SC: अलग धर्म के व्यक्ति से शादी के बाद नहीं बदलता है महिला का धर्म

Update: 2017-12-08 06:02 GMT

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाई कोर्ट के उस आदेश पर असहमति व्यक्त की है जिसमें कहा गया था कि शादी के बाद महिला का धर्म वही होता है, जो उसके पति का है। कोर्ट ने वलसाद पारसी ट्रस्ट से अपने फैसले पर फिर से विचार करने को भी कहा है।

बता दें कि इसी ट्रस्ट ने टावर अॉफ साइसेंस में एक महिला के घुसने और माता-पिता का अंतिम संस्कार करने पर सिर्फ इसलिए पाबंदी लगाई है, क्योंकि महिला ने किसी और समुदाय के व्यक्ति से शादी की है।

यह रवैया साफ तौर पर मनमाना है

इस मामले पर सुनवाई के दौरान, चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एके सिकरी, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस अशोक भूषण की बेंच ने कहा, कि 'यह साफ तौर पर मनमाना रवैया है। एक पारसी पुरुष, जिसने समुदाय के बाहर विवाह किया, उसे टावर अॉफ साइलेंस में जाने की इजाजत है, लेकिन एक महिला को नहीं।'

नागरिक अधिकारों को नकारने के लिए शादी आधार

बता दें, कि पारसी ट्रस्ट ने गुलरोख एम. गुप्ता नामक महिला को टावर अॉफ साइलेंस में आने से रोक दिया था। सुनवाई के दौरान बेंच ने ये भी कहा, कि 'महिला के नागरिक अधिकारों को नकारने के लिए कभी भी शादी को आधार नहीं बनाया जा सकता।'

पत्नी, पति के पास गिरवी नहीं

ज्ञात हो, कि गुलरोख की तरफ से वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने कोर्ट में दलीलें पेश की। बेंच ने इंदिरा की दलीलों की तारीफ की। कहा, 'शादी का मतलब यह नहीं कि पत्नी पति के पास गिरवी है।'

ऐसा कोई कानून नहीं

पूर्व में आए बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले पर असहमति जताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'एेसा कोई कानून नहीं है, जो समुदाय से बाहर शादी करने वाली महिला को टावर अॉफ साइलेंस में घुसने से रोक सके।' संयोगवश महिला की वकील उनकी बहन ही हैं। इनके माता-पिता की उम्र करीब 84 साल है।

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