अयोध्या मामला: सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई अगले साल 8 फरवरी तक टली

Update: 2017-12-05 08:50 GMT

नई दिल्ली: बाबरी मस्जिद गिराए जाने की 25वीं वर्षगांठ से ठीक एक दिन पहले सुप्रीम कोर्ट में रामजन्म भूमि-बाबरी मस्जिद स्वामित्व विवाद पर सुनवाई हुई। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है। कोर्ट में अब अगली सुनवाई 8 फरवरी 2018 को होगी। सुनवाई के दौरान सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील कपिल सिब्बल ने मामले की सुनवाई 2019 तक टालने तक कही है। वहीं, सुन्नी वक्फ बोर्ड ने सभी दस्तावेज पूरे करने की मांग की है।

अयोध्या की विवादित जमीन पर मालिकाना हक को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट के लखनऊ बेंच के फैसले के 7 साल बाद यह सुनवाई हुई।

बेंच कोर्ट के बाहर की राजनीति पर न दें ध्यान

सुनवाई के दौरान रामलला का पक्ष रख रहे हरीश साल्वे ने कोर्ट में बड़ी बेंच बनाने का विरोध किया। कहा, 'बेंच को कोर्ट के बाहर चल रही राजनीति पर ध्यान नहीं देना चाहिए।' दरअसल, साल्वे बातें कपिल सिब्बल की मांग के बाद कही। इसे पहले सिब्बल ने कहा था, कि 'राम मंदिर एनडीए के एजेंडे में है, उनके घोषणा पत्र का हिस्सा है इसलिए 2019 के बाद ही इसको लेकर सुनवाई होनी चाहिए। उन्होंने इस मामले को 2019 के जुलाई महीने तक टालने की मांग की।

...तो भी मामले में एक साल लगेगा

इसके जवाब में यूपी सरकार की ओर से पेश तुषार मेहता ने कहा, कि 'जब दस्तावेज सुन्नी वक्फ बोर्ड के ही हैं तो ट्रांसलेटेड कॉपी देने की जरूरत क्यों हैं? शीर्ष अदालत इस मामले में निर्णायक सुनवाई कर रही है। मामले की रोजाना सुनवाई पर भी फैसला होना है। मुस्लिम पक्ष की ओर से राजीव धवन ने कहा, कि अगर सोमवार से शुक्रवार भी मामले की सुनवाई होती है, तो भी मामले में एक साल लगेगा।

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90 हजार पेज में दर्ज हैं गवाहियां

मामले में 7 साल से 20 लंबित याचिका इस साल 11 अगस्त को पहली बार लिस्ट हुई थीं। पहले ही दिन डॉक्यूमेंटस के अनुवाद पर मामला फंस गया था। संस्कृत, पाली, फारसी, उर्दू और अरबी समेत 7 भाषाओं में 9,000 पन्नों का अंग्रेजी में अनुवाद करने के लिए कोर्ट ने 12 हफ्ते का समय दिया था। इसके अलावा 90 हजार पेज में गवाहियां दर्ज हैं। यूपी सरकार ने ही 15 हजार पन्नों के दस्तावेज जमा कराए हैं।

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तीन जजों की बेंच करेगी सुनवाई

मंगलवार दोपहर 2 बजे तीन जजों की स्पेशल बेंच सुनवाई शुरू करेगी। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के जीवन का ये सबसे बड़ा केस साबित होने जा रहा है। दीपक मिश्रा अगले साल 2 अक्टूबर को रिटायर होंगे। सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील कपिल सिब्बल और राजीव धवन होंगे। रामलला का पक्ष हरीश साल्वे रखेंगे। कोर्ट देखेगा कि डॉक्यूमेंटस का अनुवाद पूरा हुआ है या नहीं। अनुवाद पूरा नहीं होने पर पेंच फंस सकता है

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट कह चुका है कि अब सुनवाई नहीं टलेगी। मंगलवार 5 दिसंबर से दलीलें सुनी जाएंगी। सबसे पहले जमीन पर मालिकाना हक का दावा करने वाले लोग अपनी दलीलें रखेंगे। फिर बाकी अर्जियों पर बात होगी।

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7 साल पहले हाईकोर्ट ने 3 हिस्सों में बांटी थी जमीन

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने 30 सितंबर 2010 को फैसला सुनाया था। कोर्ट ने विवादित 2.77 एकड़ जमीन तीन बराबर हिस्सों में बांट दी थी। अदालत ने रामलला की मूर्ति वाली जगह रामलला विराजमान को दी। सीता रसोई और राम चबूतरा निर्माेही अखाड़े को और बाकी हिस्सा मस्जिद निर्माण के लिए सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया था।

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सुन्नी वक्फ बोर्ड गया था सुप्रीम कोर्ट

हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुन्नी वक्फ बोर्ड 14 दिसंबर 2010 को सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। फिर एक के बाद एक 20 याचिकाएं दाखिल हो गईं। सुप्रीम कोर्ट ने 9 मई 2011 को हाईकोर्ट के फैसले पर स्टे लगा दिया, लेकिन सुनवाई शुरू नहीं हुई। इस दौरान सात चीफ जस्टिस बदले। सातवें चीफ जस्टिस जेएस खेहर ने इस साल 11 अगस्त को पहली बार याचिका लिस्ट की।

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दीपक मिश्रा पहले भी सुना चुके हैं कई अहम फैसले

तीन जज की बेंच में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ,अब्दुल नजीर और अशोक भूषण शामिल हैं। दीपक मिश्रा तीन तलाक खत्म करने और सिनेमा हॉल में राष्ट्रगान के दौरान खड़े होने जैसे फैसले सुना चुके हैं। अब्दुल नाजिर तीन तलाक बेंच में थे। प्रथा में दखल गलत बताया था और प्राइवेसी को फंडामेंटल राइट करार दिया था। अशोक भूषण दिल्ली सरकार अौर एलजी के बीच जारी अधिकारों की जंग के विवाद पर सुनवाई कर रहे हैं।

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