नारायण दत्त तिवारीः देश व समाज के लिए जीवनदानी आधुनिक दधीचि

Update:2018-10-18 20:02 IST

योगेश मिश्र

संघर्षशील स्वतंत्रता सेनानी। जुझारू छात्र नेता। विकास पुरुष नियति के भंवर में फंस कर जिंदगी में बहुत से उतार-चढ़ाव देखने वाले नारायण दत्त तिवारी नहीं रहे। यह नियति या संयोग ही है कि जो उनका जन्मदिन है, उसी दिन उनका निधन भी हुआ। किसी भी नेता के जाने के बाद अपूरणीय क्षति होने का जुमला श्रद्धांजलि का हिस्सा होता है। पर नारायण दत्त के साथ ऐसा नहीं हुआ। ऐसा नहीं कहा जा सकता, क्योंकि जीते जी उन्होंने अपनी मेधा, अपनी शक्ति, अपने साहस का उपयोग जीवन भर देश और समाज के लिए इस तरह किया कि दधीचि की तरह हड्डियां भी काम आ गईं। वह उत्तर प्रदेश की पहली विधानसभा के सबसे युवा सदस्य थे। विधानसभा की नियमावली ही नहीं हाउस ऑफ कामन्स की नियमावली भी उन्हें कंठस्थ थी।

उत्तर प्रदेश सरकार के बजट को पेश करने, विपक्ष के नाते बोलने वालों में वह बेजोड़ थे। लाइब्रेरी का नारायण दत्त बहुत उपयोग करते थे। विधायकों को नसीहत भी देते थे। शायद ही कोई ऐसी नई किताब होती हो, जिसे वह न पढ़ लेते हों। जब वो उत्तराखंड के मुख्यमंत्री थे तब ईटीवी के लिए मेरे द्वारा लिए गए साक्षात्कार में उन्होंने तमाम किताबें मुझे दिखाई थीं, जो हाल-फिलहाल प्रकाशित हुई थीं। इन्हें वह पढ़ चुके थे। उन्हें स्वीडिश भाषा का भी अच्छा ज्ञान था। यह भाषा उन्होंने छह महीने वहां प्रवास करके सीखी थी। स्वीडिश भाषा सीखने के लिए जब वह स्वीडन गए थे तभी ओलोफ पाल्मे से उनकी मित्रता हो गई थी। जो पाल्मे के राजनीतिक शिखर पर पहुंचने तक जारी रही। उन्होंने ख्याति प्राप्त अर्थ शास्त्री गुन्नार म्यर्दल की उपस्थिति में अर्थ शास्त्र पर स्वीडिश भाषा में भाषण देकर खूब वाहवाही लूटी थी।

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राम नरेश यादव मुख्यमंत्री थे। श्री यादव बाद में समाजवादी बने थे। नारायण दत्त तिवारी पहले समाजवादी थे, बाद में कांग्रेसी हो गए। राम नरेश यादव के मुख्यमंत्रित्व कार्यकाल में नारायण दत्त तिवारी नेता प्रतिपक्ष थे। उनके नाते राम नरेश यादव की सरकार बहुत परेशान रहती थी। सदन में कई बार राम नरेश यादव को दिक्कत पेश आती थी। उस समय मधुलिमये ने कहा था- गलती हो गई। जब नारायण दत्त तिवारी नेता प्रतिपक्ष हों तो मुख्यमंत्री राम नरेश यादव नहीं कोई और होना चाहिए था।

मुलायम सिंह यादव को अपनी सरकार के लिए सदन में कांग्रेस का समर्थन चाहिए था। नारायण दत्त तिवारी उन दिनों भी नेता थे। पर यह समर्थन लखनऊ से नहीं तय हो सकता था। कहा जाता है कि नारायण दत्त तिवारी ने मुलायम सिंह यादव को राजीव गांधी से मिलने की राय दी। राजीव गांधी ने जब नारायण दत्त तिवारी से इस बाबत पूछा तो सहमति और स्वीकृत पहले से तैयार रखी थी। सदन में नारायण दत्त तिवारी ने लक्ष्मण रेखा लांघने की मजबूरी का पाठ पढ़ा। विकास और सुशासन उनके एजेंडा थे। आज इंवेस्टरमीट हो रही है, पर तब बिजली और सड़क भी नहीं थी। लेकिन नारायण दत्त तिवारी तमाम उद्योग उत्तर प्रदेश में लेकर आये। उन दिनों डाला फैक्टरी में बतौर आई.ए.एस. अफसर तैनात आलोक रंजन बताते हैं कि बात 1983-84 की है। वह फैक्टरी के इंस्पेक्शन पर आये। उन्होंने पूरा दिन दिया। वो बहुत तैयारी करके आये थे। उनके बारे में प्रसिद्ध था कि वह बहुत गर्म चाय पीते थे। ठंडी चाय उन्हें पसंद नहीं थी। यह बात हम लोगों को बताई गई थी। डाला के चेयरमैन जगदीश खट्टर थे। जो बाद में मारुति उद्योग में चले गए। श्री रंजन बताते हैं कि हम लोगों को यह भी बता दिया गया था कि तिवारी जी ठंडी चाय का कप खिसका देते हैं। कुछ कहते नहीं। हुआ भी यही। उनकी चाय ठंडी थी, उन्होंने कप खिसका दिया। हम लोग समझ गए और बाद में गर्म चाय उन्हें उपलब्ध कराई गई।

तिवारी जी के साथ लंबे समय तक काम कर चुके आई.ए.एस. अफसर एन. सी. वाजपेयी उन दिनों गन्ना विभाग में थे। श्री वाजपेयी बताते हैं कि उन्होंने चीनी मिलों और गन्ना सोसाइटी के साथ मिलकर लिंक रोड बनाने पर खूब काम किया ताकि आसानी से गन्ना मिलों तक पहुंच सके। तिवारी जी ने श्री वाजपेयी को फिलिपिंस भेजा। श्री वाजपेयी बताते है, बाद में फिलिपिंस ने भी यह माडल लागू किया। वो गन्ना किसानों का ध्यान रखते थे। कभी ऊंची आवाज में नहीं बोलते थे। अगर किसी बात को लेकर उनका कोई रिजर्वेशन होता था या किसी अफसर से नाराजगी होती थी। तो सिर्फ यह कहते थे- अरे महराज आपके रहते यह काम नहीं हो सकता है। फिर वह अफसर जाकर वापस काम करके ही लौटता था। उन्हें वित्त और नियोजन का भी बहुत अच्छा ज्ञान था। महराज, भगवान और भाई साहब उनके तकिया कलाम थे। वह पूरी फाइल खुद पढ़ते थे। एन.सी. वाजपेयी कहते हैं कि स्वतंत्रता संग्राम के संघर्ष से लेकर देश के विकास के हर चरण में उनका योगदान था। उत्तर प्रदेश के हर जिले में उद्योग केंद्र खोलने का विचार नारायण दत्त तिवारी का है। उत्तर प्रदेश के भाल पर चमकने वाला नोएडा भी उन्हीं की देन है। उत्तराखंड के विकास की पटकथा भी इन्हीं ने लिखी थी।

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उन्हें लोग नाम और काम से जितना जानते थे। उससे कम उनकी रंगीन तबीयत की चर्चा नहीं होती थी। आंध्र प्रदेश में राज्यपाल रहते हुए राजभवन के बिस्तर पर तीन महिलाओं के साथ उनका वीडियो एक तेलुगू चैनल ने चलाया था। इसी के बाद से उनकी राजनीतिक यात्रा खत्म हो गई। बाद में उज्जवला तिवारी ने नारायण दत्त पर पुराने प्रेम प्रसंग का हवाला देते हुए शादी के लिए दबाव डाला। उज्जवला के बेटे रोहित ने नारायण दत्त के पुत्र होने की लड़ाई लड़ी। अदालत से जीते। बाद में नारायण दत्त तिवारी ने उज्जवला से शादी की और रोहित के जैविक पिता बने। आपात काल के दौरान संजय गांधी की सेवा को लेकर भी वह लोगों की जुबान पर ऐसा चढ़े कि उनकी छवि को बट्टा लगा। उन्हें पार्टी के अंदर नथिंग डूइंग तिवारी भी कहा जाता था। हालांकि वीर बहादुर सिंह के मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद पार्टी को बांधे रखने के काबिल समझते हुए इन्हें ही मुख्यमंत्री बनाया गया। इनके बारे में यह भी नारा आम था कि- न नर है, न नारी है, नारायण दत्त तिवारी हैं।

श्री तिवारी आपातकाल के दौरान मुख्यमंत्री थे, कांग्रेस का मुखपत्र नवजीवन, नेशनल हेराल्ड और कौमी आवाज होता था, संपादक चेलापति राव थे राव साहब ने ये आदेश पारित कर रखा था कि पहले पेज पर संजय गांधी की खबर या फोटो नहीं लगेगी नारायण दत्त जी संजय गांधी की मदद से मुख्यमंत्री बने थे उन्हें जब ये पता चला तो चेलापति राव से मिले थे| आग्रह किया कि उनके अख़बार के पहले पेज पर संजय गांधी की फोटो और खबर आये चेलापति जी ने मना करते हुए नारायण जी को राय दी की वो प्रधानमंत्री जी से कहें कि वो संजय जी को केंद्रीय मंत्रीमंडल में ले लें फिर पहले पेज पर उनकी खबर और तस्वीर दोनों लगा करेंगी| साथ ये भी बोले कि तब संजय गांधी कंस्टीटूशनल अथारटी हो जाएंगे अभी तक नॉन कंस्टीटूशनल हैं हम महत्त्व कैसे दे सकते हैं| आपातकाल के दौरान उन्होंने जेल में बंद लोगों को ख्याल रखा उनके परिवार की मदद की|

नारायण दत्त जी उघ्योग मंत्री थे गुजरात के तीन सांसद उनसे मिलने आए, कमरे में नारायण दत्त के साथ श्री अचुत्तानंद मिश्र जी बैठे थे, श्री मिश्र बताते हैं कि गुजरात के संसदों से नारायण दत्त जी ने पूछा बताइए महाराज कैसे आना हुआ, सांसद बोले हम आपको धन्यवाद देने आए हैं आपने हमारे राज्य के पिछड़े जिले में उद्योग लगाया जबकि हम लोगों की ओर से कोई प्रयास नहीं किया गया तिवारी जी ने दीवार पर टंगे नक़्शे को दिखाते हुए कहा जहां जहां नंबर नहीं है| जो स्थान खाली है उसका मतलब उन शहरों में उद्योग नहीं है| वहां उद्ग्योग लगाना उद्योग लगाना उद्योग मंत्री की जिम्मेदारी है आपने हमको उद्योग मंत्री बनाया है, सांसद उनपर फ़िदा होकर गए

हालांकि नैनीताल के जिस एम.पी को 1991 में जून में पी.एम. बनाना था, वह पांच हजार वोटों से हार गया। नतीजतन, रिश्वत के आरोप के जद वाले कांग्रेसी नेता को प्रधानमंत्री बना दिया गया। तिवारी जी की जीवनी 'नारायण दत्त तिवारी - ए लाइफ़ स्टोरी' लिखने वाले दुर्गा प्रसाद नौटियाल के मुताबिक कांग्रेस में नारायण दत्त तिवारी को प्रधानमंत्री बनाने का विचार 1987 में तब आया जब राजीव गांधी पर बोफोर्स के आरोप लगने लगे। विश्वनाथ प्रताप सिंह ने इस्तीफा दिया। उस समय कांग्रेस में यह विचार आया कि 2-3 महीने के लिए राजीव गांधी से इस्तीफा दिलाकर कोई नया प्रधानमंत्री बनाया जाय। उस समय नारायण दत्त तिवारी और नरसिम्हा राव के नाम पर चर्चा हुई थी। पर यह विचार के स्तर पर ही रह गया। हालांकि बाद में नरसिम्हा राव जब प्रधानमंत्री बने तो उनकी उपेक्षा से परेशान होकर इन्होंने अर्जुन सिंह के साथ मिलकर तिवारी कांग्रेस बना ली।

वर्ष 2007 में जब उत्तराखंड में चुनाव चल रहा था, तब नारायण दत्त तिवारी मुख्यमंत्री थे। मुझे ईटीवी की ओर से उनका एक इंटरव्यू करना था। उनसे समय लेना मुश्किल पड़ रहा था तो मैंने उनके सचिव आई.ए.एस. अफसर डी.के. कोटिया से बात की। कोटिया हमारे दोस्त थे, हमने उनसे कहा कि तिवारी जी को सिर्फ यह बता दीजिए कि मैं इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ का पदाधिकारी रहा हूं। मुझे तुरंत बुला लिया गया। क्योंकि वह भी आजादी के साल ही इलाहाबाद छात्रसंघ के अध्यक्ष बने थे। उनके बारे में विश्वविद्यालय में यह कथा चलती थी कि वह नई चद्दरों पर सोने के आदी थे। हॉस्टल में जिसकी नई चद्दर आती थी, वह तिवारी जी के हिस्से जाती थी। उनका वह बहुत बेबाक इंटरव्यू था। उनकी तमाम सभाएं लगी हुई थी। वह जाना नहीं चाहते थे। उन्हें उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बनने के बाद भी प्रसन्नता छू तक नहीं गई थी। इसकी वजह भी थी क्योंकि वह उत्तर प्रदेश के तीन बार मुख्यमंत्री रहे। तब उत्तराखंड उत्तर प्रदेश का हिस्सा था।

इंटरव्यू के दिन पानी बरसने लगा। मौसम ने साथ नहीं दिया उनकी सभाएं कैंसिल हो गई। उन्होंने हाथ उठाकर प्रभु को इस कदर धन्यवाद दिया मानो कोई बड़ी मांगी मुराद पूरी हो गई हो। नारायण दत्त एक ही कान से सुनते थे। उनके पैर चलते समय सीधे नहीं पड़ते थे। साक्षात्कार में उन्होंने बताया कि जंग ए आजादी के दौरान जेल में बंद स्वतंत्रता संग्राम सेनानी को उन दिनों के जेलर अपराधियों से पिटवाते थे, मुझे भी जेलर ने एक अपराधी के हवाले किये उसने मेरे कान पर एक जोरदार तमाचा जड़ा तब से एक ही कान से सुन पता हूं। आजादी की लड़ाई में बहुत दिनों तक बेडि़यां पहन कर रहना पड़ा। पैर में बेडि़यां पड़ी हो तो पैर सीधे नहीं डाले जा सकते। इसलिए उनकी चाल बदल गई थी। इंटरव्यू में एक सवाल यह था कि आप हरीश रावत से इसलिए नाराज रहते हैं। क्योंकि वह एक पुरुष है। उनका जवाब था सुंदरता किसे अच्छी नहीं लगती। बाद में जब वो लखनऊ आकर रहने लगे, तब कई बार की मुलाकातों में वह कदम-कदम बढ़ाये जा गीत गाते रहते थे।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार व स्तंभकार हैं

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