Hemambika Temple Of Kerala: केरल के इस मंदिर में देवी मां की मूर्ति नहीं हाथ की होती है पूजा, जानें इसका इतिहास

केरल में स्थित देवी मां के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताएंगे, जहां माता की मूर्ति नहीं बल्कि दोनों हाथ की पूजा की जाती है। हेमांबिका मंदिर में लोग दूर – दूर से देवी मां के दर्शन को आते हैं।

Written By :  Krishna Chaudhary
Update:2022-10-04 13:45 IST

Hemambika Temple Of Kerela। (Social Media)

Hemambika Temple Of Kerela: देशभर में नवरात्रि के पर्व (Navratri Festivals ) को लेकर लोगों में भारी उत्साह है। मंगलवार को नवरात्रि का आखिरी दिन है। दक्षिण भारत में भी यह पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है। आज हम आपको GOD'S OWN LAND कहे जाने वाले केरल में स्थित देवी मां के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताएंगे, जहां माता की मूर्ति नहीं बल्कि दोनों हाथ की पूजा की जाती है। हेमांबिका मंदिर (Hemambika Temple) में लोग दूर – दूर से देवी मां के दर्शन को आते हैं। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की भी इस मंदिर में विशेष आस्था थी।

क्या है मंदिर का इतिहास

मंदिर का वर्तमान स्वरूप करीब 1500 साल पुराना बताया जाता है। इस मंदिर को लेकर लोगों के बीच दो कहानियां प्रचलित है। पहली कहानी के मुताबिक, माता पार्वती एक राक्षस के हमले से बचने के लिए जब भाग रही थीं, उस दौरान वह फिसलकर तालाब में जा गिरीं। उन्होंने तालाब के अंदर से दोनों हाथ उठाकर भगवान शिव को बचाने के लिए पुकारा, शिव आए और राक्षस का वध कर दिया। पानी के ऊपर उठे पार्वती के वो हाथ यहां मूर्ति के रूप में स्थापित किए गए।


वहीं, दूसरी कहानी यहां के पंडित वासुदेवन नंबूदिरी बताते हैं कि 1500 साल पहले कल्लेकुलंगरा का एक पुजारी लगभग 15 किलोमीटर दूर मलमपुझा के अकमलावरम मंदिर में रोज पूजा करने जाता था। जब वो बूढ़ा हो गया तब उसने इतनी दूर पैदल चलने में असमर्थता जताते हुए देवी मां से कुछ वैक्लिपिक रास्ता निकालने की प्रार्थना की। एक दिन उन्होंने कल्लेकुलंगरा के तालाब में एक महिला को डूबते देखा, जिसके केवल दो हाथ दिखाई दे रहे थे। उन्होंनें आगे बताया कि जब महिला को बचाने की कोशिश की गई तो वह एक मूर्ति बन गई। लोगों ने उन्हीं दो हाथों को वहां मूर्ति के रूप में स्थापित कर दिया।

राजपरिवार के नियंत्रण में था मंदिर

केरल के अन्य बड़े मंदिरों की तरह यह मंदिर भी पलक्कट्टुसरी शेखरी वर्मा वलिया राजा के अधीन था, जिसे बाद में मालाबार देवस्वम बोर्ड ने अपने अधिकार में ले लिया। आज भी इस मंदिर में राजा का राज्याभिषेक किया जाता है। मंदिर में पूजा का समय सुबह 5 बजे से 11.30 बजे तक और शाम 5 बजे से रात 8 बजे तक होता है। हेमांबिका मंदिर को इमूर भगवती मंदिर भी कहा जाता है। ये केरल के पडक्कल जिले की कल्लेकुलंगरा तहसील में है।


हेमांबिका मंदिर का कांग्रेस से कन्केशन

कांग्रेस पार्टी का चुनाव चिह्न आज के पंजे के बजाय किसी जमाने में गाय – बछड़ा हुआ करता था। लेकिन इमरजेंसी के बाद कांग्रेस में मचे अंदरूनी घमासान के बाद पार्टी टूकड़ों में बंट गई थी। तब चुनाव आयोग ने कांग्रेस के चुनाव चिह्न गाय – बछड़ा को निरस्त कर दिया था। इंदिरा गांधी की अगुवाई वाली कांग्रेस नए चुनाव चिह्न पर विचार कर रही थी। गांधी ने इस दौरान पंजे को चुनाव चिह्न के रूप में चुना।

ये हाथ का पंजा इंदिरा गांधी ने इसी हेमांबिका मंदिर को ध्यान में रखकर चुना था। इमरजेंसी के बाद इंदिरा गांधी अपना जनाधार खो चुकी थीं और अलोकप्रियता के शिखर पर थीं। उसी दौरान वह केरल आई थीं और तत्कालीन मुख्यमंत्री के. करूनाकरण के साथ हेमांबिका मंदिर दर्शन के लिए गई थीं। पडक्कल के पूर्व कांग्रेस सांसद वी.एस. विजयराघवन बताते हैं कि उस दौरान इंदिरा गांधी के साथ सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस पीएस कैलासम की पत्नी सौंदर्या कैलासम भी मौजूद थीं। सौंदर्या कैलासम ने उन्हें मंदिर की महिमा और विशेष मूर्ति के बारे में बताया था, जिससे इंदिरा काफी प्रभावित हुईं और यहीं से पंजे को चुनाव चिह्न बनाने का मन बना लिया।

उनका ये कदम सफल साबित हुआ, 1980 के लोकसभा चुनाव में वो फिर विरोधियों को शिकस्त देकर दिल्ली के तख्त पर काबिज हुईं। जीतने के बाद इंदिरा गांधी यहां दोबारा आईं और उन्होंने मंदिर में एक बड़ा घंटा और 5001 रूपये चढ़ाया था। विजयराघवन बताते हैं कि तब के राज परिवार ने पीएम को एक लॉकेट गिफ्ट किया था, जिसमें मंदिर में विराजमान मूर्ति के प्रतीक दोनों हाथ के पंजे थे।

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