CM अखिलेश की समाजवादी विकास रथ यात्रा में टूट पर भारी तरुणाई

सीएम अखिलेश यादव ने बीते गुरुवार को लामार्टिनियर मैदान में इसे एक बार फिर सच साबित कर दिया। यही वजह थी कि कभी टूट की कगार पर पहुंच चुकी समाजवादी पार्टी के नेताओं के दिल भले ही पूरी तरह न मिले हों पर उन्हें एक मंच पर एक साथ मौजूद होकर यह संदेश देना ही पडा कि हम साथ-साथ है।

Update: 2016-11-03 21:01 GMT

योगेश मिश्र/ अनुराग शुक्ला

लखनऊ: तरुणाई के ही पौरुष से युग का इतिहास बदलता है,

जिस ओर जवानी चलती है उस ओर जमाना चलता है।

सीएम अखिलेश यादव ने बीते गुरुवार को लामार्टिनियर मैदान में इसे एक बार फिर सच साबित कर दिया। यही वजह थी कि कभी टूट की कगार पर पहुंच चुकी समाजवादी पार्टी के नेताओं के दिल भले ही पूरी तरह न मिले हों पर उन्हें एक मंच पर एक साथ मौजूद होकर यह संदेश देना ही पडा कि हम साथ-साथ है।

बुझी बुझी एकता। लंबी नसीहतें। युवा संकल्प और फिर सत्ता में वापस आने के जोश से लबरेज नौजवानों का हुजूम यह साबित कर रहा था कि जमाना उसी ओर चल रहा है जिस ओर वे चल रहे हैं। तमाम अटकलों को विराम देने और विवाद को थामने की कोशिश करते हुए पार्टी सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव दिखे।

अखिलेश ने अपनी तैयारियों और शक्ति प्रदर्शन से यह साबित कर दिखाया कि मुलायम सिंह यादव के बाद पार्टी भी उनकी ही है। वह इकलौते चेहरे हैं। लंबी तैयारियों के बीच उनके ठोस बयानों वाले साक्षात्कार सच साबित होते दिख रहे थे। अखिलेश यादव ने यह दिखाया कि पार्टी की संजीवनी मुलायम सिंह का नाम और उनका काम ही है।

दरअसल लामार्टिनियर ग्राउंड पर गुरुवार को अखिलेश की अग्निपरीक्षा भी थी और शक्ति परीक्षण भी। तभी तो अखिलेश यादव ने अपना सबकुछ इसमें झोंक दिया था। मैदान के करीब 2 किलोमीटर के दायरे में सिर्फ गाड़ियों की कतारें नजर आ रही थी। बैरीकेटिंग से अंदर जाती भीड़ में ज्यादातर युवा और टापू की तरह कुछ बुजुर्ग चेहरे थे। इन चेहरों पर भी अखिलेश एक उम्मीद की तरह नजर आ रहे थे।

अखिलेश की युवा ब्रिगेड को इस बात की चिंता नहीं थी कि वह पार्टी में है या नहीं बस सब अपनी ताकत दिखा रहे थे। अपने अखिलेश भईया की शान मे किसी ने टी-शर्ट पहनी तो किसी ने लाल टोपी पर अखिलेश का चेहरा लगा लिया।

अखिलेश यादव की ताकत का ही नजारा था कि पूरे ग्राउंड में जय अखिलेश और मुलायम के नाम पर अखिलेश के काम के नारे लग रहे थे। शिवपाल नारों में नहीं थे और समारोह से शिवपाल का चेहरा प्रो. रामगोपाल की तरह गायब था। मंच पर मोर्च संभाला था सांसद अक्षय यादव, धर्मेंद्र प्रधान ने वहीं मंत्रियों की युवा टीम में अभिषेक मिश्रा, नितिन अग्रवाल समेत कई युवा चेहरे थे।

अखिलेश के आने से पहले पार्टी एक सुर में लामबंद हो चुके वे चेहरे भी थे जो अब तक शिवपाल कैंप की शान समझे जाते थे। चाहे राजा भइया हों, या फिर पारसनाथ यादव, माताप्रसाद पांडेय या फिर अरविंद सिंह गोप। पार्टी के विधायकों की भीड़ इस बात को लालायित थी कि अखिलेश को किस तरह चेहरा दिखा लें।

अखिलेश के आने से पहले ही मीडिया का मंच हाउसफुल की स्थिति में पहुंच गया था और अखिलेश के आऩे में देर हुई तो खबर तैर गई कि वे मुलायम सिंह को मनाने गए हैं। अखिलेश के आने से पहले उनकी शान में कहीं आला उदल का आल्हा था तो कहीं भोजपुरी संगीत जोश भर रहा था।

सारे गीत अखिलेश सरकार की चाश्नी में पके थे। अखिलेश के आते ही उनके जय घोष के नारों ने सबको बौना साबित कर दिया। अखिलेश का जयघोष कराने का जिम्मा संभाला अतुल प्रधान ने। इसके बाद तो लोगों को तब आश्चर्य हुआ जब नेताजी मुलायम सिंह के बाद शिवपाल यादव भी मंच पर पहुंच गए।

दोनों की मौजूदगी ने एक बार फिर संदेश दिया कि पार्टी एक है पर भाषणों की टीस ने इशारों में बहुत कुछ कह दिया। मानों तल्खी 23 अक्टूबर को जहां छोड़ी गई थी वहीं से 3 नवंबर को फिर से शुरु हो गई। अखिलेश यादव ने अपने भाषण में शिवपाल यादव का नाम नहीं लिया बस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष कह कर काम चलाया।

वहीं इस भीड़ इस निजाम को शिवपाल ने अपने भाई के नाम पर वार दिया। कहा ये पार्टी के नेताजी के मेहनत का परिणाम है। वहीं नेताजी ने एक बार फिर अखिलेश यादव के समर्थकों को कहा कि ये जवानी है कुर्बान....भैया तेरे नाम कहने भर से नहीं चलेगा। कुर्बानी के बारे में जानते क्या हो। कुर्बानी देने वालों का भी सम्मान करो उनके बारे में पढ़ो भी।

अखिलेश के युवाओं की भीड़ पर सिर्फ अखिलेश का ही जादू था इस कदर कि शिवपाल यादव के पूरे भाषण में ताली तभी बजी जब उन्होंने अखिलेश को बधाई दी। अखिलेश यादव का समर्थन उनका प्रदर्शन और युवाओं का उनके प्रति समर्पण ये साबित कर रहा था कि उत्तराधिकारी बनने की दौड़ में अब वे कहीं आगे हैं। अखिलेश य़ादव की तैयारी ने साबित कर दिया कि उन्होंने सिर्फ पद में कद में आकाश छू लिया है। कुर्सी के साथ अब उन्होंने पार्टी की कमान भी संभाल ली है।

अखिलेश के तैयारी के रंग में भंग भी तब पड़ गया जब 5 करोड़ की लागत से बना मर्सिडीज का विकास रथ महज 500 मीटर ही चल सका और उसमें खराबी आ गई। अखिलेश यादव की सांसद पत्नी बच्चे भी इस रथ पर थे पर लाख कोशिश के बाद भी जब रथ नहीं चला तो वे अपने फ्लीट की गाड़ियों से ही आगे की यात्रा पर रवाना हो गए।

लोगों का दिल जीतने के लिए चलाए गए इस रथ ने राजधानी का जनजीवन अस्त व्यस्त किया। लखनऊ-कानपुर राजमार्ग जिस तरह 11 घंटे बाधित रहा उससे आयोजकों ने अखिलेश के इस अभियान की सफलता के सामने अवरोध खड़े करते दिखे।

बीता गुरुवार सूबे की सियासत में रथयात्रा का दिन कहा जा सकता है। भले ही चुनावी अभियान की शुरुआत कांग्रेस ने की हो पर 24 घंटे बाद ही उनकी खाट पंचायत की अनुगूंज सुनाई नहीं दे सकी। लेकिन अखिलेश की विजय यात्रा और भारतीय जनता पार्टी के परिवर्तन रथ के पहिए अब ये बताने लगे हैं कि चुनानी तैयारी में हर पार्टी ने अब टॉप गियर लगा दिया है।

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