहम फैसला, पति की अप्राकृतिक मांग भी वैवाहिक दुष्कर्म
Kerala News: भारत में यदि दुष्कर्म पति भी करें तो इसे दुष्कर्म नहीं माना जाता है। और भारत के कानून में इसे अपराध की श्रेणी में नहीं रखा जाता है।
Kerala News: हमारे भारत में अक्सर बलात्कार भी धर्मों के नियम के हिसाब से माना जाता है। क्योंकि जब बात शादी या तलाक की बात आती है तो सभी धर्मों के आकाओं का धर्म संकट सामने आने लगता है। इसी वजह से भारत में यदि दुष्कर्म पति भी करें तो इसे दुष्कर्म नहीं माना जाता है। और भारत के कानून में इसे अपराध की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। भारत जो कि पुरूष प्रधान देश है। इसी वजह से ये पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ता चला आ रहा है।
पुरुषों को लगता है कि एक बार शादी होने के बाद पत्नी पर उनका अधिकार हो गया है। जैसे की उन्हें एयर लाइसेंस मिल गया हो। जबकि इससे कहीं ज़्यादा यह बात किसी मनुष्य को अधिकारों की होनी चाहिये। और इस स्थिति में महिलाएं लोलिस में आने से ही पति के खिलाफ वैसा करने से डरती हैं।
क्योंकि पुलिस वाले सोचते हैं ये तो रेप ही नहीं है। लेकिन विगत दिनों केरल हाई कोर्ट ने तलाक के मामले में फैसला सुनाते हुए सभी बुद्धिजीवियों को ये सोचने में मजबूर कर दिया। कोर्ट ने कहा कि मेरिटल रेप तलाक लेने एक कठोर या दृढ़ वजह हो सकती है।
मेरिटल रेप की चर्चा क्यों है
दरअसल केरल की दंपति तलाक की याचिका लेकर हाई कोर्ट पहुंची। इसके पहले पत्नी अन्य अदालतों में भी जा चुकी थी पर निर्णय उनके खिलाफ हुआ जिसके बाद मामला हाईकोर्ट पहुंचा। पत्नी अपने पति से इस कदर परेशान हो चुकी थ कि वो किसी भी बात का मुआवजा भी नहीं लेना चाहती है।
कोर्ट ने कहा आप महिला की इजाजत के बगैर कुछ भी नहीं कर सकते
कोर्ट में न्यायाधीश ये बात समझ रहे थे। कि शादी के नाम पर आप महिला की इजाजत के बगैर कुछ भी नहीं कर सकते है। न्यायमूर्ति ए. मोहम्मद मुस्तक और न्यायमूर्ति कौसर एडप्पागथ की खंडपीठ ने कहा, 'पत्नी की स्वायत्तता की अवहेलना करने वाला पति का अवैध स्वभाव वैवाहिक दुष्कर्म है। हालांकि इस तरह के आचरण के लिए दंडित नहीं किया जा सकता है। यह शारीरिक और मानसिक क्रूरता के दायरे में आता है। 'हाईकोर्ट ने पति की अर्जी को खारिज करते हुए फैमिली कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा।
पत्नी ने शादी बचाने के लिए उत्पीड़न सहा
बता दें कि साल 1995 में इस दंपत्ति की शादी हुई और उनके दो बच्चे हैं। पेशे से डॉक्टर पति ने शादी के समय अपनी पत्नी के पिता से सोने के 501 सिक्के, एक कार और एक फ्लैट लिया किया था। इतना ही नहीं रिपोर्ट के अनुसार पीड़ित महिला ने कोर्ट के सामने कहा कि डॉक्टर से रियल एस्टेट कारोबारी बने उसके पति ने रियल एस्टेट के कारोबार के लिए उसके ऊपर पैसे देने का दबाव बनाया।
पीड़िता के पिता से पति ने 77 लाख रुपए लिए
जिसके बाद पीड़िता के पिता ने उसके पति को 77 लाख रुपए दिए। इसके बावजूद पत्नी ने विवाह की खातिर उत्पीड़न को सहन किया। लेकिन जब उत्पीड़न और क्रूरता बर्दाश्त से बाहर बढ़ती गई तो तलाक के लिए याचिका दायर की। साल 2017 में दिल्ली हाईकोर्ट में केंद्र सरकार ने कहा था कि "मैरिटल रेप को अपराध नहीं करार दिया जा सकता है। और ऐसा करने से विवाह की संस्था अस्थिर हो सकती है। पतियों को सताने के लिए ये एक आसान औजार हो सकता है। अब जब हमारी ही सरकार इसे मानने को तैयार नहीं है। तो ऐसे कानूनों में संसोधन होना मुश्किल ही है।
भारत मे रेप की परिभाषा
भारत में यदि एक व्यक्ति निम्न तरीके से किसी महिला के साथ शारीरिक संबंध बनाता है। जैसे कि महिला की इच्छा के बिना,महिला के सहमति जो पर उसके बाद विवाह का भरोसा दिया जाये। महिला 16 साल से कम हो,महिला को जबरन धमकी देकर या ब्लैकमेल करके या फिर महिला को किसी नशीला पदार्थ देकर या अस्थिर अवस्था में सहमत कराया गया हो ,ऐसे स्थिति में होने वाले शारीरिक संबंध बलात्कार की श्रेणी में आते हैं।
मैरिटल रेप क्या है
आईपीसी या भारतीय दंड विधान रेप की परिभाषा तो तय करता है। लेकिन उसमें वैवाहिक बलात्कार या मैरिटल रेप का कोई जिक्र नहीं है। धारा 376 रेप के लिए सजा का प्रावधान करता है और आईपीसी धारा 376 से पत्नी से रेप करने वाले पति के लिए सजा का प्रावधान है। लेकिन पत्नी की उम्र 12 साल से कम होनी चाहिए। तभी उसके पति को सजा मिलेगी।
12 साल से कम उम्र की महिला के साथ बलात्कार करने पर मिलती है सजा
इसमें कहा गया है कि 12 साल से कम उम्र की पत्नी के साथ पति अगर बलात्कार करता है। तो उस पर जुर्माना या उसे दो साल तक की कैद या दोनों सजाएं दी जा सकती हैं। आईपीसी की धारा 375 और 376 के प्रावधानों से ये समझा जा सकता है कि सेक्स करने के लिए सहमति देने की उम्र तो 16 है। लेकिन 12 साल से बड़ी उम्र की पत्नी की सहमति या असहमति का कोई मूल्य नहीं है। जबकि 12 साल से कम पत्नी की उम्र हो ही नहीं हो सकती क्योंकि हमारे संविधान में बाल विवाह अपराध है।
हालांकि घर की चारदीवारी के भीतर महिलाओं के यौन शोषण के लिए 2005 में घरेलू हिंसा कानून लाया गया था। ये कानून महिलाओं को घर में यौन शोषण से संरक्षण देता है। इसमें घर के भीतर यौन शोषण को परिभाषित किया गया है।
हिंदू मैरिज एक्ट
हिंदू विवाह अधिनियम पति और पत्नी के लिए एक दूसरे के प्रति कुछ जिम्मेदारियां तय करता है। इनमें सहवास का अधिकार भी शामिल है। कानूनन ये माना गया है कि सेक्स के लिए इनकार करना क्रूरता है। और इस आधार पर तलाक मांगा जा सकता है।
केंद्र सरकार का कथन
केंद्र सरकार का मत है कि बहुत सारे पश्चिमी देशों में वैवाहिक बलात्कार अपराध की श्रेणी में हैं। लेकिन इससे यह जरूरी नहीं है कि भारत में भी इसका आंख मूंदकर अनुसरण किया जाए। केंद्र ने यह भी कहा कि मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने से पहले देश में शिक्षा, महिलाओं की आर्थिक हालत, गरीबी जैसी तमाम समस्याओं के बारे में भी सोचना होगा।
केंद्र सरकार ने कहा था कि सरकार आईपीसी की धारा 375 के परंतु (अपवाद) 2 के समर्थन में है। धारा 375 के अपवाद 2 में पति, नाबालिग पत्नी और उनके वैवाहिक संबंध की मर्यादा की रक्षा की बात कही गई है।
विदेशों में मैरिटल रेप अपराध की श्रेणी में आता है
पिछले कुछ दशकों में बहुत से देशों ने वैवाहिक संबंध में पति द्वारा जबरदस्ती सेक्स को अपराध करार दिया जा चुका है। संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार उच्चायुक्त के महिलाओं के खिलाफ हिंसा से जुड़े घोषणा पत्र में वैवाहिक बलात्कार को मानवाधिकार का उल्लंघन माना गया है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि जिन 104 देशों में वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित किया है। उनमें से 34 देशों ने इसे अलग अपराध माना है। जबकि बाकी देश इसे बलात्कार के दूसरे मामलों की तरह का ही अपराध मानते हैं। परंतु दुर्भाग्य से भारत विश्व के उन 36 देशों में से एक है जहां वैवाहिक बलात्कार को आज भी अपराध की श्रेणी में नहीं रखा गया है।
2019 NCRB के अनुसार महिलाओं पर उत्पीड़न बढ़ा
भारत में घरेलू हिंसा एक गंभीर समस्या रही है। और हाल के वर्षों में इसमें वृद्धि देखी गई है। 'राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो' (NCRB) द्वारा जारी 'भारत में अपराध-2019' (Crime in India-2019) रिपोर्ट के अनुसार, भारत में लगभग 70% महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकार हैं।
वैवाहिक बलात्कार भी घरेलू हिंसा का ही एक रूप है। वैवाहिक बलात्कार से आशय पत्नी की सहमति के बगैर उसे यौन संबंध बनाने के लिये विवश करने से है। ऐसे कृत्य अन्यायपूर्ण होते हैं परंतु फिर भी महिलाओं को नीचा दिखाने और अपमानित करने के ऐसे मामले असामान्य नहीं हैं।
भारत मैरिटल रेप पर काफी बहस होती रही हैं
मैरिटल रेप को लेकर भारत में काफी बहस होती रही हैं। इस पर कानून बनाने की मांग भी होती रही है। इसी साल जुलाई में दिल्ली हाईकोर्ट ने मैरिटल रेप को तलाक का आधार बनाने की याचिका को खारिज दिया था। ऐसे में केरल हाईकोर्ट का यह फैसला काफी अहम है।
केरल कोर्ट द्वारा कही गयी अहम बातें
ये समय की मांग है कि सभी समुदायों के लिए एक समान कानून के तहत शादी और तलाक को लाया जाए। धर्मनिरपेक्ष कानून के तहत विवाह के अनिवार्य चीजों से मुक्त नहीं किया जा सकता है। विवाह और तलाक धर्मनिरपेक्ष कानून के तहत होना चाहिए; यही समय की मांग है। हमारे देश में विवाह कानून में बदलाव का समय आ गया है। सभी समुदायों के लिए एक समान कानून होने में कोई कठिनाई नहीं हो सकती है। कम से कम विवाह और तलाक के लिए।
हमें मानवीय समस्याओं से निपटने के लिए मानवीय दिमाग से एक कानून बनाने की जरूरत है। पति का धन और सेक्स के लिए लालच ने एक महिला को संकट में डाल दिया था। तलाक लेने के लिए उसने अपने सभी मौद्रिक दावों को त्याग दिया। तलाक के लिए न्याय के मंदिर में एक दशक (12 वर्ष) से अधिक समय तक उसे इंतजार करना पड़ा।
भारतीय कानून अब पतियों और पत्नियों को अलग और स्वंतत्र पहचान देता है
भारतीय कानून अब पति और पत्नियों को अलग तथा स्वतंत्र कानूनी पहचान देता है। साथ ही आधुनिक युग में अधिकांश न्यायिक सिद्धांत स्पष्ट रूप से महिलाओं की सुरक्षा से संबंधित हैं। ऐसे में यह सही समय है कि विधायिका को इस कानूनी कमज़ोरी का संज्ञान लेना चाहिये और IPC की धारा 375 (अपवाद 2) को समाप्त करते हुए वैवाहिक बलात्कार को कानून के दायरे में लाना चाहिये।