जन्मदिन विशेष: मौके मिलते तो चन्द्रशेखर देश के सबसे अच्छे पीएम साबित होते
लखनऊ: लगभग डेढ़ साल पहले पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का संस्मरण आया था जिसमें उन्होंने लिखा था अगर चंद्रशेखर को और मौका मिला होता तो वो देश के सर्वश्रेष्ठ प्रधानमंत्रियों में से एक साबित हुए होते। देश के 8वें पीएम चन्द्रशेखर की आज जन्मतिथि है। उनका जन्म 1 जुलाई 1927 को बलिया के इब्राहिम पट्टी गांव में हुआ था।
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जब वेंकटरमन भारत के राष्ट्रपति थे और चंद्रशेखर प्रधानमंत्री थे तो उन्होंने भी कहा कि चंद्रशेखर के पास अगर बहुमत होता तो बेहतर होता, क्योंकि एक तरफ वो अयोध्या में हल निकालने की कोशिश कर रहे थे तो दूसरी तरफ सिख समस्या को सुलझाने की कोशिशों में लगे थे। कश्मीर में सकारात्मक कदम उठाए जा रहे थे तो असम में सालों बाद चुनाव कराए गए।
छोटे कार्यकाल में किए बड़े काम
उनका कार्यकाल 10 नवम्बर 1990 से 21 जून 1991 तक रहा। बस इतना छोटा कार्यकाल लेकिन इतने बड़े काम लेकर निर्णायक रूप से आगे बढ़ रही थी उनकी सरकार और यही कांग्रेस को अखर रहा था। चंद्रशेखर सफलता की ओर और ज्यादा न बढ़ें इसलिए कांग्रेस ने सरकार को गिरा दिया जबकि इस वादे के साथ चंद्रशेखर शपथ ली थी कि कम से कम एक साल तक सरकार को चलने दिया जाएगा।
कांग्रेस के डरने के पीछे भी कारण थे। चंद्रशेखर का व्यक्तित्व ही कुछ ऐसा था। जब देश में ऑपरेशन ब्लूस्टार हुआ तो वह अकेले राजनेता थे जिन्होंने कहा था कि ये हिमालयन ब्लंडर है और देश को इसकी भारी कीमत चुकानी होगी। उनके ऐसा कहने के पीछे कारण भी थे । वो इमरजेंसी के दौरान लंबे समय तक पटियाला जेल में बंद रखे गए, वो भी तन्हाई में।
चंद्रशेखर को लंबे समय तक जेल में रखा
इंदिरा गांधी सरकार ने जॉर्ज फर्नांडिस के बाद अगर किसी को सबसे लंबे समय तक जेल में रखा था तो वो चंद्रशेखर ही थे। इसी दौरान उन्होंने सिख इतिहास और पंजाब का इतिहास पढ़ा। और उसी इतिहास के अनुभव पर उन्होंने कहा था कि स्वर्ण मंदिर में हुई कार्रवाई का बहुत खराब असर पड़ने वाला है। इसके कुछ दिनों बाद इंदिरा गांधी की हत्या हो गई और पूरे देश में सिख विरोधी दंगे हुए।
इसके बाद खास तौर पर अरुण नेहरू ने कमान संभाली कि कैसे चंद्रशेखर को चुनाव हराना है। वो बलिया भी गए और कुछ अपने चुनिंदा पुलिस अधिकारियों के जरिए इस बात का भी इंतजाम कराया कि चंद्रशेखर को हराया जाए। जब लोकसभा चुनावों की घोषणा हो गई तो चंद्रशेखर बलिया गए।
नारा लगाने वाले सारे लोग स्तब्ध हो गए
वो ट्रेन से स्टेशन पर जैसे ही उतरे तो अचानक कांग्रेसियों की भीड़ ने उन्हें घेरकर नारे लगाने शुरू कर दिए कि बलिया के भिंडरावाले वापस जाओ और भिंडरावाले की थैली लाए हैं चुनाव में हराएंगे। चंद्रशेखर उतरे और वहीं पर खड़े हो गए तो नारा लगाने वाले सारे लोग स्तब्ध हो गए। उन्होंने जो कहा वो आज के नेताओं के लिए सबक है।
उन्होंने कहा, 'भारत और पंजाब का इतिहास मैंने पढ़ा है और हां, मैने कहा है कि ऑपरेशन ब्लू स्टार भारत के इतिहास में हिमालयन ब्लंडर है और ये देशहित के लिए कहा है। चुनाव तो आते-जाते रहते हैं। और मैं तो इतिहास का मामूली कॉमा या फुल स्टॉप भी नहीं हूं। दुनिया में बड़े-बड़े लोग आएंगे-जाएंगे लेकिन जो सच हो वो बोलना चाहिए। जिन लोगों को मेरी ये बात खराब लगे मुझे उन लोगों के वोट नहीं चाहिए। चुनाव जीतने के लिए मैं अपने मत नहीं बदलता।
बलिया के मामूली परिवार में जन्मे थे चंद्रशेखर
ऐसे और भी बहुत सारे प्रसंग है। बलिया के मामूली परिवार से निकले चंद्रशेखर देश की राजनीति में जब तक रहे निर्णायक रूप से उन्होंने अपनी जगह बनाई। इंदिरा गांधी की इच्छा के खिलाफ 1972 में शिमला में उन्होंने कांग्रेस वर्किंग कमेटी का चुनाव जीता। फिर इंदिरा गांधी को उनकी लोकप्रियता देखकर उन्हें कांग्रेस वर्किंग कमेटी में रखना पड़ा , और वो पहली आवाज थे जिन्होंने इंदिरा गांधी को चेताया कि हमने जो वायदे किए 71 के चुनाव में, जीतने के बाद पहले हमें उनको पूरा करना चाहिए।
ये ऐतिहासिक तथ्य है कि इंदिरा गांधी के बाद उन दिनों कांग्रेस में जो नेता चुनाव प्रचार की दृष्टि से सबसे पॉपुलर थे तो वो चंद्रशेखर ही थे। इसीलिए इंदिरा गांधी ने चंद्रशेखर से कहा कि आप राज्यसभा में ही रहिए क्योंकि आप चुनाव लड़ेंगे तो लड़ाएगा कौन?
इंदिरा गांधी से कहा कि आप वायदों को पूरा कीजिए
जब चुनाव में भारी कामयाबी मिल गई तो चंद्रशेखर ने इंदिरा गांधी से कहा कि आप वायदों को पूरा कीजिए नहीं तो देश में असंतोष होगा। जब बिहार आंदोलन खड़ा हुआ तो चंद्रशेखर ने कहा कि जयप्रकाश जी को मलीन न करें आप। वह ऋषितुल्य नेता हैं। उन्होंने देश से कुछ लिया नहीं है, दिया ही है। अगर राजसत्ता संतसत्ता से टकराएगी तो आगे नहीं बढ़ पाएगी।
मध्य प्रदेश के वरिष्ठ कांग्रेसी नेता डीपी मिश्र, जो कांग्रेस के चाणक्य कहे जाते थे, उन्होंने चंद्रशेखर को देखा तो बाकी कांग्रेसियों से कहा कि इस आदमी से सावधान रहना क्योंकि इसे कुछ चाहिए नहीं। ये खरी बातें करता है, और चंद्रशेखर से कहा जिसकी पीठ पर कोई बोझ न हो वो ही तुम्हारी तरह हो सकता है। तुम बेलौस बोल रहे हो। लोग ध्यान नहीं देंगे तो इतिहास पलट जाएगा।
फिर उनकी बात सही साबित हुई, बिहार आंदोलन बढ़ता गया। उनकी कोशिश थी कि इंदिरा और जेपी में समझौता हो लेकिन इंदिरा गांधी के आस-पास ऐसे लोग थे जिन्होंने ऐसा नहीं होने दिया। फिर आजादी के बाद पहली बार कांग्रेस सत्ता से हटी।
कांग्रेस में वापस आने से किया मना
कांग्रेस जब सत्ता से हट गई तो इंदिरा गांधी ने बहुत कोशिश की कि चंद्रशेखर फिर से कांग्रेस में आ जाएं लेकिन उन्होंने मना कर दिया। उन्होंने कहा, 'मैं किस तरह वापस आऊं। मैंने तो कांग्रेस नहीं छोड़ी थी। मेरे वापस आने का मतलब होगा कि मैं गलत था लेकिन जब वो चुनाव जीत कर आए तो इंदिरा गांधी के लिए उनके मन में कोई मैल नहीं था।
मोरारजी की सरकार में जब चरण सिंह ने यह तय किया कि इंदिरा का सरकारी आवास खाली कराया जाए तो चंद्रशेखर ने इसका विरोध किया। उन्होंने कहा ये गलत काम नहीं होना चाहिए। जब वो संसद में खड़े होते थे बोलने के लिए पक्ष-विपक्ष के सभी लोग उन्हें आदर के साथ सुनते थे। चंद्रशेखर का जाना इस देश की राजनीति से साहस की विदाई है जैसा था उन्होंने 8 जुलाई 2007 को दिल्ली के अपोलो अस्पताल में अंतिम सांस ली। वैसा कोई नेता अभी दिखाई नहीं देता जो पद और राजनीति की चिंता छोड़ सच कह सके।