पूर्णिमा श्रीवास्तव
गोरखपुर। वैसे तो चीन वर्षों से मित्र देश नेपाल की सरजमीं का इस्तेमाल भारत के खिलाफ अवांछित गतिविधियों के लिए करता रहा है लेकिन हाल के दिनों में उसने सक्रियता बढ़ा दी है। तिब्बत को लेकर अपनी दावेदारी को पुख्ता करने और व्यपारिक संबंध बढ़ाने के लिए चीन ने नेपाल के साथ ‘वन बेल्ट वन रोड’ का समझौता किया है। यहीं नहीं नेपाल के पर्यटन स्थलों पर चीन यह साबित करने में जुटा है कि तिब्बत उसका अभिन्न हिस्सा है। पोखरा में लगे सोलर लाइट की पोल पर साफ लिखा है कि ‘तिब्बत चीन का हिस्सा है’।
दरअसल, चीन ने पर्यटकों के लिहाज से काफी अहम पोखरा शहर को 1000 सोलर स्ट्रीट लाइट दिया है। जो प्रमुख स्थानों पर लगाए गए हैं। जिसे देखकर कुछ देर के लिए ही सही भ्रम होता है कि आप चीन में हैं या फिर नेपाल में। कूटनीतिक चाल ही है कि चीन यहां आने वाले लाखों भारतीय और विदेशी सैलानियों में संदेश देना चाहता है कि तिब्बत चीन का ही हिस्सा है। यहीं नहीं पिछले दिनों नेपाल ने चीन के साथ वन बेल्ट वन रोड को लेकर सहमति बना ली है।
वन बेल्ट वन रोड पहल का उद्देश्य सडक़, ट्रेन और समुद्री बंदरगाह परियोजना के माध्यम से चीन को एशिया और यूरोप के बाजारों से जोडऩा है। चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कोरिडोर पहल के बीच नेपाल से सहमति भारत की चिंताओं को बढ़ाने वाला है। चीन व्यापारिक शक्ति बनने के लिए यूरोप और एशिया के देशों के साथ 6 कोरिडोर बनाने की कवायद में जुटा है। चीन की इस पहल को न्यू सिल्क रोड भी कहा जा रहा है। भारत को चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर को लेकर आपत्ति है क्योंकि इसके पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) से गुजरने का प्रस्ताव है।
पाकिस्तान के बाद भारत के संकेतों के बाद भी नेपाल का चीन खेमे में जाना भारत की कूटनीतिक विफलता मानी जा रही है। परंपरागत रूप से नेपाल के साथ अच्छे आर्थिक और राजनीतिक संबंध रखने वाले भारत को पिछले कुछ सालों में चीन से लगातार स्पर्धा का सामना करना पड़ा है। चारों तरफ जमीनी सीमा से घिरा नेपाल आयात के मामले में प्रमुखता से भारत पर निर्भर है।
नेपाल में पांव पसार रहा है चीन
नेपाल को आर्थिक और सामाजिक सहयोग देकर चीन खुद को भारत से बड़ा हितैषी साबित करने में जुटा है। पिछले वर्षों में भूकंप से आयी ताबाही के बीच भी चीन और भारत के बीच मदद को लेकर कूटनीतिक जोर आजमाइश हुई थी। चीन इन दिनों नेपाल के रीड़ माने जाने वाले पर्यटन उद्योग पर कब्जे के लिए प्रमुख शहरों को फाइव स्टार होटल का निर्माण करा रहा है। नेपाल के भैरहवा, लुम्बनी, नेपालगंज, जनकपुर, काकर भीट्टा, धनगढ़ी में चीन की मदद से फाइव स्टार होटल का निर्माण हो रहा है। इसके साथ ही चीन पोखरा मे इंटरनेशनल एयरपोर्ट में पूरा आर्थिक मदद दे रहा है। चीन की नजर पोखरा से ऊपर मुस्तांग जिले के यूरेनियम मंडार पर भी है। अमेरिका के वैज्ञानिकों ने शोध के बाद बताया था कि मुस्तांग में यूरेनियम का बड़ा भंडार है।
बता दें कि मुस्तांग जिले की सीमा तिब्बत से जुड़ी हुई है। मुस्तांग के लोमांग थान नाका पर चीन की विशेष नजर है। सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण एरिया में चीन अपना बेसकैंप बनाना चाहता है। जहां से वह भारत की गतिविधियों पर नजर रख सकता है। चीन नेपाल के युवाओं को रोजगार देकर अपनी तरफ खींचने की फिराक में है। नेपाल के तराई जिले नवलपरासी में चीन बड़ा सीमेंट कारखाना लगा रहा है। इसके साथ ही महात्मा बुद्ध की जन्मस्थली लुम्बिनी में भी चीन शिक्षा और चिकित्सा के नाम पर सुविधाएं देकर अपना वर्चस्व बनाने की जुगत में है।
भाषा के संकट से जूझने के लिए चीन नेपाल के विभिन्न इलाकों में नेपाली युवाओं को चीनी भाषा सिखाने का केन्द्र खोल रखा है। कैंसर हॉस्पिटल काठमांडू के निदेशक ने पिछले दिनों चीनी नागरिक मिस्टर वांग के साथ लुम्बिनी का दौरा किया था। जहां ग्रामीणों में भरोसा जताने के लिए चिकित्सा शिविर का आयोजन किया गया था।
नेपाल चीन के लिए बड़ा उपभोक्ता है। जहां खरबों रुपये के सामान की खपत हो जाती है। यहीं नहीं चीन नेपाल को अपने उत्पादों को भारत से लेकर बांग्लादेश तक भेजने के लिए ट्रांजिट सेंटर के रूप में इस्तेमाल करना चाहता है। वैसे तो नेपाल और भारत में ‘अच्छे मित्र’ की होड़ पुरानी है लेकिन असल जोर आजमाइश वर्ष 2010 में शुरू हुई थी। जब नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता के बीच चीन को नेपाल के व्यापार प्रभावित होने के बाद 32 अरब से अधिक का झटका सहना पड़ा था। इसके बाद नेपाल द्वारा घोषित पर्यटन वर्ष-2011 में चीन ने तमाम सहूलियतें देने की घोषणाएं की थीं।
तब चीन और नेपाल के बीच हेलीकाप्टर सेवाएं शुरू हुई थी और चीनी कब्जे वाले तिब्बत में होर्डिंग, रेडियो व टेलीविजन के जरिए प्रचार पर भी सहमति बनी थी। व्यापार को बढ़ाने के लिए नेपाल ने 4,721 वस्तुओं से कस्टम ड्यूटी को भी हटा दिया था। इन वस्तुओं पर 10 से 35 प्रतिशत कस्टम लगता था। भारत के सीमावर्ती इलाकों में धार्मिक मुद्दों के साथ रोजगार के अवसर मुहैया कराना भी चीन की कूटनीतिक चाल मानी जा रही है।
लुम्बिनी को विश्व फलक पर पहचान देने के लिए चीन यहां की सुविधाओं पर करीब 8 अरब रुपये खर्च कर रहा है। वहीं मधेश इलाके नवलपरासी में चीनी मदद से नेपाल की सबसे बड़ी सिमेंट फैक्ट्री संचालित हो रही है। जहां हजारों नेपालियों को रोजगार मिलने का दावा किया जा रहा है।
प्रोपेगंडा में चीनी साजिश
चीन नेपालियों के बीच भारत के खिलाफ जहर घोलने का कोई मौका नहीं छोडऩा चाहता है। नेपाल में भूकंप के दौरान सहायता को लेकर भी नेपाल ने जमकर प्रोपेगंडा किया। चीनी शह ही थी कि नेपाल के पहाड़ में भारत द्वारा आर्थिक नाकेबंदी की अफवाह फैली। तभी से पहाड़ी और मधेशी समुदाय के बीच खटास जारी है।
फिलहाल दोनों संविधान संशोधन को लेकर आमने-सामने हैं। चीन जहां नेपाल के संविधान संशोधन पर अपना समर्थन दे रहा है, वहीं भारत कई बिंदुओं को लेकर खुले तौर पर ऐतराज़ जता चुका है। नेपाल के जानकार मान रहे हैं कि पीएम नरेंद्र मोदी के नेपाल दौरे के बाद भारत की जो लोकप्रियता बढ़ी थी उसमें तेजी से कमी आ रही है।
जल विद्युत योजनाओं में अरबों का निवेश
चीन नेपाल में प्राकृतिक संसाधनों पर कब्जे का खेल भी बड़े पैमाने पर चल रहा है। आधा दर्जन से अधि जल विद्युत परियोजनाओं पर चीन अरबों का निवेश कर रहा है। चाइना सीएएमसी इंजीनियरिंग कापोर्रेशन द्वारा संचालित परियोजनाओं में उत्पादित होने वाली कुल बिजली का दस फीसदी नेपाल को मुफ्त में देने की योजना है। पिछले महीने नेपाल सरकार और चीन की कंपनी के बीच 1200 मेगावाट की पनबिजली परियोजना के लिए समझौता हुआ है। चीन की गेझूबा समूह (सीजीजीसी) से नेपाल ने एमओयू पर हस्ताक्षर किया है।
यातायात की सहूलियत के लिए बढ़ रहा चीनी दखल
चीन नेपाल को सहयोग देकर लगातार ट्रैफिक सुविधाओं को बढ़ाने पर लगा हुआ है। पिछले वर्षों में पहली बार चीन ने मानसरोबर तक नेपाली हेलीकाप्टर जाने अनुमति दी। इसके साथ ही चीन ने काठमांडू से लासा तक बस संचलन को भी अनुमति दे दी है। भारत भले ही नेपाल में ट्रेन नहीं पहुंचा सका हो लेकिन चीन ने कांठमांडू में मेट्रो की योजना पर काम शुरू कर दिया है। वहीं नेपाल की राजधानी काठमांडू और चीन के सीमावर्ती कस्बे केरूंग के बीच प्रस्तावित रेल नेटवर्क का खाका तैयार हो गया है। इस योजना पर जल्द मुहर लगने की उम्मीद है।
नेपाल-चीन की सेनाएं कर चुकी संयुक्त अभ्यास
भारत और चीन दोनों के लिए नेपाल का सामरिक दृष्टि से अहम भूमिका है। नेपाल ने चीन के साथ बीते अप्रैल माह में मधेश इलाके में10 दिन का ज्वॉइंट मिलिट्री एक्सरसाइज चलाकर भारत को संदेश भी दे दिया है। ‘सागरमाथा फे्रंडशिप 2017’ नाम से चले संयुक्त सैन्य अभ्यास से भारत की चिंताएं बढ़ी हैं। अभ्यास को लेकर चीन काफी रणनीतिक जवाब दे रहा है। चीन के आर्मी चीफ का कहना है कि नेपाल में सैन्य अभ्यास के मकसद आतंकवाद से निपटने के साथ ही आपदा से निपटले की ट्रेनिंग देना है।
नेपाल में उठ रहे विरोध के सुर
नेपाल में ब्लैकमेल करने की राजनीति हो रही है। नेपाल भारत को चीन का डर दिखाकर ब्लैकमेल करने की कोशिश कर रहा है। नेपाल कई बार चीन को ब्लैकमेल करने के लिए इंडिया कार्ड का भी इस्तेमाल करता है। भारत से हमारा भावनात्मक रिश्ता है। इस रिश्ते को मजबूती देने की कोशिश होनी चाहिए।
उपेन्द्र यादव, मधेशी जनाधिकार फोरम के अध्यक्ष और नेपाल के पूर्व विदेश मंत्री
पोखरा में जो सोलर लाइट लगा है, उसमें एक चिप लगा हुआ है। जिससे नेपाल पोखरा में होने वाली गतिविधियों पर नजर रख रहा है। यह नेपाल के लोकतंत्र के लिए खतरा है। देश में इस तरह की विदेशी गतिविधि की भी दशा में अनुमति के योग्य नहीं है।
सूर्य कुमार भुसाल, राष्ट्रीय अध्यक्ष भारत-नेपाल मैत्री संघ
नेपाल में व्यापारी नेता शांत कुमार शर्मा का कहना है कि भारत को नेपाल में अपनी सक्रियता को बढ़ाना होगा। चीन के दखल से नेपाल के साथ ही भारत का भी नुकसान होगा। भारत-अवध मैत्री संघ संघ के रूपनदेही जिला इकाई के अध्यक्ष अजय गुप्ता का कहना है कि नेपाल का युवा तरक्की करना चाहता है। उसे रोजगार चाहिए। उसे इसकी फिक्र नहीं है कि रोजगार भारत की मदद से मिल रहा है या चीन के।
भारत को नेपाल के साथ संबंधों को लेकर समीक्षा करनी होगी। मधेशी नेता संतोष पाण्डेय का कहना है कि भारत से हमारा रोटी-बेटी का संबंध है। हम भारत को बड़ा भाई मानते हैं तो भारत को भी बड़े भाई जैसा सलूक करना होगा।
सत्ता बदलने से हालात बदलने के संकेत
नेपाल में अब शेरबहादुर देउबा प्रधानमंत्री बन गये हैं। इससे हालात में बदलाव संभव है। नेपाल की संसद में मतदान के बाद देश की सबसे पुरानी पार्टी- नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष देउबा को देश का 40वां प्रधानमंत्री चुना गया। 601 सदस्यों वाली संसद में 558 मत डाले गए। देउबा को 388 मत मिले। वह राष्ट्रपति पद के इकलौते उम्मीदवार थे।
सत्ता में भागीदारी के समझौते पर अमल करते हुए माओवादी नेता पुष्प कमल दहल प्रचंड ने राष्ट्रपति पद पर नौ महीने पूरे होने पर इस्तीफा दे दिया था। प्रचंड ने देउबा के नाम का प्रस्ताव किया था। माना जाता है कि प्रमुख भारतीय नेताओं के साथ देउबा के अच्छे रिश्ते हैं और यह मधेशियों तथा पर्वतीय लोगों के बीच बढ़ती खाई को दूर करने में मददगार साबित हो सकता है।