L&T Chairman Statement: 90 घण्टे काम यानी जिंदगी से खिलवाड़!
L&T Chairman SN Subrahmanyan Statement: हफ्ते में 90 घंटे, यानी रोजाना 13 घंटे काम करने से जिस्मानी और दिमागी सेहत, दोनों के लिए गंभीर नतीजे हो सकते हैं। क्योंकि 13 घण्टे काम के बाद बाकी 11 घण्टे में नींद, निजी व घरेलू काम, ट्रैफिक में आवाजाही और फैमिली तथा सोशल ज़िम्मेदारियों को निभा पाना नामुमकिन ही है।;
L&T Chairman SN Subrahmanyan Ka Bayan: नई दिल्ली। एलएंडटी के चेयरमैन एसएन सुब्रह्मण्यन ने दिली ख्वाहिश जताई है कि कर्मचारियों को हफ्ते में 90 घंटे काम करना चाहिए। उन्होंने अफसोस जताया है कि वे अपने कर्मचारियों से हफ्ते के सातों दिन काम नहीं करवा पा रहे हैं। सुब्रह्मण्यन का वीडियो जबर्दस्त तरीके से वायरल हुआ है और उनकी बातों पर सोशल मीडिया में कमेंट्स और रिएक्शन की बाढ़ आई हुई है।
- तो क्या एलएंडटी के चेयरमैन का हफ्ते में 90 घंटे काम करने की सलाह सही है? होना क्या चाहिए?
- पहले तो यह जान लीजिए कि डब्ल्यूएचओ के एक अध्ययन में पाया गया है कि हफ्ते में 55 या उससे ज्यादा घंटे काम करने से स्ट्रोक का जोखिम 35 प्रतिशत और हृदय रोग से मरने का जोखिम 17 प्रतिशत बढ़ जाता है।
- डॉक्टर भी बताते हैं कि पचासों घण्टे काम करने की दिनचर्या जिस्म के हर अंग को नुकसान पहुंचा सकती है।
- जो नहीं जानते या समझना नहीं चाहते उन्हें बता दें कि इंसानी शरीर कुदरत की सबसे जटिल मशीन है और इसे चालू रखने के लिए रखरखाव और देखभाल की जरूरत होती है।
- तो जानते हैं कि ज्यादा काम और कम आराम के क्या नतीजे हो सकते हैं।
गम्भीर नतीजे
हफ्ते में 90 घंटे, यानी रोजाना 13 घंटे काम करने से जिस्मानी और दिमागी सेहत, दोनों के लिए गंभीर नतीजे हो सकते हैं। क्योंकि 13 घण्टे काम के बाद बाकी 11 घण्टे में नींद, निजी व घरेलू काम, ट्रैफिक में आवाजाही और फैमिली तथा सोशल ज़िम्मेदारियों को निभा पाना नामुमकिन ही है।
अत्यधिक कार्यभार का नतीजा हर समय बढ़े हुए स्ट्रेस लेवल, खराब नींद और बेकार लाइफस्टाइल की आदतों को जन्म देता है। भारतीय लोग पहले से ही हृदय रोग और डायबिटीज जैसी पुरानी बीमारियों से जूझ रहे हैं, ऐसे में अत्यधिक कार्यभार रिस्क फैक्टर्स को और भी बढ़ा सकता है। बता दें कि भारतीय लोग दुनिया की अन्य आबादी की तुलना में हृदय रोग और डायबिटीज के प्रति ज्यादा रिस्क वाले होते हैं और इन बीमारियों के शिकार हो जाते हैं।
डॉक्टरों के अनुसार, लंबे समय तक काम करने से क्रोनिक स्ट्रेस होता है, जो कॉर्टिसोल और एड्रेनालाईन जैसे स्ट्रेस हार्मोन के स्राव को ट्रिगर करता है। लगातार हाई कोर्टिसोल लेवल ब्लड प्रेशर और हृदय गति को बढ़ा सकता है, जिससे हृदय रोग का खतरा बढ़ जाता है। इसके अलावा लगातार कोर्टिसोल लेवल बढ़ा रहने से इन्सुलिन रेजिस्टेंस बन सकता है और डायबिटीज का जोखिम बहुत बढ़ जाता है।
क्रोनिक हाई ब्लडप्रेशर दिल के दौरे, स्ट्रोक और हार्ट फेल्योर के लिए एक प्रमुख रिस्क फैक्टर होता है।
अध्ययनों से यह साबित हो चुका है कि लंबे समय तक काम करने से कोलेस्ट्रॉल का लेवल बढ़ सकता है। सप्ताह में 55 या उससे अधिक घंटे काम करने से स्ट्रोक का जोखिम ज्यादा होता है। इसके अलावा इस्केमिक हृदय रोग से मरने का जोखिम बढ़ जाता है।
तनाव के अलावा, नींद की कमी शरीर की ठीक होने और स्वस्थ होने की क्षमता को बाधित करती है। नींद बहुत ज़रूरी होती है क्योंकि यही वह समय है जब शरीर अपना काम करता है, दिन भर कोशिकाओं में जमा होने वाले टॉक्सिक पदार्थों को बाहर निकालता है। नींद की कमी साइटोकिन्स के उत्पादन को कम करके प्रतिरक्षा प्रणाली को कमज़ोर कर सकती है। नींद शरीर के मेटाबोलिज्म को नियंत्रित करती है, सो जब नींद पूरी नहीं होती है, तो इससे वजन बढ़ सकता है, हार्मोन असंतुलन, कोलेस्ट्रॉल बढ़ सकता है और ब्लड शुगर का लेवल बढ़ सकता है। इससे मूड खराब होना, कंसन्ट्रेशन प्रभावित होना, बेहद सुस्त बनाना, ऑक्सीजन की कमी आदि हो सकता है।
लंबे समय तक बैठे रहने और शारीरिक गतिविधि की कमी से मोटापा, टाइप 2 डायबिटीज और मेटाबॉलिक सिंड्रोम का खतरा बढ़ जाता है, जो सभी हृदय स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं। एक्टिविटी की कमी से खराब ब्लड सर्कुलेशन, मांसपेशियों में तनाव भी होता है, जो शरीर में दर्द और बेचैनी का कारण बनती है और पाचन को धीमा कर देती है, जिससे आंत का स्वास्थ्य खराब हो जाता है।
मानसिक स्वास्थ्य पर असर अत्यधिक कार्यभार का एक और परिणाम है। लगातार दबाव और थकावट से बर्नआउट, चिंता और डिप्रेशन हो सकता है। ये सब हृदय रोग के जोखिम बनते हैं।