अयोध्या मामले को संवैधानिक पीठ के पास भेजने की मांग वाली याचिका खारिज

Update: 2018-09-27 09:13 GMT

नई दिल्ली: मस्जिद में नमाज इस्लाम का अभिन्न हिस्सा है या नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर गुरुवार को अपना फैसला सुना दिया।सुप्रीम कोर्ट ने मस्जिद में नमाज पढ़ने को इस्लाम का अभिन्न अंग नहीं बताने वाले 1994 के फैसले को पुनर्विचार के लिए पांच सदस्यीय संविधान पीठ के पास भेजने से इनकार कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मस्जिद में नमाज पढ़ने का फैसला बड़ी बेंच में नहीं भेजा जाएगा। इस केस पर फैसले का असर अयोध्या और फारुखी मामले पर नहीं पड़ेगा। अयोध्या केस की सुनवाई नहीं टलेगी। संविधान पीठ का फैसला भूमि अधिग्रहण तक ही सीमित था।

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प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति अशोक भूषण तथा न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर की पीठ ने अपना फैसला सुनाया। जस्टिस भूषण ने पुराने मामले का जिक्र किया। और कहा- हर फैसला अलग हालात में होता है। पिछले फैसले के संदर्भ को समझना होगा।राष्ट्र को सभी धर्मों का समान रूप से सम्मान करना होगा।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा

हर धर्म के लिए उसके प्रार्थना स्थल अहम है। लेकिन अगर सरकारी अधिग्रहण जरूरी हो तो ये इसके आड़े नहीं आ सकता। किसी खास जगह का विशिष्ट धार्मिक महत्व हो तो यह अपवाद हो सकता है। दीवानी वाद का फैसला सबूतों के आधार पर करना होगा और पिछले फैसले की इसमें कोई प्रासंगिकता नहीं है।

न्यायमूर्ति भूषण ने कहा

हमें वह संदर्भ देखना होगा जिसमें पांच सदस्यीय पीठ ने इस्माइल फारूकी मामले में 1994 में फैसला सुनाया था कि मस्जिद इस्लाम का अभिन्न अंग नहीं है।

न्यायमूर्ति नजीर ने कहा

न्यायमूर्ति एस. ए. नजीर संबंधित मामले पर प्रधान न्यायाधीश और न्यायमूर्ति भूषण से सहमत नहीं । न्यायमूर्ति नजीर ने कहा- मस्जिद इस्लाम का अभिन्न अंग है इस विषय पर फैसला धार्मिक आस्था को ध्यान में रखते हुए होना चाहिए, उस पर गहन विचार की जरूरत है।

इस मामले पर पीठ ने 20 जुलाई को फैसला सुरक्षित रख लिया था। अयोध्या मामले के एक मूल वादी एम सिद्दीक ने एम इस्माइल फारूकी के मामले में 1994 के फैसले में इन खास निष्कर्षों पर ऐतराज जताया था जिसके तहत कहा गया था कि मस्जिद इस्लाम के अनुयायियों द्वारा अदा की जाने वाली नमाज का अभिन्न हिस्सा नहीं है। सिद्दीक की मृत्यु हो चुकी है और उनका प्रतिनिधित्व उनके कानूनी वारिस कर रहे हैं।

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