गुजरात चुनाव में इस बार राहुुल कर सकते थे करिश्मा, मगर ....

गुजरात में कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की संजीवनी होती है। इस बार भी कांग्रेस ने इसी गलती को फिर दोहराया है।

Update: 2017-11-07 08:37 GMT
गुजरात चुनाव में इस बार राहुुल कर सकते थे करिश्मा, मगर ....

योगेश मिश्र

लखनऊ : गुजरात में कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की संजीवनी होती है। इस बार भी कांग्रेस ने इसी गलती को फिर दोहराया है। यही वजह है कि कांग्रेस प्रचार में भले ही बराबर दिख रही हो। लेकिन, बीजेपी ने लड़ाई को विकास की जगह विश्वास पर लाकर टिका दिया है। गंभीर सत्ता विरोधी रुझान और नरेंद्र मोदी की अनुपस्थिति के चलते जो नाराजगी है उसे अपने पक्ष में करने में कांग्रेस की कामयाबी नहीं दिख रही है। अल्पेश, जिग्नेश और हार्दिक पटेल के साथ होने के बावजूद कांग्रेस सत्ता से दूर खड़ी है। हालांकि, इस पर पहली मर्तबा राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस का ‘टेक ऑफ’ होगा। अगर पीएम नरेंद्र मोदी का गृह राज्य नहीं होता तो राहुल गांधी एक नया कीर्तिमान रचते दिख सकते थे। राजस्थान और मध्यप्रदेश के होने वाले विधान सभा चुनाव में राहुल गांधी अगर इसी तरह जुटे रहे तो वहां कांग्रेस को जीवन दे सकते हैं।

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गुजरात में कांग्रेस अपने प्रचार में पहली मर्तबा बेहद आक्रामक है। उसने लड़ाई को ‘हार्ड’ और ‘सॉफ्ट’ हिंदुत्व के चौसर पर लाकर टिका दिया है। लेकिन, अगर उसने अपना सीएम उम्मीदवार घोषित कर दिया होता तो वह लड़ाई को अपना उम्मीदवार बनाम हाल-फिलहाल गुजरात के सीएम विजय रुपाणी बना सकते थे। कांग्रेस के चुनाव की कमान भरत सिंह सोलंकी के हाथ है। वे पूर्व सीएम माधव सिंह सोलंकी के बेटे हैं। जो कोली जाति से आते हैं। इस जाति की तादाद गुजरात में 10 फीसदी के आस-पास बैठती है। जबकि, विजय रुपाणी जैन हैं, जिनकी संख्या 1 फीसदी के आस-पास हो सकती है। सीएम उम्मीदवार नहीं देकर कांग्रेस ने लड़ाई को राहुल गांधी बनाम नरेंद्र मोदी बनने देने में अप्रत्यक्ष रूप से मदद कर दी है। यही वजह है कि बीजेपी ने इस चुनाव को 'विकास' की जगह, 'विश्वास' को चुनने का नारा दे दिया।

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182 सीटों वाली गुजरात विधान सभा में कांग्रेस के फिलहाल 43 एमएलए हैं। उसके 15 एमएलए राज्य सभा चुनाव में कांग्रेस छोड़ बीजेपी के पाले में चले गए हैं। इनमें 10 ऐसे हैं जो अपनी हैसियत से चुनाव जीतते हैं। बीजेपी सरकार के खिलाफ लोगों में गुस्सा है। जीएसटी के चलते व्यापारियों में नाराजगी पढ़ी जा सकती है। लेकिन, मध्य गुजरात के अहमदाबाद में 21, सौराष्ट्र के राजकोट में 11, पूर्वी गुजरात के वड़ोदरा में 13, दक्षिण गुजरात के सूरत में 18 सीटें हैं। यहां बीजेपी का स्ट्राइक रेट 90 फीसदी के ऊपर था। इन 63 सीटों में से कांग्रेस दो पर जीती थी। ये दोनों विधायक बीजेपी में चले गए।

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गुजरात में 72 शहरी सीटें हैं। इस इलाके में लोग बीजेपी से नाराज तो हैं, पर कांग्रेस का कोई संगठन नहीं है। 27 आदिवासी सीटों में से बीजेपी सिर्फ 13 पर जीत पाई थी। इस बार उसका लक्ष्य इन सीटों पर बड़ा स्कोर खड़ा करना है। हालांकि, दलितों के लिए आरक्षित सभी 13 सीटें जीतने में बीजेपी कामयाब हो गई थी। कांग्रेस के पास 182 में से सिर्फ 110 पर ही कुछ कर दिखाने की क्षमता है। जिस तरह हार्दिक पटेल की शर्तें कांग्रेस पर लादी जा रही हैं। उस तरह वह एक कमजोर पार्टी के रूप में दिख रही है। नगर की सीटों पर पाटीदार निर्णायक नहीं हैं। यही वजह है कि 2015 में हुए नगर पंचायत चुनाव में पाटीदार आंदोलन के बावजूद बीजेपी आगे थी। हालांकि, तालुका पंचायत में कांग्रेस ने बढ़त बना ली थी।

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